Friday, September 11, 2020

फकैती वाले दिन...

मुझे ये चाँद बेचना है,
पर सारे खरीददार मुझे
बिखरे हुए प्रेमी लगते हैं,  
चाँद खरीदना उनका अधूरा सा ख्वाब है 
जो वो खुद को बेचकर 
पूरा करना चाहते हैं... 

मैं ढूँढ रहा हूँ कब से 
कि मिले कोई 
जिसे रहा हो 
इस चाँद से सच्चा प्रेम... 

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मैं कविताएं लिखना चाहता हूँ 
तुम्हारी भाषा में,
वो भाषा जिसका अनुवाद
बस हम दोनों के पास है,

ये जो बेवजह 
मेरी नज़्मों का किनारा खो गया 
उसे अपनी मुस्कुराहटों की भाषा में 
इठलाते हुए पढ़ लेना... 

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मैं फिर से लापरवाह हो जाना चाहता हूँ 
कुछ भी लिखते वक़्त,
लगता है 
लबालब भर गया हूँ शब्दों से,

मुझे धकेलना है इन शब्दों को 
किसी कूड़ेदान में 
और हो जाना है  
बिलकुल खाली... 

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एक चिंगारी है
मेरे तलवे के नीचे,
वो सिगरेट जो फेक दी किसी ने
आखिरी कश लेने से पहले,

मेरे पास माचिस भी है
और पानी भी  
मैं बुझता भी हूँ तो 
आखिर फिर से जलने के लिए.... 

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