Wednesday, December 29, 2010

तुम कहाँ हो ? ? ?

एक पुरानी कविता पुरानी टिप्पणियों के साथ...
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
तुम शायद भूल गए वो पल,
जब उन नन्हे हाथों से
मेरी ऊँगली पकड़कर तुमने चलना सीखा था,
अपने पहले लड़खड़ाते कदम मेरी तरफ बढ़ाये थे.....
तुम शायद भूल गए...
जब मैं तुम्हारे लिए घोडा बना करता था
तुम्हारी हर बेतुकी बातें सुना करता था,
परियों कि कहानियां सुनते सुनते
मेरी गोद में सर रख कर न जाने तुम कब सो जाते थे,
जब मेरे बाज़ार से आते ही
पापा कहकर मुझसे लिपट जाते थे,
अपने लिए ढेर सारे खिलोनों कि जिद किया करते थे.
तुम शायद भूल गए...
जब दिवाली के पटाखों से डरकर मेरी गोद में चढ़ जाया करते थे,
जब मेरे कंधे पर सवारी करने को मुझे मनाते थे,
जब दिनभर हुई बातें बतलाया करते थे...
आज जब शायद तुम बड़े हो गए हो,
ज़िन्दगी कि दौड़ में कहीं खो गए हो,
आज जब मैं अकेला हूँ,
वृद्ध हूँ, लाचार हूँ,
मेरे हाथ तुम्हारी उँगलियों को ढूंढ़ते हैं,
लेकिन तुम नहीं हो शायद,
दिल आज भी घबराता है,
कहीं तुम किसी उलझन में तो नहीं ,
तुम ठीक तो हो न ....

63 comments:

  1. सच में, भूल तो गये.

    भावुक कर गई आपकी रचना!

    ReplyDelete
  2. bahut sundar..........
    pata nahin kaise........
    magar aaj se 7 din pehle hi maine bhi isi theme pe kavita likh rakhi hai jo main 1 May ko post karne wala hoon. maine socha shayad main hi pehla hoon iske liye...khair! ye achhi baat hai ki hamare man ke bhav kafi milte julte hain.....
    kya farak padta hai pehle aap ya pehle main?

    kafi achha hai.......subeh ki pehli kavita padhi aur kafi achhi rahi shayad din achha jaye.

    dhanyavad.......aur badhayi.....

    ReplyDelete
  3. सुबह होती है , शाम होती है .. और इंतज़ार में किसी के यूँ ही जिन्दगी तमाम होती है

    ReplyDelete
  4. bhoolte kuch nahi hum bas ik waqt me jo cheez mahatv rakhti hain hmare liye kisi dusre waqt koee or cheez...kabhi khilone,kabhi eraser kabhi kuch kabhi kuch,par maa baap ka pyaar waqt ke sath nahi badlata...

    ReplyDelete
  5. सुन्दर भाव,अच्छी प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  6. wo bade jab phir bachche se asamarth ho jate hain, jo hamen bada banate hain ...... hum kyun us pyaar se door vyavaharik ho jate hain,... bhool jate hain ki hamen bhi phir asamarth ho jana hai.... bahut hi bhawpoorn rachna

    ReplyDelete
  7. Beautifully presented feelings of parent.
    God bless you.

    ReplyDelete
  8. सुन्दर अभिव्यक्ति आँख भर आयी पढ़कर।

    ReplyDelete
  9. बहुत मार्मिक विषय ....अकसर ऐसा होता है कि लोग उन हाथों को भूल जाते हैं जिनको पकड़ कर चलना सीखा था.....मन को भावुक कर गयी ये रचना...

    ReplyDelete
  10. sundar ehsaas..acchi soch!!
    utni hi khubsurat kavita!

    ReplyDelete
  11. rishtey jindagi ka ek khoobsurat ehsaas hain..
    aur uski ko bakhoobhi gadha hai aapne!

    ReplyDelete
  12. बहुत खूब .....
    कितनी सही तस्वीर खिंची है आपने .....
    कोई उन बुजुर्गों से जाकर पूछे जो वृद्धाश्रम घरों से ठुकराए हुए पड़े हैं ......

    ReplyDelete
  13. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

    ReplyDelete
  14. समाज का वास्तविक चित्रण , प्रशंसनीय ।

    ReplyDelete
  15. sahi kahi....hum bade ho jate hai...par hamre parents kay liye hamesha bacche hi rehte hai....woh hamesha hamri fikar karte hai....nicely written,ever words gives feelings....thanx for nicee lines

    ReplyDelete
  16. Kamaal hai Shekhar!!!
    Ek hi vishay par tumhaari aur meri kavita!
    Zindagi ke 'sooryaast' par aksar upekshit mata-pita ye hi poochhte hain ki 'tum kahan ho?'
    Eeshwar kisi ko aisa din na dikhaaye!
    Umda abhivyakti, bhavpoorn rachna!

