Tuesday, October 14, 2014

कुछ त्योहार सालो भर भी तो होने चाहिए न !!!!

चाहे जेठ की दुपहरी हो
या फिर पूस की रात
सावन की बारिश में भीगते हुये भी
इंतज़ार बैठा रहता था
ओसारे पर, दरख्तों पर ,

एक झलक माँ की,
लौटा देती थी हलक में जान फिर से...

कई त्योहार आते हैं-बीत जाते हैं,
कुछ पल देते हैं याद रखने को
और दिये जाते है साल भर का इंतज़ार....

तुमसे मिलना भी
अब बस एक त्योहार ही है माँ
साल में एक बार ही आता है,
कुछ देर ही ठहरता है, ज्यादा देर नहीं....

इन सादे लफ्जों में,
कुछ-एक त्योहार और मांगता हूँ,
कुछ त्योहार सालो भर भी तो होने चाहिए न !!!!

1 comment:

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