Tuesday, June 24, 2014

आसमां और हथेलियाँ...

ये आसमां इतना विशाल है
बिल्कुल अनंत,
लेकिन उसमे,
मुझे बस शून्य दिखता है
बहुत बड़ा शून्य
जैसे किसी ने
एक बहुत बड़े घूमते कटोरे को
पलट कर रख दिया हो... 
बस ऊपर सब चक्कर खाते हुये दिखाई देते हैं,
कभी सूरज, कभी चाँद तो कभी बादल,
कोई नहीं रुकता मेरे लिए
जैसे सब ढूँढते रहते हैं कटोरे का छोर...

फिर अचानक से
तुम दिखती हो
हथेलियों से अपना चेहरा ढाँपे हुये,
तुम्हारी हथेलियों को सीधा करता हूँ तो
महसूस होता है जैसे
ये छोटे-छोटे हाथों की लकीरें
पकड़ के बैठी हैं मेरा वजूद
जैसे तुम थमी हुयी हो
मेरे भटकाव-मेरी बेचैनी को पकड़कर,
कान लगा कर सुनो तो
उन हथेलियों से,
सुनाई देती है मेरी हर सांस की आवाज़ें...

5 comments:

  1. अभी तो बस बार - बार पढ़ रही हूँ .... कमेन्ट बाद में .... सस्नेह :)

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  2. nice photo editing and lajawab as always :-)

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  3. कृपया अपने इस महत्वपूर्ण हिन्दी ब्लॉग को ब्लॉगसेतु http://www.blogsetu.com/ ब्लॉग एग्रीगेटर से जोड़कर हमें कृतार्थ करें …. धन्यवाद सहित

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