Monday, January 19, 2015

नींद जो ख़्वाब में आती है...

जागती आँखों के सपने
अक्सर मुझे परेशान करते हैं,

मैं सोना चाहता हूँ
हवा में औंधे मुंह किए
गुरुत्वाकर्षण के नियम के खिलाफ,
चाहता हूँ कि
ख़्वाब में आए नींद का झरोखा कोई,
घड़ी का चलना भी
डायल्यूट हो जाये
मेरी साँसो की तरह...

खुद से लड़ते झगड़ते हुये
कई बातें जो मैं भूल चुका हूँ
उन बातों की अधूरी लिस्ट को भी
Shift+Delete कर देना चाहता हूँ,

अगर जो सुकून और खुशी
अब इन कंक्रीट के जंगलों में ही
मिलते हों तो,
डूबते हुये नारंगी सूरज का जो लम्हा
कैद है मेरी इन आँखों में 
उसे भी मैं इन ऊंची इमारतों के अंदर ही
जमा देना चाहता हूँ सीमेंट से
हमेशा हमेशा के लिए... 

3 comments:

  1. बहुत उम्दा ... जिस बात में सकूंन मिले वो करना चाहिए ...
    सपने जागती आँखों के परेशान तो करते हैं हमेशा ...

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  2. क्या बात की है वत्स! बहुत ख़ूब!!

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  3. बेहद ही खूबसूरत रचना है। जागती आंखों के सपने हमें परेशान तो करते हैं। पर हमें देखना बंद नहीं करना चाहिए। क्‍या पता सच हो जाएं।

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