इन दिनों कुछ अच्छा नहीं लगता.... आँखों में कोई भी लम्हा ढंग से ठहर नहीं पाता, कोई गीत सुनना चाहता हूँ तो सुर इधर के उधर लगने लगते हैं.... कुछ लिखने बैठता हूँ तो शब्द ठहरते ही नहीं कागज पर... ये कोरा कागज मुझे टुकुर-टुकुर ताकने लगता है.... सोचता हूँ थोड़ी देर के लिए धीमी सी आवाज़ में कोई गजल लगा कर शांति से बैठूँ तो ये ख़यालों की उड़ान तुम्हारी तरफ छिटका ले जाती है.... ऐसा नहीं कि तुम्हारे बिना कोई काम रुका है मेरा, लेकिन एक खालीपन ज़रूर छोड़ गयी हो मेरे आस-पास... सच कहूँ तो तुम्हारी बहुत याद आती है, यहाँ इस शहर में एक तुम्हीं तो हो जिससे चार बातें करके ज़िंदा होने का एहसास होता है... वरना तो अधिकतर दुनिया अपना स्वार्थ साधने में जुटी है... ऑनलाइन भी किसी से बात करना चाहो तो सब व्यस्त हैं, फुर्सत ही नहीं किसी एक के पास भी... पुरानी तस्वीरें पलटता हूँ तो आँखों के कोर नम होने लगते हैं, ऐसा लगता है किसी बेगाने से शहर में आकर बस गया हूँ...
सच कहते हैं सुख और सुकून की परिभाषा तो वही बयां कर सकता है जो प्रेम में हो... सुख तो तभी है जब तुम्हारा सर मेरे कांधे पर टिका हो और हम साथ ज़िंदगी बिताने के खयाल बुन रहे हों... तुम्हारे हाथों में हाथ डाले बैठे रहना सोंधे एहसास सरीखा है... तुमने जाते जाते मुझे जो चॉकलेट दिया था न उसे अभी तक संभाले रखा है, पता नहीं क्यूँ लेकिन कई बार उसे एकटक देखता रहता हूँ, तुम्हारे होने का एहसास दिखता है उसमे मुझे.... वैसे हम प्रेमियों के सपने भी कितने मासूम होते हैं न, साथ बिताए जाने वाले लम्हों के आलावा ज़िंदगी से और कहाँ कुछ चाहिए होता है भला.... मैं भी उन्हीं की तरह बहुत सलीके से ज़िंदगी की नब्ज़ थामे तुम्हारे साथ बढ़ना चाहता हूँ....
सच कहते हैं सुख और सुकून की परिभाषा तो वही बयां कर सकता है जो प्रेम में हो... सुख तो तभी है जब तुम्हारा सर मेरे कांधे पर टिका हो और हम साथ ज़िंदगी बिताने के खयाल बुन रहे हों... तुम्हारे हाथों में हाथ डाले बैठे रहना सोंधे एहसास सरीखा है... तुमने जाते जाते मुझे जो चॉकलेट दिया था न उसे अभी तक संभाले रखा है, पता नहीं क्यूँ लेकिन कई बार उसे एकटक देखता रहता हूँ, तुम्हारे होने का एहसास दिखता है उसमे मुझे.... वैसे हम प्रेमियों के सपने भी कितने मासूम होते हैं न, साथ बिताए जाने वाले लम्हों के आलावा ज़िंदगी से और कहाँ कुछ चाहिए होता है भला.... मैं भी उन्हीं की तरह बहुत सलीके से ज़िंदगी की नब्ज़ थामे तुम्हारे साथ बढ़ना चाहता हूँ....
मैं हँसना चाहता हूँ , बिना किसी खास वजह के ही खुद से बक-बक करना चाहता
हूँ, दिल करता है खूब ज़ोर से चीखूँ-चिल्लाऊँ... खुद को इस दुनिया की भीड़
में झोंक देना चाहता हूँ, थोड़ी देर के लिए ही सही खुद को भूल जाना चाहता
हूँ... अपने चेहरे से जुड़ गए अपने वजूद, अपने नाम को अलग कर देना चाहता
हूँ... खुद के मौन से जो दूरी मैंने बना ली थी वही मौन दोबारा मुझे घेरता जा रहा है... तुम्हारी एक झलक इस मौन के काँच को तोड़कर मुझे मेरी साँसों से मिला देगी.... तुम्हारे इंतज़ार की एक पतली सी पगडंडी मेरी आँखों से निकल कर तुम्हारी तलाश कर रही है... कलेंडर की तरफ नज़र जाती है तो दिल बैठ जाता है, कैसे कटेगा ये वक़्त...
Mast hai ye walaa... :)
ReplyDeleteसुख और सुकून की परिभाषा तो वही बयान कर सकता हे जो प्रेम मे हो.....
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा लेखन !!
दिल का दर्द
ReplyDeleteयह इम्तिहान का वक्त है!!
ReplyDeleteज़िंदगी के कई इम्तिहान छोड़ दिये हैं मैंने.... हाँ इंजीन्यरिंग कॉलेज के भी.... कई-कई इंटरनल्स और दो सेमिस्टर इम्तिहान भी.... मुझे इम्तिहान पसंद नहीं, कतई नहीं... ये मत सोचिएगा कि डरता हूँ.... कोई डर नहीं, बस नफरत सी है....
Deleteये इंतजार भी तो एक इम्तिहान होता है। तो इससे नफरत क्यों नहीं भला!
Deleteलिखो बिटवा , खूब लिखो ....ई उमिर में ई नय लिखोगे तो कब लिखोगे , बाद में तो तुम्हें .....मंडी में बढते टमाटर प्याज़ के भाव पर ही साहित्य रचना होगा । वैसे ये स्वाभाविक है और होना भी चाहिए ...............लिखते रहो , उकेरते रहो सब कुछ मन का ..मन हल्का होता रहेगा ।
ReplyDeleteHehehe... well said Ajay Bhaiya... baad me to prem bijli ke bill aur daal ke namak me udan chhoo ho jata h :D
Deleteदिल का दर्द लेखनी मे उतर आया है.
ReplyDeleteसुभानअल्लाह........
यहाँ आकर अच्छा लगा...| अभी बाकी की पोस्ट्स भी पढनी है...|
ReplyDeleteप्रियंका
very nice heart touching
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