करीब 7-8 साल पहले की बात है... पटना में रहता था, छुट्टियों में घर जा रहा था... उन दिनों पटना से कटिहार के लिए जनशताब्दी एक्सप्रेस चलती थी, चेयर यान होता था.. रिजर्वेशन काउंटर पर स्पेशल रिक्वेस्ट से विंडो सीट ली थी, बाहर के खूबसूरत मौसम का लुत्फ़ उठाने के इरादे से... बमुश्किल फतुहा स्टेशन क्रोस हुआ होगा कि सामने की सीट पर होते शोर से ध्यान भंग हुआ...
4-5 लड़के अपनी-अपनी डीगों की दूकान खोल कर बैठे थे... बात मोबाईल के टॉपिक से शुरू हुयी, उन दिनों किसी भी मोबाईल का होना अपने आप में ही स्टेटस सिम्बल था...
दो शिक्षक मेरी ज़िन्दगी के... |
"अरे हम नया मोबाईल खरीदे नोकिया 6600...."
"क्या बात कर रहा है ???? "
"हाँ बे इसमें कैमरा भी है, विडियो भी चलता है मस्त...."
"अबे दिखा न.."..
फिर एक-आध घंटे तक सब गाने और विडियो इंजॉय करते रहे... फिर उसके बाद सब अपने अपने खानदान के रुतबे के बारे में बात करने लगे.. किसी ने कहा मेरे पापा डॉक्टर हैं, कोई अपने चाचा को सरकारी अफसर बता रहा था तो कोई बैंक मनेजर... उनके सो काल्ड रिश्तेदारों की कितनी पहुँच और पहचान है वो भी बता रहे थे... किसी को पूरा गाँव जानता था तो किसी को पूरा जिला.. उन डीगों पे जाऊँगा तो पूरा पन्ना इसी में लग जाएगा... बस समझ लीजिये कि गुंडे-मवालियों से लेकर मंत्री तक से पहचान थी उनकी...
इसी बीच उनमें से किसी लड़के ने दबी आवाज़ में कहा कि "मेरे पापा तो टीचर हैं... "
थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद एक लड़के ने कहा, मस्त है यार, जो भी हो यार मास्टरी में बहुत आराम है लेकिन... आराम से जाओ कोनो काम नहीं, दिन भर गप्पें मारो, स्वेटर बुनना है तो वो भी कर लो... बच्चों को दो-तीन ठो सवाल दे दो हल करने को और दिन खतम...
फिर सिलसिला शुरू हुआ अपने अपने रिश्तेदारों के काम गिनाने का...
"भई हमरे पापा को तो कभी कभी रात-रात को अस्पताल जाना पड़ता है..."
"अरे मत पूछ हमरे चाचा के घर में तो दिन भर कोई न कोई आता ही रहता है, रविवार को भी कोई छुट्टी नहीं..."
"अरे अभी क्लोजिंग चल रहा है न तो पापा तो बैंके में रहते हैं हमेशा..."
वो बेचारा लड़का चुपचाप उनकी बातें सुन रहा था... और वो अपनी कहानियां सुनाये जा रहे थे... मेरा दिल किया मैं इस वार्तालाप में कुछ बोलूँ, लेकिन बेवजह फटे में टांग डालने का मन नहीं था मेरा...
इसी बीच बरौनी आ गया, उन दिनों वहां इंजन चेंज होता था तो करीब ४५ मिनट रूकती थी ट्रेन... सब नीचे उतरकर इधर उधर टहला करते थे... प्लेटफोर्म पर टहलते हुए मैंने उस लड़के को देखा, पता नहीं क्या मन हुआ उसके पास गया और बस इतना ही बोला...
"अरे टेंशन मत लीजिये, हमरे पापा भी टीचर हैं और ई सब लड़का लोग जानता नहीं है कि एकरा डॉक्टर, अफसर, मनेजर सब पढ़ा कोनो न कोनो टीचरे से है..."
"अरे टेंशन मत लीजिये, हमरे पापा भी टीचर हैं और ई सब लड़का लोग जानता नहीं है कि एकरा डॉक्टर, अफसर, मनेजर सब पढ़ा कोनो न कोनो टीचरे से है..."
