“ठण्ड ज्यादा ही पड़ रही है।” बूढ़ी बोली,“चाय बना दूँ?”
“नहीं।” बूढ़ा अपना टोपा खींचते हुए बोला,“ऐसी कोई खास सर्दी तो नहीं।”
बूढ़ी खाँसने लगी। खाँसते-खाँसते बोली,“दवा ले ली?”
बूढ़े ने प्रतिप्रश्न किया,“तुमने ले ली?”
“मेरा क्या है! ले लूँगी।” वह फिर खाँसने लगी।
“ले लो, फिर याद नहीं रहेगा।” बूढ़ा फिर कुछ याद करते हुए बोला,“हाँ, आज बड़के की चिट्ठी आई थी।”
बूढ़ी ने कोई जिज्ञासा नहीं दिखाई तो बूढ़ा स्वत: ही बोला,“कुशल है। कोई जरूरत हो तो लिखने को कहा है।”
“जरूरत तो आँखों की रोशनी की है।” बूढ़ी ने व्यंग्य किया,“अब तो रोटी-सब्जी के पकने का भी पता नहीं लगता।”
“सो तो है।” बूढ़ा सिर हिलाते हुए बोला,“लेकिन वह रोशनी कहाँ से लाएगा!”
कमरे में फिर मौन छा गया। वह उठी, अलमारी से दवा की शीशी निकाली और बोली, “लो, दवा पी लो।”
बूढ़ा दवाई पीते हुए बोला,“तुम मेरा कितना खयाल रखती हो!”
“मुझे दहशत लगती है तुम्हारे बिना।”
“तुम पहले मरना चाहती हो? मैं निपट अकेला कैसे काटूँगा?”
“बड़का है, छुटका है। फिर मरना-जीना अपने हाथ में है क्या?”
बूढ़े ने आले में पड़ी घड़ी की तरफ देखा,“ग्यारह बज गए।”
“फिर भी मरी नींद नहीं आती।” बूढ़ी बोली।
“बुढ़ापा है। समय का सूनापन काटता है।” बूढ़ा लेटते हुए, खिड़की की तरफ देखकर बोला,“देखो, चाँद खिड़की से झाँक रहा है।”
“तो इसमें नई बात क्या है?” बूढ़ी ने रूखे-स्वर में टिप्पणी की।
“अच्छा, तुम ही कोई नई बात करो।” बूढ़ा खीझकर बोला।
“अब तो मेरी मौत ही नई घटना होगी।”
कमरे में फिर घुटनभरा मौन छा गया।
“क्यों, मेरी मौत क्या पुरानी घटना होगी?” बूढ़े ने व्यंग्य और परिहास के मिले-जुले स्वर में प्रतिवाद किया।
“तुम चुपचाप सोते रहो।” बूढ़ी तेज स्वर में बोली,“रात में अंट-संट मत बोला करो!”
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
इस कहानी के उपयुक्त कोई तस्वीर मुझे नहीं मिली अगर आप कोई तस्वीर सुझा सकें तो ....
Abhi ye to aunty logo i cheaing hoti h bhai.. marne me bhi 'ladies first' wali facility chahiye... ye to mazaak hua bt sach me budhapa kashtaprad hota h
ReplyDeleteबहुत सुंदर तरीके से मंज़र खिंचा है. शुक्रिया
ReplyDeleteबात है कि सब एक दूसरे की सलामती चाहते हैं....
ReplyDeleteशेखर भाई आपने सचमुच बहोत ही भावप्रधान लघुकथा लिखी है
ReplyDeleteपोस्ट के लिए चित्र की कमी बिलकुल नहीं अखर रही क्योकि चित्र खुद ब खुद जेहन में बन रहा है........
बधाई
बस इतना ही कहूँगी कि बढ़िया लगा |
ReplyDeleteपुराना ब्लॉग मिलने की बधाई पर मेरी मानिये तो किसी एक पर ही सक्रीय रहिये |
अंशुमाला जी मैं इसी ब्लॉग पर सक्रिय हूँ .....
ReplyDeleteबढ़िया कहानी है दोस्त.. अब तो हर घर कि यही कहानी होती/होने जा रही है..
ReplyDeletekahani achhi lagi bas .....
ReplyDeleteपूरी तरह से साहित्यक अंदाज में लिखी गयी कहानी ....बहुत सुंदर चित्र खिंचा है आपने ..शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया....
ReplyDeleteबेहतरीन दृश्य खींचा है ...कबीले तारीफ.
ReplyDeleteअकेलेपन की व्यथा भरी सहज अभिव्यक्ति!!सहज सम्वाद से!!
ReplyDeleteदेर सबेर सभी के साथ यह होना है!
ReplyDeleteअब तो हर घर कि यही कहानी होती जा रही है! बहुत सुंदर|
ReplyDeleteआत्मीयता की अभिव्यक्ति में झूठे पड़ते शब्दों के अर्थ.
ReplyDeleteअकाट्य सत्य है ये सभी की ज़िन्दगी का।
ReplyDeleteबढ़िया कहानी है, अच्छा विश्लेषण किया है.
ReplyDeleteकभी समय निकालकर हमारे ब्लॉग//shiva12877.blogspot.com पर भी अपनी एक दृष्टी डालें .
शेखर भाई, आज शब्द कम पड गये इस कहानी की तारीफ के लिए,
ReplyDeleteइसलिए सिर्फ बधाई
मार्मिक!
ReplyDeleteमेरी आयु ६२ है। बुढापा नजदीक है। आजकल उसकी तैयारी कर रहा हूँ।
यह पहले कौन मरेगा वाली बात तो हम मियाँ - बीवी भी आपस में करने लगे हैं
पत्नि कहती है वह पहले जाना चाहती है।
हमें यह मंजूर है। इसलिए कि जो भी पहले चला जाएगा, दूसरे के लिए जीना मुश्किल हो जाएगा।
हम यह कष्ट और दुख उठाना चाहते हैं। पत्नि को इससे बचाना चाहते हैं।
बेटा और बेटी हमारी इन बातों से नाराज हो जाते हैं।
हाल ही में मैंने अपना वसीयत नामा तैयार किया था और अपनी बेटी और बेटे को इसका मसौदा भेजा था।
उनकी राय जानना चाहता था। दोनों रोने लगे! बेटी तो कहने लगी "शुभ शुभ सोचो! मरने की बात क्यों करते हो?"
अभी तो तुम लोगों को और बहुत जीना है!
क्या करे?
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
जिंदगी के अंतिम पड़ाव की सुलगती सच्चाई !
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावशाली प्रस्तुति !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
शेखर जी ... दिल को छु गयी आपकी कहानी .... कितना कुछ कह गयी ये ... वक़्त का कुछ पता नहीं चलता ... कब क्या दिन दिखा दे .... शुभकामनाएं
ReplyDeleteजीवंत लगा चित्रण ........ इसकी तस्वीर तो हर संवेदनशील व्यक्ति के मन में है.....
ReplyDeleteउम्र के साथ साथ प्रेम मे परिपकवता आती है , इसको बहु सधे ढंग से आपने चरित्रार्थ किया आपने ।
ReplyDeleteदिल को छु गयी आपकी कहानी .
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
कल 9 बजे सुबह देखे
ReplyDeleteविज्ञान पहेली -4 Science Quiz -4 (और Science Quiz -3 का उत्तर)
कहानी की मार्मिकता ने मन पर टीस की लकीर-सी खींच दी।
ReplyDeleteचित्र की क्या जरूरत है........आपके शब्दों ने खुद ही सजीव चित्रण कर दिया।
ReplyDeletebahut hi achi prastuti
ReplyDeletekayi baar yahan comment karne ki koshish kar chuki hoon....hota hi nahin...main hi bump off ho jaati hoon... :(
ReplyDeletei hope it goes thru this time....
bohot bohot cute likha hai yaara, just lovely. i kno bohot emotional moment hai, aur chutkulon ke peeche kitna dard aur akelapan hai, par..cute is the word that comes to mind....lovely post :)
drishya sajeev ho uthe hain...!
ReplyDeleteजीवन् की अंतिम वेला को बहुत अनूठे ढंग से लिखा है ... बेहतरीन ..
ReplyDeleteBahut Badiya prastuti ....
ReplyDelete