कहने को तो कल फ्रेंडशिप डे है. वैसे मुझे नहीं लगता कि कोई अच्छा दोस्त दोस्ती जताने के लिए इस दिन का इंतज़ार करता होगा... अमां यार दोस्ती का भी कोई दिन होता है, हम जैसे आवारा लोग तो हर दिन ही दोस्तों के साथ मटरगस्ती किया करते हैं... बाकी सारे रिश्तों के मामले में थोडा अनलकी ज़रूर रहा हूँ (इस बारे में फिर कभी) लेकिन दोस्तों ने कभी अकेला नहीं छोड़ा... स्कूल से लेकर आज तक न जाने कितने ही आवारा दोस्त मिले हैं (अरे आवारा कहके तो फिर भी बहुत इज्जत दे रहा हूँ, क्यूंकि इससे ज्यादा तारीफ करने पर ये पोस्ट सेंसर बोर्ड की नज़र में आ सकती है)... लेकिन छोटे शहर में रहने का एक नुकसान तो है स्कूल के दोस्त बिछड़ जाते हैं, सब अलग अलग कोने में निकल जाते हैं अपने भविष्य(?) को संवारने के लिए... फिर शायद ही कभी मुलाकात होती हो... आप सोच रहे होंगे अरे नहीं ऐसा कहाँ होता है, हाँ हाँ अब ऐसा नहीं होता... अब तो मोबाइल का दौर है, सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट का दौर है... जो हम जैसे दोस्तों को जोड़े रखता है चाहे हम कहीं भी रहे... ये सिर्फ ऑरकुट का ही चमत्कार है कि स्कूल ख़त्म होने के ७-८ सालों के बाद मेरे सभी स्कूल फ्रेंड्स दुबारा कॉन्टैक्ट में आये जिनसे मिलने की उम्मीद छोड़ ही चुका था... ये काम फेसबुक ने नहीं ही किया होगा किसी के लिए...(थैंक्स ऑरकुट)...
ये पोस्ट लिखते लिखते स्कूल की बातें फ्लैशबैक की तरह सामने से गुज़र रही हैं (अरे वैसा नहीं जैसा फिल्मों में दिखाते हैं, बैकग्राउंड म्यूजिक एंड ऑल, बस सिंपल सा ही है, लेकिन नोस्टालजिक करने के लिए काफी है)...
मेरे माँ-पापा दोनों हीं टीचर हैं, अब आप सोच ही सकते हैं घर पर अनुशासन की कैसी गंगा बहती होगी (पापा ६ साल पहले रिटायर हो गए), इसलिए क्लास ७ तक कभी माँ के स्कूल में या फिर पापा के स्कूल में ही पढाई की, तो वहां ज्यादा आवारागर्दी करने का मौका ही नहीं मिलता था (वैसे उस समय बच्चे बहुत सीधे हुआ करते थे, आज कल के बच्चों की तरह नहीं).. खैर ८ वीं क्लास में आखिरकार एक सरकारी हाई स्कूल में दाखिला हुआ मेरा... और घर से ये सख्त हिदायत मिली कि दोस्ती केवल पढने-लिखने वाले लड़कों से करनी है, मैं भी आज्ञाकारी बच्चे की तरह रोज अटेंडेंस के समय देखता था कि रौल नंबर १-२ किस लड़के का है (आपकी जानकारी के लिए बता दूं हमारी क्लास में करीब २४० स्टुडेंट्स थे, हाँ हाँ सब एक ही क्लास में बैठते थे, क्लास क्या थी, पूरा हॉल था).. आखिरकार ५-६ दिन में पता चल गया कि शुरुआत के १०-१२ पढंदर कौन कौन हैं...जल्दी ही दोस्ती भी कर ली... अब ज़ाहिर सी बात है इतने लड़के हैं तो सबसे आगे की बेंचों पर सीट छेकनी पड़ती थी, क्लास का दरवाज़ा खुलने से पहले ही हमलोग बन्दर की तरह(?) खिडकियों पर झूलकर (कमरा दूसरी मंजिल पर था) आगे की बेंच पर कब्ज़ा जमा लेते थे... हर रोज कोई न कोई पहले आ ही जाता था इस आवश्यक कार्य को अंजाम देने के लिए... आगे के दो बेंच अक्सर हमारे कब्ज़े में ही होते थे, हम मतलब मैं, राहुल, आनंद, विजय(नीकू), मिथिलेश, मुकेश, उज्जवल, सुमन, मनोज, अभिषेक (अगर किसी को भूल रहा हूँ तो प्लीज माफ़ कर देना) :P कुछ दोस्त और थे लेकिन वो कभी भी आगे की बेंच पर नहीं बैठते थे, (यू नो पढने में तेज बैक बेन्चर्स :)) आशीष, अलोक, साकेत, संजीव और मदन.. शायद इस पोस्ट पर आलोक या आशीष कोई कारण बता दे पीछे बैठने का, हो सकता है कुछ ऐसा ओबजर्व करता हो जो आगे की बेंच से देखना मुश्किल हो :P आशीष से उतनी ज्यादा बात नहीं होती थी, लेकिन फिर भी बहुत अच्छा दोस्त है वो मेरा, और आज भी बराबर कॉन्टैक्ट में बना हुआ है.. शायद हो सकता है यहाँ कमेन्ट भी कर दे इमोशनल होके... :)
कभी कभी जब सीट की किल्लत होती थी तब तो हम एक बेंच पर सात लड़के बैठते थे (कैन यु इमैजिन) ... हमारे एक टीचर ने हमारा नाम सप्तऋषि रख दिया था .. :) उस समय हमारे क्लास टीचर थे सी पी मेहता सर.. अंग्रेजी पढ़ाते थे, अब इतनी बड़ी क्लास में पढाना कोई आसान काम तो है नहीं, हमारे जैसे लुच्चे लड़के तो पहली बेंच पर बैठ के भी गप्पें लड़ाते थे तो आप सोच ही सकते हैं कि पीछे बैठने वाले लड़के क्या नहीं करते होंगे... मेहता सर ने इसके लिए अनूठा तरीका ढून्ढ लिया था, मैं तो अक्सर ही गप्प मारते पकड़ा जाता था, फिर मुझे बेंच पर खड़ा करते थे और बोलते थे फलाना चेप्टर को डिक्टेट करो...और खुद पूरी क्लास में टहलते हुए निगरानी करते रहते थे... न जाने कितने दिन मैं पूरी घंटी बेंच पर खड़ा रहा हूँ...
बड़े ही मस्ताने दिन थे, इतने सारे लड़कों में से शायद ही कोई पढने जाता होगा, हम तो जाते थे जीने के लिए, खेलने के लिए, एक दूसरे से मिलने के लिए... उन दोस्तों से मिलने के लिए जिनके बिना दिन अधूरा लगता था...ये वो दिन थे जब छुट्टियां अच्छी नहीं लगती थीं... ये वो दिन हैं जो अब लौट कर नहीं आ सकते...
मेरे माँ-पापा दोनों हीं टीचर हैं, अब आप सोच ही सकते हैं घर पर अनुशासन की कैसी गंगा बहती होगी (पापा ६ साल पहले रिटायर हो गए), इसलिए क्लास ७ तक कभी माँ के स्कूल में या फिर पापा के स्कूल में ही पढाई की, तो वहां ज्यादा आवारागर्दी करने का मौका ही नहीं मिलता था (वैसे उस समय बच्चे बहुत सीधे हुआ करते थे, आज कल के बच्चों की तरह नहीं).. खैर ८ वीं क्लास में आखिरकार एक सरकारी हाई स्कूल में दाखिला हुआ मेरा... और घर से ये सख्त हिदायत मिली कि दोस्ती केवल पढने-लिखने वाले लड़कों से करनी है, मैं भी आज्ञाकारी बच्चे की तरह रोज अटेंडेंस के समय देखता था कि रौल नंबर १-२ किस लड़के का है (आपकी जानकारी के लिए बता दूं हमारी क्लास में करीब २४० स्टुडेंट्स थे, हाँ हाँ सब एक ही क्लास में बैठते थे, क्लास क्या थी, पूरा हॉल था).. आखिरकार ५-६ दिन में पता चल गया कि शुरुआत के १०-१२ पढंदर कौन कौन हैं...जल्दी ही दोस्ती भी कर ली... अब ज़ाहिर सी बात है इतने लड़के हैं तो सबसे आगे की बेंचों पर सीट छेकनी पड़ती थी, क्लास का दरवाज़ा खुलने से पहले ही हमलोग बन्दर की तरह(?) खिडकियों पर झूलकर (कमरा दूसरी मंजिल पर था) आगे की बेंच पर कब्ज़ा जमा लेते थे... हर रोज कोई न कोई पहले आ ही जाता था इस आवश्यक कार्य को अंजाम देने के लिए... आगे के दो बेंच अक्सर हमारे कब्ज़े में ही होते थे, हम मतलब