ये बोलकर मैं बिना उसका रिएक्शन देखे आगे बढ़ गया... जब ट्रेन में वापस आया तो वो मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था, शायद उसे अपने पापा की अहमियत समझ में आ गयी थी...
खैर ये तो था एक बीता किस्सा, लेकिन निजी तौर पर भी मुझे वाकई इस बात पर गर्व होता है कि मेरे माँ-पापा दोनों शिक्षक के रूप में सेवानिवृत हुए...
पता नहीं आपमें से कितने लोगों ने दो-दूनी चार फिल्म देखी हो... एक मिडल क्लास शिक्षक की कहानी है.. थोड़ी कॉमेडी भी है और थीम भी अच्छा है... आपको पसंद आएगी... :-)
चलते-चलते...
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ये पोस्ट देर से सिर्फ इसलिए पोस्ट कर रहा हूँ क्यूंकि वो सिर्फ एक दिन याद करने लायक नहीं है... वो तो हमेशा आपके साथ हैं जब भी आप ज़िन्दगी में किसी भी दिन कुछ भी कुछ हासिल करते हैं... :-)
याद रखिये, दुनिया
में सिर्फ और सिर्फ शिक्षक के पास ही ऐसी जादुई क्षमता है कि एक अच्छे
खासे इंसान को मुर्गा बना सके... एंड ऑन अ सीरियस नोट, एक गधे को इंसान बना
सके...
Happy Teacher's Day Life... :)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteअरे टेंशन मत लीजिये, हमरे पापा भी टीचर हैं और ई सब लड़का लोग जानता नहीं है कि एकरा डॉक्टर, अफसर, मनेजर सब पढ़ा कोनो न कोनो टीचरे से है..."
ReplyDeleteएकदम सही बात बढ़ियाँ पोस्ट..
दो दुनी चार मूवी भी बहुत अच्छी है..
:-)
Reena जी, कया आप अभी तक हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {साप्ताहिक चर्चामंच} की चर्चा हम-भी-जिद-के-पक्के-है -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-002 मे शामिल नही हुए क्या.... कृपया पधारें, हम आपका सह्य दिल से स्वागत करता है।
Deleteपढ़ के मज़ा आया ..........शैली ........ पहली लाइन ने ही बाँध लिया ........टीचिंग दरअसल एक शौक है ......जिसे पढने पढ़ाने का शौक नहीं वो टीचर नहीं बन सकता ......पर आजकल जिसने बीएड नहीं किया वो टीचर नहीं बन सकता .......जैसे मैं ........
ReplyDeleteमैं बहुत लकी हूँ .... टीचर बन गई ... ऐंवें ही ... :-)
ReplyDeleteसचमुच यह गर्व की बात है...अपने पढाये हुए बच्चों को शीर्ष पर देखने से बड़ा आत्मिक सुख कुछ और नहीं .
ReplyDeleteवाह शेखर जी, वाकई जवाब नहीं आपका. बेहतरीन पोस्ट. बहुत अच्छा लगा पढ़कर. मेरी मम्मी भी टीचर है. सच बताऊ तो पढ़ लिख सब लेते है लेकिन टीचर बनना सबके बस की बात नहीं. शानदार पोस्ट. :)
ReplyDeleteजीवन में टीचर क अहमियत का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि हर व्यक्ति ज़िन्दगी में कम से कम एक टीचर को तो उम्र भर याद ज़रूर रखता है...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अब रेलवे ऑनलाइन पूछताछ हुई और आसान - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर ..
ReplyDeleteमेरी माँ भी शिक्षक रही हैं, महत्व ज्ञात है, सब वहीं से ही पढ़ कर आगे निकलते है।
ReplyDeleteगुरु के महत्त्व को एक भारतीय तो नहीं भुला सकता अपने जीवन काल में कभी ... अच्छी पोस्ट है ...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति .
ReplyDeleteभाई अपने पापा जी भी टिचर हैं...
ReplyDeletereally nice one..loved to read this..
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट
ReplyDeleteशेखर ..टीचर लोग के बारे में इतना सुन्दर लिखे हो की अब अपने टीचर होने का गर्व दुगना हो गया है.....खूब खुश रहो....और कामयाब रहो.....
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