तुम तो बावरी नदी सी हो
कभी तो होती हो शांत
फूलों की पंखुड़ियों सी,
और कभी हो जाती हो चंचल,
जैसे शाम में समुद्र की लहरें...
तुम तो उस पतंग जैसी हो,
जो उड़ना चाहती है आसमान में
और थामे हो मुझे
एक डोर की तरह...
तुम तो पगली सी हो,
हर शाम बैठे बैठे
रेत के महल बनाती हो
लगाती हो उसमे एक चारपाई,
और मेरे ख्यालों को ओढ़कर प्यार से सो जाती हो...
तुम तो खुशबू बिखेरती उस हवा सी हो
घर के पीछे वाले आँगन में
प्यार के फूल लगाती हो
और हर सुबह उन प्यार भरे फूलों का एक गुलदस्ता
मेरे सिरहाने रख कर जाती हो...
और मैं...
मैं तो हमसफ़र हूँ तुम्हारा
हर पल तुम्हें ही जीता रहता हूँ,
हाथों में हाथ लिए
तुम्हें आसमान की सैर कराता हूँ,
तुम हंसती हो, खिलखिलाती हो
इतराती हो, इठलाती हो....
कभी कभी शरमा कर खुद में सिमट जाती हो...
मैं तो वो आवारा बादल हूँ
जो अपनी बरसात अपने संग लिए चलता है..
कभी तो होती हो शांत
फूलों की पंखुड़ियों सी,
और कभी हो जाती हो चंचल,
जैसे शाम में समुद्र की लहरें...
तुम तो उस पतंग जैसी हो,
जो उड़ना चाहती है आसमान में
और थामे हो मुझे
एक डोर की तरह...
तुम तो पगली सी हो,
हर शाम बैठे बैठे
रेत के महल बनाती हो
लगाती हो उसमे एक चारपाई,
और मेरे ख्यालों को ओढ़कर प्यार से सो जाती हो...
तुम तो खुशबू बिखेरती उस हवा सी हो
घर के पीछे वाले आँगन में
प्यार के फूल लगाती हो
और हर सुबह उन प्यार भरे फूलों का एक गुलदस्ता
मेरे सिरहाने रख कर जाती हो...
और मैं...
मैं तो हमसफ़र हूँ तुम्हारा
हर पल तुम्हें ही जीता रहता हूँ,
हाथों में हाथ लिए
तुम्हें आसमान की सैर कराता हूँ,
तुम हंसती हो, खिलखिलाती हो
इतराती हो, इठलाती हो....
कभी कभी शरमा कर खुद में सिमट जाती हो...
मैं तो वो आवारा बादल हूँ
जो अपनी बरसात अपने संग लिए चलता है..
bahut acha laga padhkar....mai to ekdum khush ho gai....:-)
ReplyDeleteकविता और चित्र दोनों एक से बढ़ कर एक.
ReplyDeleteअद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! शेखर भाई
ReplyDeleteकोमल भावों से सजी ..
ReplyDelete..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
सुन्दर...सुन्दर...सुन्दर...!!
ReplyDeleteबावरी और आवारा बादल दोनों ही एक से बढ़कर एक हैं... लाज़वाब प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteअनु
नहीं अलग अस्तित्व तुम्हारा,
ReplyDeleteहम माला में गँुथे हुये तृण।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteप्यारे से अहसास
और कोमल भाव से सजी बहुत सुन्दर रचना....
:-)
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
जय हो !
ReplyDeleteबावरी पगली पतंग बना के उड़ा दिया
कुछ नहीं बोलेगी करके अपने को भी
कविता के अंत में आवारा बादल दिखा दिया ।
अच्छी है !
काव्य की मर्म के साथ भवनिष्ठता प्रशंसनीय है ....
ReplyDeleteसुन्दर चित्र को सजीव करती हुई रचना बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमैं तो वो आवारा बादल हूँ
ReplyDeleteजो अपनी बरसात अपने संग लिए चलता है..
बहुत सुंदर विचार. अच्छी कविता.
कितनी खुब्सुराते से भावों को पिरोया है आपने !
ReplyDeleteबहुत खूब ..
मैं तो वो आवारा बादल हूँ
ReplyDeleteजो अपनी बरसात अपने संग लिए चलता है..
बहुत सुंदर प्रस्तुति !!
nice
ReplyDeleteवाह ... अनुपम भाव लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeletegood one :)
ReplyDeleteप्रभावशाली ...
ReplyDeletebahut pyaari kavita hai shekhar ji...!
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