ज़िन्दगी में कई सारे फेज होते हैं, बचपन में जब आप अपने पिता का सम्मान करते हैं, फिर एक वक़्त आता है जब दूरियां बढ़ जाती हैं, आपको आजादी चाहिए होती है और उनको अनुशासन, मन कड़वा होता है उन दिनों, नज़र बचाते फिरते हैं... फिर एक वक़्त के बाद गर्व भाव आता है कि उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में इतना कुछ किया, सबके लिए... सबका ख्याल रखा... और फिर धीरे धीरे जब उनपर प्यार आना शुरू होता है वो बूढ़े हो चुके होते हैं... फिर झिझक इतनी ज्यादा होती है कि प्यार जतला नहीं पाते...
आज कल मैं आश्चर्य भाव में हूँ, हर बात पर गुस्सा करने वाले, अपनी जिद पूरी करवाने वाले आज मुझे कुछ नहीं कहते... वो बस चाहते हैं कि मैं जो चाहता हूँ वो मुझे मिले, उन्हें पता है कि अगर ये खुशियाँ मुझे आज नहीं मिलीं तो मैं कितना टूट जाऊँगा... मैं उनकी ख़ुशी के लिए अपनी ख़ुशी से मुहँ भी नहीं फेर सकता क्यूंकि उन्हें पता है इस तरह मैं कभी खुश नहीं हो पाऊंगा, और मैं खुश नहीं हुआ तो वो भी नहीं....
चारो तरफ डेडलॉक है, और इसमें सब फंसे हुए हैं... बस इस बात का गर्व है कि उन्होंने मेरी खुशियों की अहमियत समझी और आज मेरे हर निर्णय में मेरे साथ खड़े हैं, वो सिर्फ कहने को मेरे पिता नहीं हैं उन्होंने मेरे लिए सच में खुद को बदल लिया... अफ़सोस बस यही है कि इन खुशियों का महत्व हर कोई नहीं समझता, उनके लिए अजीब तरह की Priorities हैं, और मैं ये भी नहीं कह सकता कि वो अपनी जगह पर सही हैं...
खैर, पापाजी मुझे कई बार ऐसा लगा कि आप शायद भावनाओं को नहीं समझते, आज भी बहुत बार लगता है लेकिन आपने मुझे समझा और मेरी बदकिस्मती भी देखिये बदले में कुछ ख़ास नहीं है देने को... बस एक डेडलॉक दे दिया है मैंने उस भरोसे के बदले में... जब मेरी ख़ुशी में दूसरों को ख़ुशी मिलने लगे तो मैं बलिदान भी कैसे दूं, उससे भला कौन खुश होगा... जब मैं ही खुश नहीं...
काश हर पिता अपने बच्चों के साथ खड़े होते, उनपर उतना ही भरोसा करते, उसी तरह जिस तरह आप मेरे साथ खड़े हैं, मुझपर भरोसा किया है...
मैं लड़ रहा हूँ, आगे भी लड़ना चाहता हूँ, बस हिम्मत नहीं मिलती....मैं आपको वो ख़ुशी देना चाहता हूँ जो आपको मुझे खुश देखकर मिलती हो... और मेरी ख़ुशी ऐसे पिंजरे में कैद हो गयी है जिसकी चाभी मेरे हाथ में है ही नहीं...