    ReplyDelete
  17. main nahi bhoola wo din, aur meri yaadon ko aur taaza kar diya aapki kavita ne..... bahut hi bhavuk kar diya aapki is rachna ne...... bachpan mein jaise main ullas se bol parta tha wahi aaj fir se isey padh bolne ki fir se ichha jaag uthi hai....."MAST"

    ReplyDelete
  18. बबहुत ही सुन्दर पोस्ट
    आभार..............

    ReplyDelete
  19. नन्हे मन की नन्हीं बातें...भला कोई भूलता है...प्यारी है ये कविता.

    ReplyDelete
  20. bahu bahut sunder rachna bhavo se bharpooor ...likhte rahiye ..best wishes :)

    ReplyDelete
  21. दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ! बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है और आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!

    ReplyDelete
  22. haqikat ko charitarth karti aapki yah post dil hi dil me bahut kuchh kaha gai.bhaukta se bhari rachana.
    poonam

    ReplyDelete
  23. आपके ब्लॉग पर पहली बार आया .....ख़ुशी के साथ अफ़सोस भी हुआ .....:() :(
    अब तक जो दूर था ....एक भावुक और सच के करीब ...शानदार प्रस्तुति

    ReplyDelete
  24. तुम कहाँ हो ???
    माता पिता हमेशा चिंतित रहते हैं !आपकी रचना पढकर मन उदास हो गया और आँखें भीग गई ! समवेदन शील रचना ! बधाई !

    ReplyDelete
  25. Aah jab bachhe bade ho jate hain to unhen apne maa baap bachhon jaise aparipakv lagne lagte..unki baat sun leneki fursat hoti nahi,bewajah jhidak dete hain...sankuchit ho rahe pariwaron me ab fursatke lamhen khatm ho gaye..

    ReplyDelete
  26. वाह आज भी उसकी सलामती की चिंता ..... अपना सब कुछ खोने के बाद भी ... मार्मिक अभिव्यक्ति ...

    ReplyDelete
  27. Hello :)

    Bahut hi badiya likha hai aapne.
    Sorry I couldnt leave a comment before... was a bit occupied with work.
    Gehraai aur sachhh :)
    Bahut achha!!

    ReplyDelete
  28. बहुत ही सुन्दर तरीके से आपने एक पिता के व्यथा को दर्शाया है । दिल को छू गई आपकी यह रचना ।

    ReplyDelete
  29. very nice :-)

    regards,
    Deepak

    cadeepaknarula.blogspot.com

    nostalgicwrites.blogspot.com

    ReplyDelete
  30. adhuri baaten¤¤~~May 16, 2010 at 6:56 PM

    bhaut sahi kaha hai aapne, hum apne dainik karyo me itne kho gaye hai, ki yeh bhul chuke hai, ki jub hum bachche the, tab hamare mata pita apni har vyastata ke baawjud hamare liye har wah kaam karte the, jiski hum jidd karte the,,,


    bhaavuk kar dika aapki rachna ne, bahut he utkrisht rachna hai, badhai!



    amit~~

    ReplyDelete
  31. भावनाये बहुत अच्छी लगी और आपने लिखा भी बहुत अच्छे विषय पर है..ऐसा हर जगह हो रहा है..

    ReplyDelete
  32. बहोत ही सुन्दर कविता शेखर भाई .....

    वृद्ध हूँ, लाचार हूँ,
    मेरे हाथ तुम्हारी उँगलियों को ढूंढ़ते हैं,
    लेकिन तुम नहीं हो शायद,
    दिल आज भी घबराता है,
    कहीं तुम किसी उलझन में तो नहीं ,
    तुम ठीक तो हो न ....

    बहोत खूब ........

    धन्यवाद

    ReplyDelete
  33. bahut hi maarmik..bhaavpurn rachna.dil ko chhoo gayee.

    ReplyDelete
  34. एक बाप की ममतामई अनुभवों को उजागर करती सुन्दर पोस्ट | आभार|

    ReplyDelete
  35. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  36. कविता लिखने के लिए ये विषय आपने लिया बहुत बधाई ..बहुत लोगो को पिता की याद आ जाये ये भी उम्मीद करती हूँ ........


    दिल आज भी घबराता है,
    कहीं तुम किसी उलझन में तो नहीं ,
    तुम ठीक तो हो न ....

