हर एक शब्द एक जंगल सरीखा होता है,
अपने अंदर कितना कुछ समेटे हुये
कई सारे पेड़, लताएँ
सैकड़ों चिड़ियों की बातें
जो की गयी हों आपस में ही,
बहुत देर तक मैं किसी
जंगल में हस्तक्षेप नहीं करता
बढ्ने देता हूँ उसे यूं ही
फलते-फूलते जंगल कई बार
मुझे मेरी ज़िंदगी की
कहानियाँ दे जाते हैं....
हर तरह की प्राकृतिक और मानवनिर्मित
आपदाओं से
इस जंगल को बचाए रखने का
संघर्ष ही जीवन है....
अपने अंदर कितना कुछ समेटे हुये
कई सारे पेड़, लताएँ
सैकड़ों चिड़ियों की बातें
जो की गयी हों आपस में ही,
बहुत देर तक मैं किसी
जंगल में हस्तक्षेप नहीं करता
बढ्ने देता हूँ उसे यूं ही
फलते-फूलते जंगल कई बार
मुझे मेरी ज़िंदगी की
कहानियाँ दे जाते हैं....
हर तरह की प्राकृतिक और मानवनिर्मित
आपदाओं से
इस जंगल को बचाए रखने का
संघर्ष ही जीवन है....
तूफानों को थाम लेने के लिये ऐसे जंगल आवश्यक हैं, सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21-01-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2228 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और सीमान्त गाँधी में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसच ही तो कहा है आपने कि हर शब्द जंगल सरीखा होता है। बहुत सुंदर रचना। कभी मेरे ब्लाग पर भी पधारें।
ReplyDeleteसच ही तो कहा है आपने कि हर शब्द जंगल सरीखा होता है। बहुत सुंदर रचना। कभी मेरे ब्लाग पर भी पधारें।
ReplyDeleteकाफी दिनों बाद पढ़ा आपको..!
ReplyDeleteमन के एहसासों को समेटे खुबसूरत रचना
ये शब्दों के जंगल ही काव्य खडा के देते हैं ...
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