मैं, राहुल, आनंद, विजय(नीकू), मिथिलेश, मुकेश, उज्जवल, सुमन, मनोज, अभिषेक (अगर किसी को भूल रहा हूँ तो प्लीज माफ़ कर देना) :P कुछ दोस्त और थे लेकिन वो कभी भी आगे की बेंच पर नहीं बैठते थे, (यू नो पढने में तेज बैक बेन्चर्स :)) आशीष, अलोक, साकेत, संजीव और मदन.. शायद इस पोस्ट पर आलोक या आशीष कोई कारण बता दे पीछे बैठने का, हो सकता है कुछ ऐसा ओबजर्व करता हो जो आगे की बेंच से देखना मुश्किल हो :P आशीष से उतनी ज्यादा बात नहीं होती थी, लेकिन फिर भी बहुत अच्छा दोस्त है वो मेरा, और आज भी बराबर कॉन्टैक्ट में बना हुआ है.. शायद हो सकता है यहाँ कमेन्ट भी कर दे इमोशनल होके... :)
कभी कभी जब सीट की किल्लत होती थी तब तो हम एक बेंच पर सात लड़के बैठते थे (कैन यु इमैजिन) ... हमारे एक टीचर ने हमारा नाम सप्तऋषि रख दिया था .. :) उस समय हमारे क्लास टीचर थे सी पी मेहता सर.. अंग्रेजी पढ़ाते थे, अब इतनी बड़ी क्लास में पढाना कोई आसान काम तो है नहीं, हमारे जैसे लुच्चे लड़के तो पहली बेंच पर बैठ के भी गप्पें लड़ाते थे तो आप सोच ही सकते हैं कि पीछे बैठने वाले लड़के क्या नहीं करते होंगे... मेहता सर ने इसके लिए अनूठा तरीका ढून्ढ लिया था, मैं तो अक्सर ही गप्प मारते पकड़ा जाता था, फिर मुझे बेंच पर खड़ा करते थे और बोलते थे फलाना चेप्टर को डिक्टेट करो...और खुद पूरी क्लास में टहलते हुए निगरानी करते रहते थे... न जाने कितने दिन मैं पूरी घंटी बेंच पर खड़ा रहा हूँ...
बड़े ही मस्ताने दिन थे, इतने सारे लड़कों में से शायद ही कोई पढने जाता होगा, हम तो जाते थे जीने के लिए, खेलने के लिए, एक दूसरे से मिलने के लिए... उन दोस्तों से मिलने के लिए जिनके बिना दिन अधूरा लगता था...ये वो दिन थे जब छुट्टियां अच्छी नहीं लगती थीं... ये वो दिन हैं जो अब लौट कर नहीं आ सकते...
कुछ भी नहीं भूला हूँ मैं, चाहे वो हर सुबह अपने घर के बाहर आनंद का इंतज़ार करना ताकि उसकी सायकिल पर आराम से बैठ के स्कूल जाऊं, चाहे वो उज्जवल की जिंदादिली या फिर नीक्कू के पकाऊ जोक्स (finally i am admitting :)) हा हा हा.. :D अरे हाँ सुमन की वो लम्बी जीभ जिसे वो बड़े आराम से नाक तक की यात्रा कराके ले आता था, वो किसी कौतुहल से कम नहीं थी... उफ्फ्फ्फ... वो दिन ... अबे गधों तुम लोगों की बहुत याद आती है यार... आशीष इसी शनिवार बंगलौर आ रहा है मिलने के लिए, कुछ और पुरानी बातें ताज़ा होंगी...
आप सभी को फ्रेंडशिप डे की बधाई (हालाँकि मैं ऐसे किसी भी दिन को मानने से इनकार करता हूँ)...
आप सभी को फ्रेंडशिप डे की बधाई (हालाँकि मैं ऐसे किसी भी दिन को मानने से इनकार करता हूँ)...
"आप सभी को फ्रेंडशिप डे की बधाई (हालाँकि मैं ऐसे किसी भी दिन को मानने से इनकार करता हूँ)..."
ReplyDeleteहमारा भी यही मानना है। वैसे आपको भी शेखर भाई!
अपने जो भी दोस्त हैं वो सब ब्लोगिंग की देन हैं :)
प्रस्तुतीकरण बहुत अच्छा लगा।
अजीब तरह से गुजर रहा है ये वीकेंड...केवल और केवल यादों में..और उसपर आपकी ये पोस्ट...सही में कुछ कुछ और अपने दोस्तों की बात भी याद आ गयी...
ReplyDeleteदोस्तों से जुड़ी कोई भी पोस्ट पढ़ के दोस्तों की याद आनी लाजमी है..
इस दिन को सार्थक बनाती पोस्ट जो बीते दिनों की ओर बरबस खींच ले जाती है।
ReplyDeleteबीते दिनों की याद दिलाती हुई पोस्ट , सलामत रहे दोस्ताना तुम्हारा .......
ReplyDeleteबड़े प्यार से याद किया है दोस्तों को....आपलोग तो फिर भी लकी हो....ऑर्कुट और फेसबुक का सहारा तो है....हमें तो बस यादों का ही सहारा है..:(
ReplyDeleteऐसे ही आपकी दोस्ती बनी रहे....और फलती-फूलती रहे...
Happy Friendship Day!!!
रश्मि दी
ReplyDeleteउतना भी लकी नहीं हूँ , कई दोस्त ऐसे भी हैं जिनसे कोई कॉन्टैक्ट नहीं है, उज्जवल BSF में है जहाँ न वो नेट कर सकता है और न ही फोन रख सकता है... वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त है और उसकी ही कोई खबर नहीं... और भी कई ऐसे दोस्त हैं... खैर... लड़कियों के साथ अक्सर ऐसा हो जाता है न...
दोस्ती की बस यादें ही रह जाती हैं... फिर मिलना तो जैसे नामुमकिन ही हो जाता है....
thank you, thank you, thank you so much...
ReplyDeletesach batau, mujhe bhi jab bichhde dost milte hain tab lagta hai ki unhen kya-kya bata do... sab ro lo, sab hans lo...
mujhe bhi Orkut n fb ne kai doston se milaya, bt kuch khas abhi bhi meri life se nadarad hain, jinhe main abhi bhi khoj rahi hu...
aur aapki ye post padhkar bahut si purai yaadein taza ho gayi...
HAPPY FRIENDSHIP DAY... :)
बहुतै बढ़िया....दोस्ती का वाकई में कोई दिन नहीं हों सकता .... सारे दोस्त शाम ७ बजे मिलते हैं...रात में ४ बजे तक खाते, पीते, नाचते, गाते घूमते और हंसते हैं...दिन तो सोने में चला जाता है...है कि नहीं????
ReplyDeleteफ्रेंडशिप दे पर आपको और आपके मित्रों को शुभकामनायें. अच्छा लगा संस्मरण.
ReplyDeleteआपके गधों को मेरी बहुत बहुत शुभकामनायें।
ReplyDeleteप्रस्तुतीकरण बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteमित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये
ReplyDeleteबहुत सुंदर ! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपके पास दोस्तो का ख़ज़ाना है,
पर ये दोस्त आपका पुराना है,
इस दोस्त को भुला ना देना कभी,
क्यू की ये दोस्त आपकी दोस्ती का दीवाना है
⁀‵⁀) ✫ ✫ ✫.
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/▌*˛˚ღ •˚HAPPY FRIENDSHIP DAY MY FRENDS ˚ ✰* ★
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!!मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!!
फ्रेंडशिप डे स्पेशल पोस्ट पर आपका स्वागत है!
मित्रता एक वरदान
शुभकामनायें
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete:( m missin ma school.. :(
ReplyDeleteM sure ur frnds will b on clioud 9 after reading dis :)
@monali
ReplyDeletethose guyz hardly read my blog... i hope they will get some time to see this special post written for them....
ऑरकुट की महिमा हमारा जेनरेशन ही समझ पायेगा...मुझे भी अपने सारे दोस्त ऑरकुट पर मिले...स्कूल के समय तो सोचा भी नहीं था की उनसे कभी, कहीं मुलाकात भी होगी. पोस्ट पढ़ कर मेरी भी बहुत सी यादें वापस आ गयी..बिन बुलाये मेहमान जैसे :)
ReplyDeleteशेखर सुमन जी
ReplyDeleteयादें हमारी धरोहर है वे हमें हंसती हैं रुलाती हैं और न जाने कब क्या ....सुन्दर पोस्ट
भ्रमर ५
कुछ भी नहीं भूला हूँ मैं, चाहे वो हर सुबह अपने घर के बाहर आनंद का इंतज़ार करना ताकि उसकी सायकिल पर आराम से बैठ के स्कूल जाऊं, चाहे वो उज्जवल की जिंदादिली
आदरणीय शेखर सुमन जी
ReplyDeleteकाफी अच्छा आलेख.प्रस्तुतीकरण बहुत अच्छा लगा!
आज का आगरा और एक्टिवे लाइफ ब्लॉग की तरफ से रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं
सवाई सिंह राजपुरोहित आगरा
आप सब ब्लॉगर भाई बहनों को रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई / शुभकामनाएं
Nostalgic Indeed!
ReplyDeleteAshish