मेरे कमरे की खिड़की को बंद हुए सालों गुज़र गए... अक्सर हवाएं उस खिड़की
से टकराती रहती हैं, जैसे पूछ रही हों ... ऐसा क्या हुआ.... ऐसा क्यूँ
हुआ... उन गुज़रे लम्हों को यादो की किताब में कैद कर एक अलमारी में बंद कर
दिया है, जब भी आओ वो किताब ले जाना... "वक्त की दीमक" धीरे धीरे उन्हें
"खत्म करती जा रही है!!"
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एक बंद अँधेरा सा कमरा, उसमे धीमी धीमी सी नीले रंग की रौशनी....
सीलन भरी दीवारों पर एक तस्वीर ... थोड़ी धुंधली...
अचानक से बहुत तेज़ हवा चलती है, और खिड़की का पल्ला चरचराता हुआ खुल जाता है....
कमरा अचानक से तेज़ रौशनी की चकाचौंध से भर जाता है...
और वो तस्वीर ... पता नहीं किसकी थी... अगर कुछ दिखता भी है तो पानी के धब्बे पड़े ऐनक के पीछे से झांकती एक जोड़ी बूढी आखें....
कुछ सपने भी अजीब होते हैं...
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यूँ ही साथ चलते चलते शाम-ए-हयात आएगी,
हमारे बिछड़ने का पैगाम साथ लाएगी...
क्यूंकि घास पर हमेशा के लिए ओस नहीं रहती.... :( :(
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एक अकेली रात है, आप तारों के साथ बैठे हैं... फिर जैसे ही चलने की कोशिश करते हैं चाँद चुपके से नारियल के पत्तों की ओट से झांकते हुए पूछता है, मेरी परछाईयों पर ये मोहब्बत की चादर किसने चढ़ा दी है... मैं भी चुपके से कह देता हूँ ये परछाईं नहीं, ये तो रौशनी है मेरे प्यार की जो मुझे तब रौशन करती है जब मैं अकेला होता हूँ...
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कोशिश कर रहा हूँ कि ये बंद मुट्ठी खोल दूं, जितनी ही शिद्दत से इसे कैद करने में लगा हूँ, उतनी ही तेजी से रेत हाथों से निकली जा रही है... लेकिन ये हवा इतनी तेज है कि अगर मुट्ठी खोल भी दी तो भी ये हवा सारी रेत उड़ा ले जायेगी...
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मैंने तुम्हारी नींद पर एक पहरेदार लगा रखा है,
तुम्हारे इन सपनो को पलकों पर बिठा रखा है..
बिताता हूँ दिन अपने, तेरी मुस्कराहट के बाग़ में,
खुद के चेहरे को खंडहर बियाबान बना रखा है...
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कितनी बार ही सोचा आखिर जन्मों की गिनती को हम सात तक ही क्यूँ सिमित कर देते हैं, तुम्हारी आखों में गहरे उतर कर देखा तो जाना इनमे न जाने कितने हज़ार जन्मों की ज़िन्दगी छुपी है मेरी...
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एक बंद अँधेरा सा कमरा, उसमे धीमी धीमी सी नीले रंग की रौशनी....
सीलन भरी दीवारों पर एक तस्वीर ... थोड़ी धुंधली...
अचानक से बहुत तेज़ हवा चलती है, और खिड़की का पल्ला चरचराता हुआ खुल जाता है....
कमरा अचानक से तेज़ रौशनी की चकाचौंध से भर जाता है...
और वो तस्वीर ... पता नहीं किसकी थी... अगर कुछ दिखता भी है तो पानी के धब्बे पड़े ऐनक के पीछे से झांकती एक जोड़ी बूढी आखें....
कुछ सपने भी अजीब होते हैं...
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यूँ ही साथ चलते चलते शाम-ए-हयात आएगी,
हमारे बिछड़ने का पैगाम साथ लाएगी...
क्यूंकि घास पर हमेशा के लिए ओस नहीं रहती.... :( :(
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एक अकेली रात है, आप तारों के साथ बैठे हैं... फिर जैसे ही चलने की कोशिश करते हैं चाँद चुपके से नारियल के पत्तों की ओट से झांकते हुए पूछता है, मेरी परछाईयों पर ये मोहब्बत की चादर किसने चढ़ा दी है... मैं भी चुपके से कह देता हूँ ये परछाईं नहीं, ये तो रौशनी है मेरे प्यार की जो मुझे तब रौशन करती है जब मैं अकेला होता हूँ...
