कैसे पाऊँ प्रेम दोबारा,
तृष्णा मिटे अब कैसे फिर से,
कैसे अब मैं पुनः तृप्त हूँ…
कैसे नापूँ आसमान मैं,
कैसे स्वप्न सजीले देखूँ
तूने ही जब राह फेर ली
कैसे अब उन रस्तों की चाल लूँ...
कैसे भूले राधा को कृष्णा,
कैसे विरह का गीत सुनाये
जो प्रेम अपूर्ण है मन के अंदर ,
कैसे उसको पूर्ण बताये...
बता सखी अब
कैसे पाऊँ प्रेम दोबारा
तृष्णा मिटे अब कैसे फिर से
कैसे अब मैं पुनः तृप्त हूँ…
कैसे उड़ूँ मैं रोशनियों में
जब जुगनू सारे थक के गिर गए,
कैसे देखूँ उन चेहरों को
मेरे लिये वो कबके मर गये...
कैसे फिरसे बरसे बादल
कैसे भींगूं फिर बारिश में मैं,
कैसे ये शहर हो फिर स्वर्ग सरीखा
कैसे हवा हो ठंडी-ठंडी ...
बता सखी अब
कैसे पाऊँ प्रेम दोबारा
तृष्णा मिटे अब कैसे फिर से
कैसे अब मैं पुनः तृप्त हूँ…
वाह! सुन्दर सृजन!
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDelete