आपको कई लोग नेताओं को गाली देते हुए नज़र आ जायेंगे | इनमे से वो लोग भी हैं जो खुद या तो घूस लेते हैं या देते हैं.. शायद आप भी उन्ही में से हों...कभी न कभी मैंने भी ये काम ज़रूर किया है... क्या हम लोग भ्रष्ट नहीं है ????
क्या आप अपने को इमानदार समझते हैं ???? चलिए मैं आपसे कुछ सवाल पूछता हूँ और ये अपने आप साबित हो जायेगा कि आप भी उन नेताओं से किसी मामले में कम नहीं है और हाँ इन सवालों का जवाब आप मुझे नहीं अपने आप को दें...
१. क्या आपने अपनी ज़िन्दगी में कभी रिश्वत नहीं ली ??( ये प्रश्न उन लोगों के लिए है, जिन्हें ऐसा मौका मिला हो लेकिन इमानदारी के कारण ऐसा न किया हो ).. याद रहे रिश्वत, रिश्वत होती है चाहे १०० रुपये की हो या १० लाख की...
२. अब आते हैं काले धन की तरफ, नेताओं का काला धन तो सब को नज़र आता है लेकिन क्या आप उसमे सहयोग नहीं करते ??? ज़रा सोचिये हम दिन भर में न जाने कितने ही सामान खरीदते हैं उनमे से कितने की रसीद लेते हैं, याद रहे बिना पक्की रसीद के आपके द्वारा खरीदा हुआ हर सामान काले धन को बढ़ा रहा है... (इस कैटेगरी में भारत के लगभग शत-प्रतिशत लोग आते हैं)...
३. आपमें से कुछ लोग ऐसे भी होंगे जिनके सामने कभी न कभी कोई अपराध हुआ हो, आपमें से कितने लोगों ने इसकी गवाही पुलिस थाने में दी है ??? सब अपना पल्ला झाड़ लेते हैं. (अपराध को देख कर मुँह मोड़ लेना भी उतना ही संगीन अपराध है)...
४. अगर कुछ नैतिक मूल्यों की बात करें जैसे दहेज़ प्रथा, जाति के नाम पर वैमनस्य, आदि तो बाकि बचे खुचे लोग भी आ जायेंगे...
और भी कितने ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब आपको मुझे नहीं अपने आपको देना है...
मेरे एक सज्जन मित्र कहते हैं कि सभी नेताओं को फांसी पर चढ़ा देना चाहिए, लेकिन मेरे ख्याल से १२५ करोड़ भारतीयों में से ९० करोड़ लोगों को फांसी पर चढ़ा देना चाहिए (बाकी के बच्चे हैं).. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी... हाँ निश्चित रूप से इतने लोग तो भ्रष्ट हैं ही भारत में.. चाहे वो सड़क चौराहे पर २० रुपये लेता ट्रैफिक हवलदार हो या अरबों रुपये के घोटालेबाज नेता...
क्यूँ न हम पहले अपने आप को सुधार लें देश अपने आप सुधर जायेगा....
अगर इन सवालों के बाद भी आपको लगता है कि आप इमानदार हैं, तो सोच क्या रहे हैं ... आईये राजनीति में आईये, इस देश को आपके जैसे नेताओं की ज़रुरत है....
Disclaimer :- मैं अपने आपको कतई ईमानदार नहीं समझता इसलिए नेताओं की बुराई करने में भी थोडा पीछे ही रहता हूँ.. देश को सुधारने से पहले खुद को सुधारने का प्रयास अनवरत ज़ारी है...
बहुत अच्छा प्रयत्न किया आपने शेखर जी ! बस यही कहूंगा कि ये भ्रष्ट हरामखोर नेता भी तो हमारी ही उपज है !
ReplyDeleteबिलकुल शेखर भाई.... मैं भी आप ही की तरह सोचता हूँ... पहल हमारे अन्दर से ही होनी चाहिए, दूसरों को गाली देना तो बहुत आसान है...
ReplyDeleteक्यूँ न हम पहले अपने आप को सुधार लें देश अपने आप सुधर जायेगा....
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक बात कही है शेखर..
खुद को सुधारना जरुरी है
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ReplyDeleteहम सुधरेगें जग सुधरेगा। पर हम ऐसा करने को राजी हो तब न। क्योंकि हम वो ऑख के अंधे है जिसे दूसरों की कमियॉ तो खूब नजर आती है पर अपनी नहीं।
ReplyDeleteEXCELLENT SARCASTIC REMARK ON OUR OWN PSYCHE.I COMPLETELY AGREE WITH U.
ReplyDeleteशेखर जी ,
ReplyDeleteआपने सत्य लिखा है -शतप्रतिशत कटु सत्य । राजनेता इसलिये भ्रष्ट
हैं क्योंकि हमने उनको ऐसा करने का मौका दिया है और समाज भी
ऐसा ही है क्योंकि हम ही समाज हैं ।
सौ फ़ीसदी सहमत हूँ आपसे ...सुधरने की नसीहत देने की बजे यदि हम स्वयं सुधर जाएँ तो सब कुछ अपने आप सुधर जाएगा !
ReplyDeletesahi kaha dusron par aungli uthane se pahle khud kee taraf dekh lena chahiye.
ReplyDeleteमेरे दादा जी हमेशा कहा करते थे की जब हम १ ऊँगली दूसरों की तरफ उठाते हैं तो बाकि की बची हुई उंगलिया हमारी ही तरफ होती है
ReplyDeleteआपने सही कहा जब हम व्यस्था को कोसते हैं तो भूल जाते हैं की इस व्यवस्था को बनाने वाले भी हम ही हैं और हमें ही इस व्यस्था को ठीक भी करना होगा
इस नज़रिए से पूरे संसार के १०० प्रतिशत लोग इस दायरे में आ जायेंगे ...
ReplyDeleteshekhar ji aapki post bahut hi achhi lagi. mere man ki baat kah di.
ReplyDeletebaaki deshon ka nahi pata lekin ham indians bas dusron men kamiyan hi nikalna jaante hain. khud ko nahi dekhte ki ham kya hain aur hamara kitna contribution kitna hai.
thanks
शेखर जी एक बात बताओ ?
ReplyDeleteमैंने कभी न रिश्वत ली, ना दी. हमेशा टेक्स जमा करवाया. पक्की रसीद ली.
क्या मेरे द्वारा जमा किया गया टेक्स का सही उपयोग हुआ? या फिर किसी सरकार के मंत्री ने उस धन का दुरपयोग किया.
सरकार तो आदमियों से ही बनी है ना? फिर आप भारत (सरकार) का नाम लेकर पैरवी क्यों कर रहे हैं?
दोषी तो राजा ही माना जाता है समस्त भ्रष्ट आचरणों का.
यदि बड़े लोग ही आदर्श नहीं रखेंगे तो प्रजा कैसे उनका अनुसरण करेगी?
आपकी अपरिपक्व बातों का समर्थन करने वाले लोगों की भीड़ बेशक लग जाये उससे वास्तविकता तो नहीं बदलती ना!
कुछ प्रश्न चिहन अधिक लग गये वाक्यों पर..........
ReplyDeleteउनपर ध्यान बाद में गया........ लेकिन विश्वास है कि आप तक मेरी बात सही-सही पहुँची होगी.
जरूरी नहीं की हर ईमानदार के लिये राजनीति का द्वार खुला है. या बना है. रुचि भी अर्थ रखती है दोस्त!
शेखर जी
ReplyDeleteबिलकुल सही लिखा है !
हम सुधरेंगें जग सुधरेगा
ReplyDeleteआदरणीय प्रतुल जी,
ReplyDeleteआपकी बात शत-प्रतिशत सत्य है...
लेकिन मेरा कहना सिर्फ इतना ही है कि अगर आप खुद दोषी हैं तो दुसरे पर क्यूँ ऊँगली उठाते हैं...क्यूँ न पहले अपने आप को ही सुधारा जाए...
अगर हर व्यक्ति अपने आप को ही सुधार ले तो सब कुछ अपने आप सही हो जायेगा...
उसके बाद अगर इक्के दुक्के बच भी गए तो उनका खत्म बहुत आसान होगा....
और हाँ कुछ बातें रुचि-अरूचि से ऊपर उठ जाती हैं, वो हमें करना ही पड़ता है....
सही कहा शेखर जी ... यदि हम अपने नैतिक कर्तव्यों का पालन सही ढंग से करें तो ये देश कहाँ से कहाँ पहुँच जाए..
ReplyDeleteऔर मुझे अपनी बातों पर समर्थन करने वालों की भीड़ ज़मा नहीं करनी, अगर कोई एक भी इसे सकारात्मकता के साथ ले तो मेरा लिखना सफल हो जायेगा....
ReplyDeleteलक्ष्य सिर्फ इतना है की नेताओं के चरित्र पर ऊँगली उठाने से पहले अपना चरित्र सुधारा जाए, क्यूंकि नेता कोई आसमान से नहीं टपकते....वो इसी समाज का हिस्सा हैं....
मुझे अपनी बातों में कोई अपरिपक्वता नज़र नहीं आ रही |
समाज से ही देश बनता है, और हमें समाज सुधारना है, उसके लिए खुद से शुरुआत करनी पड़ेगी...
वास्तविकता यह है कि जब हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा। राजनिती बिना काले धन के चल ही नही सकती। उसे बदलने के लिये पहले चिउनाव प्रक्रिया बदलनी पडेगी। प्रतुल जी ने जो कहा सही है लेकिन मेरा निज़ी तज़ुरबा रहा है कि अगर भ्रष्टाचर नही करेंगे तो राजनिती मे एक कदम भी आगे नही चलने देंगे भ्रष्ट लोग। क्यों कि सभी ईमानदार हो नही सकते। ेआपसे बिलकुल सहमत हूँ कि समाज बदलने से ही देश के हालात बदलेंगे मगर बाबा राम देव जी जैसे लोग समाज बदलने ले कर निकले मगर जब धन इकट्ठा हुया ख्याती फैली तो राजनिती का चस्का लग गया। कौन बदलेगा समाज। हमे खुद अपने को बदलना होगा। शुभकामनायें।
ReplyDeleteनिर्मला जी
ReplyDeleteमैं ये कहाँ कह रहा हूँ की आप समाज सुधारिए, या देश सुधारिए.... अगर हम अपने आप को ही सुधार सके शायद यही पर्याप्त होगा....
शेखर सुमन जी आपने शालीनता से प्रतिउत्तर दिया, परिपक्वता का परिचय दिया.
ReplyDeleteक्षमा.......... आप की छवि एक उतावले नवयुवक की मन में बनी हुई थी.
धीरे-धीरे बदलेगी.
क्षमा मांग कर मुझे शर्मिंदा न करें... चाहे तो दो गालियाँ ही दे दें...
ReplyDeleteवैसे मेरी जो भी छवि आपके मन में है, उसका कारण शायद मैं जानता हूँ लेकिन शायद आपको पूरा प्रकरण ज्ञात न हो...
खैर उम्मीद है मेरी छवि सुधरेगी...
गाली आज़ तक जुबान से नहीं निकली. सुनी ही हैं केवल..क्या करूँ?
ReplyDeleteकाश आपकी यह पोस्ट हमारे ढेरों ब्लॉगर (खासकर कविगण) भी पढ़े. बहुत-बहुत बधाई.
ReplyDeleteआदरणीय प्रतुल जी,
ReplyDeleteये तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन हमने तो बहुत दी है और देते भी हैं... अब क्या करें, कुछ लोग सीधी भाषा जो नहीं समझते ...हा हा हा...:)
आदरणीय राहुल सर,
ReplyDeleteअब जितने भी लोग पढ़ पाएं...लेकिन उम्मीद है पढने के बाद कोई सकारात्मक उर्जा फ़ैल सके, वरना पढना व्यर्थ ही जायेगा....और मेरा लिखना भी....
किसी को सुधरने की नसीहत देने की बजाय यदि हम स्वयं सुधर जाएँ तो सब कुछ अपने आप सुधर जाएगा| धन्यवाद|
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDelete"गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!".
आपके सुझाव और संदेश जरुर दे!
बिलकुल ठीक कहा है आपने ! अफ़सोस जनक सच्चाई यही है ...
ReplyDeleteहाहाहा अबे बच्चा तुम्हारी पोस्ट पर लिखे प्रश्नों से मुझे एक ताजी ताजी घटना याद आ गई , मुझसे पूछा गया कि आप इतना लिखते पढते हैं तो फ़िर देश को सुधारने के लिए आगे क्यों नहीं आते आप लोग ?
ReplyDeleteमेरा जवाब था : भाई मेरे , अभी तो मैं खुद को ही ठीक करने में लगा हूं , मैं ठीक हो गया तो देश भी हो ही जाएगा क्योंकि असली समस्या तो " मैं " के ठीक होने की है ।
सुधरने का प्रयास ज़ारी रहना चाहिए, मैं भी इसी कोशिश में हूँ कि सुधर सकूं...
ReplyDeletekoi imaandaar mila kya ?
ReplyDeleteitna imaandaar milna mushkil to hogaa.... manumukin nahi kahehge..... kyunki imaandaar nahi bhi hai to abhi bhi banne me jayda deri nahi hui hai...... tumhari rasid wali baat bilkul sahi lagi..... aksar hum bhul bhi jaate hai..... lekin abse pakka dhayan rakhege......
ReplyDeleteBilkulsahi kaha shekhar ji.. bada hi accha laga yeh lekh padhkar.. Apka likhan manoranjan k sath sath samajik badlav bhi jarur layega..
ReplyDeletewish u all the best
मेरा विचार स्पष्ट है मैं चोर,बेईमान और भ्रष्टाचारी उसको नहीं मानता जो जीने की मूलभूत साधन के अभाव में ऐसे कुकर्म करने को मजबूर होता है बल्कि असल चोर,बेईमान और भ्रष्टाचारी वो है जो ऐसे कुकर्मों को रोकने के लिए लाखों रुपया की तनख्वाह पाता है और देश व समाज के हजारों करोड़ लूटकर ऐसे कुकर्म को कर अपना जीवन बचाने के लिए आम लोगों को मजबूर करता है........सबसे बरे कुकर्मी हैं उच्च संवेधानिक पदों पर बैठे भ्रष्टाचारी........
ReplyDeleteजय कुमार जी...
ReplyDeleteआपके विचार काफी हास्यास्पद प्रतीत हो रहे हैं, मतलब हम नहीं सुधरेंगे वाली हालत है.... जब हम खुद ही बिगड़े हुए हैं तो दूसरे के सुधरने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं.. जब हमारी नियत महज १०० या १००० रुपये के लिए डोल जाती है तो क्या उच्च पदों पर आसीन लोग राजा हरिश्चंद्र हैं जो करोड़ों रुपये के जंगल में संयम बना कर रख सकें....
ह्म्म्म....
ReplyDeleteधन्यवाद सुदर प्रस्तुति
ReplyDeleteकथनी और करनी मैं फर्क हुआ करता है. इस बीमारी को दूर करने पे ही सही हल संभव है.
नारी मनुष्य का निर्माण करती है.नारी समाज की प्रशिक्षक है और उसके लिए आवश्यक है कि सामाजिक मंच पर उसकी रचनात्मक उपस्थिति हो
aapse sahmat hun ! par ek baat hai ... sabko faansi pe chadha denge to sudhrega koun ?
ReplyDeleteइन्द्रनील जी ये पंक्ति जवाब है एक सज्जन के वक्तव्य का, उन्होंने कहा था कि सभी नेताओं को फांसी पर चढ़ा देना चाहिए... मैंने उसी का जवाब लिखा है बिना उनका नाम लिखे, वैसे इस और ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया...वहां एक पंक्ति जोड़ देता हूँ.... :)
ReplyDeleteअभिषेक भाई,
ReplyDeleteये ठंडी आह किसलिए, शायद अपनी और हम सबकी लाचारी पर ही आह भरी होगी आपने...
शेखर जी बहोत ही अच्छी पोस्ट लिखी है आपने
ReplyDeleteहमें दूसरे पर उंगली उठाने से पहले खुद को समझना होगा और अपने आप को बदलना होगा. हमेशा यही देखना होगा कि हम सही राह पे हैं या नहीं.
धन्यवाद
shkhar ji bahut dino baad aapke blog par aai ,karan ab tak aap bhi jaa gaye honge .atah deri ke liye pahle xhmachahti hun.
ReplyDeleteaapki post bahut hi achhi v jagrukata lane wali hai par ab is baat ka dava to nahi kar sakte ki kahan tak padh kar log iske liye ek naya kadam uthayenge.
lekin agar thode se bhi kisi baat ki achhi shuruvaat hoti hai to samjhiye ki koshish jarur kamyaab hogi.
main aaki baat se purntaya sahmat hun.
aise log bhi dehe va sune hain jo khud bhi galat kaam karte hain par mouke par apne aapko apne hi sharrif jatane ke liye sathiyon ko bura-kahne se nahi chukte .isko ham yu kah sakte hai ki bhend ki khal me bhendiya.
क्यूँ न हम पहले अपने आप को सुधार लें देश अपने आप सुधर जायेगा...
bahut hi sateek baat
bahut bahut dhanyvaad
पूनम जी,
ReplyDeleteकृपया क्षमा मांगकर मुझे शर्मिंदा न करें... आप आयीं अच्छा लगा....
शेखर मैं बताता हूँ हाँ मैं कई बार रिश्वत दी है... कई मौकों पर हाँ इतनी जरुर कोशिश करता हूँ की कम से कम दूँ.. जितनी बार भी दी है मज़बूरी में ही दी है..(वैसे हर कोई मज़बूरी में ही देता है रिश्वत , किसको पैसे देने अच्छे लगते है)...और इतना जरुर मैने कोशिश की है कई बार बहस तक की इस काम के आपको सरकारी सेलरी मिलती है रिश्वत क्यों दूँ ... लोग मजाक जरुर उड़ाते हैं... हमारा या जिसने भी ये बहस की है जरुर देखा होगा उसे दिमाग से पैदल समझ लिया जाता है... ना कहते हुवे दी है हमने रिश्वत... मैं कोई संत नहीं हूँ जब 100 रूपये की रिश्वत ना देने की वजह से मेरा सबकुछ तबाह होने के कगार पर खड़ा हो तो मैं रिश्वत दी है.... हाँ लेकिन इसके खिलाफ जितना बन सकता है खड़ा होने कार्यवाही करवाने की भी कोशिश की है ... स्कूल से लेके कॉलेज तक कहाँ तक कहूँ हर जगह तो यही होता है... आपके पास एक डेट होती है कोई फार्म जमा करने का उस डेट पर वो फार्म जमा करना जरुरी होता है चाहें जैसे भी जमा करना पड़े ... आखिरी डेट है और हम बहस करने में लगे हैं हम नहीं देंगे रिश्वत अपनी मार्कशीट के लिए ... लोग आपको अजीब तरीके से देखते हैं.... साला लग रहा है आदर्शवाद का नशा चढ़ा के आया है... ३-४ घंटे मैनेजर से लेके प्रेंसिपल तक के दरबार में गुहार लगा के आइये और.....फिर 50 की जगह 200 का रिश्वत देते हैं और अपने आपको कोश्ते फार्म भर कर डाक से भेज देते हैं....
ReplyDeleteसरकार इतने सारे प्रमाण पर मांगती है ..किसी भी सरकारी नौकरी के साथ .. यहाँ से प्रमाणित करावो वहां से ये सर्टिफिकेट बनावावो वो बन्ववो..और अक्सर उसे वर्जिनल ही चाहिए होगा... दौडिए तहसील के चक्कर लगाई किसी भी एक सिग्नेचर के रेट तयं है कहीं 50 लगते हैं कहीं 5 लगते हैं...ऐसे बहुत जगह हमने रिश्वत दी है ....
amen netavon se behtar nahi hun...
और कई बार झल्ला के फर्जी मोहर बनवा कर खुद ही सिग्नेचर कर दिए ... मेरे साथ के लोगों ने और सरकारी दफ्तरों की गलियों ने सिखा दिया ...कुछ काम फर्जी भी कर लेने चाहिए...
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