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कोशिश कर रहा हूँ कि ये बंद मुट्ठी खोल दूं, जितनी ही शिद्दत से इसे कैद करने में लगा हूँ, उतनी ही तेजी से रेत हाथों से निकली जा रही है... लेकिन ये हवा इतनी तेज है कि अगर मुट्ठी खोल भी दी तो भी ये हवा सारी रेत उड़ा ले जायेगी...
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मैंने तुम्हारी नींद पर एक पहरेदार लगा रखा है,
तुम्हारे इन सपनो को पलकों पर बिठा रखा है..
बिताता हूँ दिन अपने, तेरी मुस्कराहट के बाग़ में,
खुद के चेहरे को खंडहर बियाबान बना रखा है...
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कितनी बार ही सोचा आखिर जन्मों की गिनती को हम सात तक ही क्यूँ सिमित कर देते हैं, तुम्हारी आखों में गहरे उतर कर देखा तो जाना इनमे न जाने कितने हज़ार जन्मों की ज़िन्दगी छुपी है मेरी...
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bahut bahut aap ko dil se dhanywaad shekhar bhaiya ....ham logo tak itni pyari pyari bate pachane e liye ...! sachmuch padh kar maja aa jata hai ..! aur hame to besabri se intzaar rahta hai aap ke aane wale "Adhoore Khaton" ka..!
ReplyDeleteये गिरहें ही तो बांधें हुए है कतरा कतरा ज़िन्दगी को......
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है शेखर !!
सस्नेह
अनु
कविता,डायरी से अंश - कोई यूँ ही नहीं लिखता .... लिख दे तो यकीनन कवि नहीं,डायरी के पन्नों को समझनेवाला नहीं
ReplyDeleteकुछ समझा नहीं... :(
Deleteकभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है ... गिरहों की वजह से ही तो आँखों से मोती झड़ते हैं ....
ReplyDeleteआज तुमको पढ़ते हुए ,न जाने क्यों ,पर अमृता प्रीतम की याद आ गयी ......
ReplyDeleteबहुत अच्छे ...सुंदर सुंदर छोटे छोटे सहेज़नीय टुकडे । सही जा रहे हो बचवा :)
ReplyDeleteमेरे दिमाग में आज डाउनलोड होते विचार
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने, अनुलता जी की बात से सहमत हूँ। वाक़ई यह गिरहें ही तो बांधे हुए हैं ज़िंदगी को कतरा कतरा ....
ReplyDeletebahut hi achcha likha hai mahaan kavi Shekhar ji ne...:)
ReplyDeleteYe tukda tukda khayaal.. Ye qatra qatraa ehasaas... Ye bikhre bikhre jazbaat.. Saari gaanthein lagta hai bas ek sire se bandhi hain... Aur kya - MOHSBBAT!!
ReplyDeleteव्हाट्सअप पर एक मजेदार सन्देश मिला "अच्छे मित्र कभी अपने मित्र को अकेलापन महसूस होने नहीं देते है , वो बिच बिच में उन्हें डिस्टर्ब करते रहते है " ऐसे मित्रो की कमी जान पड़ती है ।
ReplyDeleteकविता कि गहराइया समझना अपने बस कि बात नहीं है , हम तो अपने मित्रो को इतना डिस्टर्ब करते है कि वो अकेलेपन पर कभी कुछ भी नहीं लिख सकते है :)))
चलो शुकर है तिन दिन प्रयास करने के बाद टिप्पणी प्रकाशित हो ही गई ।
ReplyDeleteअगर तुमने कभी , नदी को गाते नही
ReplyDeleteप्रलाप करते हुए देखा हैं
और वहाँ कुछ देर ठहर कर
उस पर गौर किया हैं
तो मैं चाहूंगी तुमसे कभी मिलूं!
अगर तुमने पहाडों के
टूट - टूट कर बिखरने का दृश्य देखा हैं
और उनके आंखों की नमी महसूस की हैं
तो मैं चाहूंगी तुम्हारे पास थोडी देर बैठूं !
अगर तुमने कभी पतझड़ की आवाज़ सुनी हैं
रूदन के दर्द को पहचाना हैं
तो मैं तुम्हे अपना हमदर्द मानते हुए
तुमसे कुछ कहना चाहूंगी! …… स्व. सरस्वती प्रसाद
कहते-सुनते हैं कुछ आज की प्रतिभाओं से =
http://bulletinofblog.blogspot.in/2013/11/21.html
http://www.parikalpnaa.com/2013/12/blog-post_3.html
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