    अंतिम पन्तियाँ बहुत भावपूर्ण .........

    ReplyDelete
  37. bahot sundar...aaj ka yathart...apki ye rachna padh kar yakeen hai ki aap nahi bhule honge unhe...mai bhi nahi bhulti aur bhagwaan se pahle unka naam leti hu.

    ReplyDelete
  38. काफी सुन्दर लगी ये कविता!!

    ReplyDelete
  39. बहुत सुन्दर!
    अपनी टिप्पणी अपनी ही आवाज में Voice mail द्वारा भेजना चाहता हूँ।
    इस कडी पर आप मेरी आवाज सुन सकते हैं

    http://vocaroo.com/?media=vsWJY0BM6Z2HywMiX
    speaker on कीजिए और मेरी टिप्प्णी सुनिए।
    कडी सार्वजनिक है और कोई भी इसे सुन सकता है।
    यदि आप और (अन्य मित्र भी) ठीक से सुन सकते हैं तो इस प्रयोग को सफ़ल समझूँगा और आगे भी voice द्वारा अपनी टिप्प्णी भेजा करूंगा।
    जब लिखने के लिए समय नहीं हैं तो यह एक आसान तरीका है।
    ज्यादा जानने के लिए vocaroo.com आजमाइए।

    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

    ReplyDelete
  40. वृद्ध हूँ, लाचार हूँ,
    मेरे हाथ तुम्हारी उँगलियों को ढूंढ़ते हैं,
    लेकिन तुम नहीं हो शायद,
    दिल आज भी घबराता है,
    shekhar ji , bahut hi bhavuk kavita....gahre jajbat ke sath.

    ReplyDelete
  41. यही तो ज़िन्दगी की अमिट सच्चाई है……………सुन्दर भाव समन्वय्।

    ReplyDelete
  42. सुन्दर अहसासों की मार्मिक अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  43. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (30/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

    ReplyDelete
  44. आज जब मैं अकेला हूँ,
    वृद्ध हूँए लाचार हूँ,
    मेरे हाथ तुम्हारी उँगलियों को ढूंढ़ते हैं,
    लेकिन तुम नहीं हो शायद,
    दिल आज भी घबराता है,
    कहीं तुम किसी उलझन में तो नहीं ,
    तुम ठीक तो हो न ।

    इस कविता में पुत्र के प्रति एक पिता की संवेदना मार्मिक ढंग से व्यक्त की गई है।
    ...प्रभावशाली रचना।

    ReplyDelete
  45. Kitna sunder chitran hai ek putra ke liye uske pita ke komal pyar va fikra ka, Mann ko chhoone vale ahsaas hain aapki rachna me.......

    ReplyDelete
  46. नए साल की आपको सपरिवार ढेरो बधाईयाँ !!!!

    ReplyDelete
  47. अच्छी प्रस्तुति!
    नये साल में नयी रचना जरूर लगाना!

    ReplyDelete

  48. विश्वनाथ जी
    आपकी टिपण्णी सुनी...

    अपने आप में वाकई बड़ा नया अनुभव था..ये टिपण्णी मेरे लिए अनमोल है...

    टिपण्णी को डाउनलोड कर लिया है...बहुत बहुत धन्यवाद....
    और आप तो बड़ी अच्छी हिंदी बोल भी लेते हैं...:)

    ReplyDelete
  49. NAYA SAAL 2011 CARD 4 U
    _________
    @(________(@
    @(________(@
    please open it

    @=======@
    /”**I**”/
    / “MISS” /
    / “*U.*” /
    @======@
    “LOVE”
    “*IS*”
    ”LIFE”
    @======@
    / “LIFE” /
    / “*IS*” /
    / “ROSE” /
    @======@
    “ROSE”
    “**IS**”
    “beautifl”
    @=======@
    /”beautifl”/
    / “**IS**”/
    / “*YOU*” /
    @======@

    Yad Rakhna mai ne sub se Pehle ap ko Naya Saal Card k sath Wish ki ha….
    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है !

    ReplyDelete
  50. सच बयानी इसे ही कहते हैं। कॄपया इस पर भी गौर करें,आभार।http://amit-nivedit.blogspot.com/2010/12/blog-post_08.html

    ReplyDelete
  51. नए साल की आपको सपरिवार ढेरो बधाईयाँ !!!!
    आज आयेगी ९ बजे रात को नई पहेली
    पूछा था आपने सो बताना ठीक समझा जी ....

    ReplyDelete
  52. आप सभी को नए साल की मुबारकबाद अल्लाह आपकी जिन्दगी को खुशियों से भर दे http://aapkiamanat.blogspot.com

    ReplyDelete

Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...