जब माँ ने गले से लगाया,
वो लम्हा जब पापा ने गोद में उठाया,
वो पहली मासूम सी हँसी,
वो पहली नींद की झपकी,
दादी की प्यार भरी पप्पी,
वो पहले लड़खड़ाते से कदम,
वो अनबुझ पहेली सा बचपन...
ढेर सारे खिलौने,
गुड्डों और गुड़ियों की दुनिया,
स्कूल में वो पहला दिन,
वो प्यारे पलछिन,
और भी ऐसा बहुत कुछ......
इस ज़िन्दगी की आपाधापी से,
इन वाहनों के शोर से,
कहीं दूर, कहीं एकांत में,
आओ बैठें, समेटे उन लम्हों को,
वो लम्हे जो बीत गए....
वो लम्हें जो याद न हों......
वो पहली बार,
ReplyDeleteजब माँ ने गले से लगाया,
वो लम्हा जब पापा ने गोद में उठाया,
वो पहली मासूम सी हँसी,
वो पहली नींद की झपकी,
अंतर्मन को छूती ये कविता भा गयी .......
सुन्दर
dil ko choo lene wali rachna.........
ReplyDeleteसुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर .... सच में जीवन की आपाधापी में कितने मासूम पल खो जाते हैं... बिसर जातें हैं....
ReplyDeleteप्रभावी अभिव्यक्ति....
awwww.....cho chweeeeet :)
ReplyDeletemakes me think, life ke sabse important moments hamein yaad nahin reh paate na .....
@ saanjh..
ReplyDeletethis iz d irony yaar...
काश कोई ऐसा विडियो एल्बम बन जाता हम सबका हमारी ज़िन्दगी का एक एक लम्हा जो हम बार बार देख पाते...
Excellent composition!
ReplyDeleteMay I add?
वह पहला वर्षगांठ!
वे रंगीन गुब्बारे!
और सब का "हैप्पी बर्थडे टू यू" गाना!
पहली बार "माँ" "पापा" के शब्द मुँह से निकलना!
सर पर वह पहली चोट और वह चीखना और रोना!
वह पहली शैतानी!
बिल्ली की पूंछ खेंचना!
घर/पेड/फ़ूल का
दीवारों पर वह पहला ड्रॉइंग!
वह पहली गुडिया/टेड्डी
जिनसे अलग होकर नींद न आए।
साइकल पर वह पहला दिन!
गिरकर घुटने पर वह पहली चोट!
पहली बार अपना नाम लिख पाना!
और न जाने क्या क्या!
===============
अपनी जिन्दगी की ये अनुभवें तो याद नहीं।
पर मेरे बच्चों के ये अनुभव मुझे अब भी याद है।
Childhood... truelly da best tyme of lyfe.. :)
ReplyDeleteKahin padha tha k khilaune tutne pe rote the tab malum na tha k is se bhi zyada dard sapne tutne pe hoga :(
ओह्ह...
ReplyDeleteविश्वनाथ जी...
मैं तो कहता हूँ आप भी एक कविता लिख ही डालिए... छापने की ज़िम्मेदारी मेरी.... पिछली कविता पर भी आप की टिप्पणियां पढ़ीं....
आप तो छा गए हैं....
उम्मीद है आपकी यात्रा सफल और आरामदायक रही होगी....
मोनाली...
ReplyDeleteअरे यार ये मूंह क्यूँ लटका लिया ??? अरे जिस तरह खिलोने नए मिल जाते थे उसी तरह सपने भी नए बनाओ...
ज़िन्दगी में कुछ भी टूटने से कोई फर्क नहीं पड़ता, नयी चीजें हमेशा आगे इंतज़ार करती मिलती हैं.....
शेखर सुमन जी, बहुत ही सुन्दर भावनात्मक कविता ... आपने चुन चुन के ऐसे पलों को गिनाये हैं कि एक बार फिर जी कर रहा है कि जिंदगी फिर से जी लूँ ... और उसपर विश्वनाथ जी ने भी कमाल कर दिया ...
ReplyDeleteऔर वो पहला पहला प्रेम .... :)?
ReplyDeleteसुन्दर भावमय करती यादें ...खूबसूरती से संजोया है जिन्हें आपने ..।
ReplyDeleteअरविन्द जी...
ReplyDeleteपहला प्रेम तो सब को याद रहता है... हा हा हा...
शेखर जी
ReplyDeleteमै इन लम्हों को कभी याद नहीं करती क्योकि मै इन्हें भूलती ही नहीं अच्छी कविता |
नया ब्लॉग अच्छा लगा |
अरे शेखर, यह क्या?
