कीबोर्ड पर खिटिर-पिटिर करके
जाने कितने अफसानो को
हवा दी थी कभी,
कीबोर्ड का हर एक बटन
मेरे सुख-दुख का
साझीदार हुआ करता था...
वो बटन अब मुझे
दफ्तर में मिलते हैं
मैं उनसे अब न जाने
क्या-क्या लिखवाता रहता हूँ
उन टाइप किए शब्दों से अब
ज़िंदगी की खुशबू नहीं आती
कुछ बेजान से कोड और स्क्रिप्ट या फिर
कभी किसी एक्सेल पन्ने को भरते हुये,
मेरी ही तरह
इस कीबोर्ड को भी
घुटन तो होती होगी न...
ज़िंदगी के मेरे इन दो पहलुओं
के बीच "स्पेस" बटन जितना
फासला हो गया है...
फिर कभी जब खुद को फुसला कर
बैठता हूँ कि
लिखूँ कुछ ज़िंदगी के बारे में
तो हर बार लिखकर
मिटा दिया करता हूँ,
अपने लिखे से
मैं खुद संतुष्ट नहीं हूँ आज-कल,
इन दिनों "बैकस्पेस" बटन से
दोस्ती कुछ ज्यादा ही गहरी हो गयी है...
जाने कितने अफसानो को
हवा दी थी कभी,
कीबोर्ड का हर एक बटन
मेरे सुख-दुख का
साझीदार हुआ करता था...
वो बटन अब मुझे
दफ्तर में मिलते हैं
मैं उनसे अब न जाने
क्या-क्या लिखवाता रहता हूँ
उन टाइप किए शब्दों से अब
ज़िंदगी की खुशबू नहीं आती
कुछ बेजान से कोड और स्क्रिप्ट या फिर
कभी किसी एक्सेल पन्ने को भरते हुये,
मेरी ही तरह
इस कीबोर्ड को भी
घुटन तो होती होगी न...
ज़िंदगी के मेरे इन दो पहलुओं
के बीच "स्पेस" बटन जितना
फासला हो गया है...
फिर कभी जब खुद को फुसला कर
बैठता हूँ कि
लिखूँ कुछ ज़िंदगी के बारे में
तो हर बार लिखकर
मिटा दिया करता हूँ,
अपने लिखे से
मैं खुद संतुष्ट नहीं हूँ आज-कल,
इन दिनों "बैकस्पेस" बटन से
दोस्ती कुछ ज्यादा ही गहरी हो गयी है...
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (16.01.2015) को "अजनबी देश" (चर्चा अंक-1860)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति ....
ReplyDeleteमकरसक्रांति की शुभकामनायें!