महाकवि के रूप में सुविख्यात जयशंकर प्रसाद (१८९० -१९३७) हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। तितली, कंकाल और इरावती जैसे उपन्यास और आकाशदीप, मधुआ और पुरस्कार जैसी कहानियाँ उनके गद्य लेखन की अपूर्व ऊँचाइयाँ हैं। काव्य साहित्य में कामायनी बेजोड कृति है। कथा साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी देन महत्त्वपूर्ण है। भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में वे अनुपम थे। आपके पाँच कहानी-संग्रह, तीन उपन्यास और लगभग बारह काव्य-ग्रन्थ हैं।
इनका जन्म ३० जनवरी १८९० को वाराणसी में हुआ । प्रारम्भिक शिक्षा आठवीं तक किंतु घर पर संस्कृत, अंग्रेज़ी,पालि, प्राकृत भाषाओं का अध्ययन किया। इसके बाद भारतीय इतिहास, संस्कृति, दर्शन, साहित्य और पुराण कथाओं का एकनिष्ठ स्वाध्याय |
छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं । एक महान लेखक के रूप में प्रख्यात रहे। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करूणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन किया। इन्होने अपने ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएं की हैं।१४ जनवरी १९३७ को वाराणसी में इनका निधन हो गया |
आप सभी ने इनकी लिखी कविता अरुण यह मधुमय देश हमारा जरूर पढ़ी होगी...
अरुण यह मधुमय देश हमारा --- जरूर पढी है।जयशंकर प्रसाद जी की कलम को नमन। अच्छी जानकारी है धन्यवाद।
ReplyDeleteek ek karke jo kadam tum lete ho wah prashansniy aur prabhawshali hai
ReplyDeletejab aap mere blog par party de rahe the, tab main bhi yahin, aapke blog par ghoom rahi thi....;)
ReplyDeleteKBC mein kuch din pehle inse sambandhit sawaal poocha gaya tha. uska uttar mujhe nahin aata tha, badi sharmindagi hui. tab ehsaas hua ke main apna hindi gyaan baste mein bhool gayi...school mein main apne hindi teachers ki favourite hua karti thi...par ab.... :(
ReplyDeleteab se aapki is paathshaala mein aana hoga.... ;)
PS maine pehle bhi kai dafa yahan aane ki koshish ki thi, par ye mera connection hi bump off kar deta tha...aaj ganeemat se khul gaya :)
@ सांझ
ReplyDeleteआपका इस पाठशाला में बहुत बहुत स्वागत है ....
यहाँ सिर्फ साहित्य ही नहीं इस देश से जुड़े हर उस व्यक्ति की चर्चा होती है जिसने इस देश का नाम रौशन किया है....
वैसे आपका नाम सांझ ही है क्या ????
ye kyun poocha.....?
ReplyDelete;)
mom dad ne ye naam nahin rakkha, par maine bachpan se khud ka yahi naam rakha hai...zyada acche dost bhi isi naam se bulaate the...mom dad ki beti ne to kabhi poetry bhi nahin ki, vo koi aur hi hai...hihi, yup, i think i have split personality disorder ;)
behrhaal, hanji, mera naam saanjh hi hai :)
अच्छा नाम है... इसलिए पूछा ताकि आपको सांझ जी कह कर बुलाया तो जा सके वरना मैं तो ये सोच रहा था कहीं ये सिर्फ ब्लॉग का नाम ही न हो... :)
ReplyDeleteअक्सर लोग इसी तरह मेरा नाम भी दुबारा पूछते हैं, उन्हें लगता है मैं मज़ाक कर रहा हूँ... " शेखर सुमन "... पता नहीं पापा को ये नाम कहाँ से सूझा... :)
hihihihii....i kno....ajeeb baat hai na, hamare naam se hamari pehchaan oti hai, aur wahi ham khud nahin chun sakte ;)
ReplyDeletevaise aapki paathshaala mein baatein karna allowed hai...? damn...! i like this....hihihi
:) नहीं नहीं बात करने की कोई मनाही नहीं है...बातें करने से ही तो ज्ञान मिलता है ") लेकिन हो सकता है इस पाठशाला में देर से पहुँचने वाले लोग परेशान हो जायें हमारी बातों से ...hihihi
ReplyDelete@ सांझ..
ReplyDeleteu can mail me on....
callmeshekhu@gmail.com
hmmm....point noted sir ;)
ReplyDeletehihi
aaj paathshaala mein baaqi students kam hain....kahan hain sab....monday mornin blues....????
ReplyDeleteआज चिट्ठाजगत वेबसाइट की बस खराब हो गयी है, ज्यादातर स्टुडेंट्स तो उसी बस से आते हैं... उम्मीद है आज थोड़ी देर होगी...
ReplyDeleteधन्यवाद शेखर ...बहुत अच्छी जानकारी ....वाकई सबकुछ भूल गयी हूँ मै भी ...बहुत सुखद है वापस एकबार फिर आना इस दुनिया मे ....
ReplyDeleteok sir....main to bunk maar ke bhaagne wali hoon ab....ghar toote hue titanic sa bikhra pada hai, sambhaaloon ;)
ReplyDeletebyebye
ए भैया ... अब तनिक कौन जीता है ओका नाम भी बताये देओ ..:)
ReplyDeleteHam to bhool hi gye the inka chitr ... Achhaa kiya yaad taaza kara di ..
ReplyDeleteसही कहा शेखर ये पाठशाला ही हो गया है स्कुल में पढ़ा था जयशंकर प्रसाद जी की जीवनी पर अब कुछ भी याद नहीं | सब कुछ फिर से याद दिलाने के लिए धन्यवाद | अच्छा हुआ बता दिया की बस ख़राब है मुझे लगा की बस मेरे यहाँ ही नहीं आ रही है कब से इंतजार कर रही थी |
ReplyDeleteउस चित्र से पहचानना मुश्किल था, यह चित्र लगाते तो तुरंत पहचान जाते.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी!
ReplyDeleteकल जो चित्र दिया गया उससे वाकई पहचानना मुश्किल था ....बहुत नायब तस्वीर ढूँढ कर लगायी ....बधाई ...
ReplyDeleteबहुत रचनायें पढ़ी हैं, कामायनी पढ़ निढाल हो गया।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteनाम सुना है, पर पढ़ा नहीं.किताब खोजनी पड़ेगी अब इनकी..
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