ReplyDeleteहम कवि नहीं हैं भाई।
हमने तो केवल वाक्यों को तोडकर अलग अलग लाईन में क्या लिख दिया, आप मुझे कवि समझने लगे?
हम तो कट्टर ईंजिनियर हैं जी।
हम संख्यों से, रेखाचित्रों से, फ़ोर्मुलाओं से परिचित हैं
भावों से, शब्दों से हमें क्या लेना देना?
आप लिखिए कविता
हम पढेंगे और वाह वाही करेंगे।
हमारी औकात उतनी ही है।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
(हैदराबाद से कल वापस लौट। यात्रा सफ़ल रही)
विश्वनाथ जी..
ReplyDeleteहम भी तो यही फ़ॉर्मूला अपनाते हैं, हम कौन सा कवि हैं !!!
हमें भी इंजीनियरिंग के उन्ही फोर्मुलों ने निर्जीव बना दिया है....
कोई लौटा दे मुझे बीते हुए दिन //
ReplyDeleteसुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteवो पहली बार,
ReplyDeleteजब माँ ने गले से लगाया,
वो लम्हा जब पापा ने गोद में उठाया,
वो पहली मासूम सी हँसी,
वो पहली नींद की झपकी,
ji haan aapki kavita padhkar fir se wohi din yaad aa gaye aur yaad aa gya ki kitne keemti aur hasen pal hamare jeevan ke nikal gaye hai..
iske liye main aapko dhanyvaad aur badhai deta hoon.
main blogger par naya hoon aur thoda bahut likhne ki gustaakhi bhi kar leta hoon to plz aap mere blogs samratonlyfor.blogspot.com and
reportergovind.blogspot.com par bhi najar dalein aur apne comment bhi dein.
thanx
You made me nostalgic. Indeed a lovely creation.
ReplyDeleteकित्ती प्यारी कविता..बधाई.
ReplyDelete________________
'पाखी की दुनिया; में पाखी-पाखी...बटरफ्लाई !!
बहुत ही सुंदर एहसास के साथ सुंदर कविता.... चित्र ने भी मन मोह लिया... काश बीते लम्हें वापस आ पाते हकीकत में , न की सिर्फ ख्यालों में.
ReplyDeletenice one... took me down d memory lane....
ReplyDeleteचलिए हम भी आ गये उन लम्हों को समेटने
ReplyDeleteBahut payaara tha sachmuch bachpan. 'Wo kagaz kI kashti barish ka paani--'
ReplyDeletehummm...baat to sahi hai...
ReplyDeleteSach bachpan se sundar samay jindgi me koi nahi
ReplyDeleteसुन्दर कविता... नाज़ुक एहसास...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रभावी अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteशेखर सुमन जी अति सुन्दर कविता
ReplyDeleteशेखर जी आपका नया ब्लॉग अच्छा लगा !
sundar shabd chitr.
ReplyDeletebadhai!
-gyanchand marmagya
shekhar ji
ReplyDeletebahut bahut dhanyvaad avam hardik shubh kamnaaye.
bachpan ke din bhi kya din the
hanste-gaate pal -pal chhin the
jinme kuchh yaad rahe luchh bhool gaye ,fir bhi aapne yaad dila hi diya.
bahut hi sundar rachna.
poonam
वो पहले लड़खड़ाते से कदम,
ReplyDeleteवो अनबुझ पहेली सा बचपन..
काश बचपन के वो दिन फिर से लौट आते...
...बहुत ही प्यारी रचना।
यादों को याद करती सुन्दर रचना!
ReplyDeletebahut sunder andaz men likha hai aapne.
ReplyDeleteउन लम्हों को याद करने से अच्छा भी लगता है और बुरा भी कि इतनी इतनी जल्दी क्यूँ बीत गया?
ReplyDeleteबीते पलों को याद करना सुखकर होता है.
ReplyDeleteअच्छी रचना.
बहुत भावपूर्ण रचना है। मन को छूती हुई।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशेखर जी आपकी यह रचना अच्छी लगी...आज १७-१२-२०१० को आपकी यह रचना चर्चामंच में रखी है.. आप वहाँ अपने विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा .. http://charchamanch.blogspot.com ..आपका शुक्रिया
ReplyDeleteवो लम्हे जो बीत गए....
ReplyDeleteवो लम्हें जो याद न हों......
beautiful one!!!
बहुत सुंदर..ऐसी ही कामना हमने भी करी थी..
ReplyDeleteयहाँ पढ़ियेगा..
'एक पुराने बक्से में..'
http://priyankaabhilaashi.blogspot.com/2010_10_01_archive.html