यह कविता मेरे उन मुसलमान भाईयों के लिए है जो उनकी कौम के चंद गुनाहगारों कि वजह से दुनिया भर में शक की नज़र से देखे जाते हैं.....
क्यूँ इतना तिरस्कृत, इतना अलग,
हर बार यह निगाह मेरी तरफ क्यूँ उठती है....
क्यूँ हर जगह मुझसे मेरा नाम पूछा जाता है..
क्यूँ भूल जाते हैं सब कि इंसान हूँ मैं,
इस देश कि मिटटी का अब्दुल कलाम हूँ मैं,
गर्व से कहता हूँ... हाँ, मुसलमान हूँ मैं...
आतंक फैलाना मेरा काम नहीं,
ये श़क भरी दृष्टि मेरा इनाम नहीं,
इस धरती को मैंने भी खून से सीचा है,
मेरे भी घर के आगे एक आम का बगीचा है,
हँसते हँसते जो इस देश पर मर गया,
वो क्रांतिकारी अशफाक अली खान हूँ मैं,
गर्व से कहता हूँ, हाँ मुसलमान हूँ मैं,
क्या हुआ जो चंद अपने बेगाने हो गए,
गलत रास्ता चुनकर, खून की प्यास के दीवाने हो गए,
यह खूबसूरत वादियाँ हमारी भी जान हैं,
यह देश का तिरंगा हमारी भी शान है,
हरी-भरी धरती से सोना उगाता किसान हूँ मैं,
गर्व से कहता हूँ, हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
एक फिल्म देखी थी शौर्य , उसी को देखने के बाद इसको लिखा था...
अच्छा लगा |
ReplyDeleteअंशुमाला जी शुक्रिया...
ReplyDeleteआप सभी की प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार है...
shekahe ji , ek vicharneeya aur bahoot hi sarthak kavita........
ReplyDeleteसार्थक रचना !
ReplyDeleteहर धर्म का मूल इंसानियत ही है....
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ReplyDeleteइस कविता को पहले भी पढ़ा था ... बहुत अच्छी लगी थी ... आज फिर पढ़ा ... फिर से कह सकता हूँ कि आज भी अच्छी लगी ! सुन्दर रचना !
ReplyDeleteak achchi aur saarthak kavita padh kar bahut khushi hui.
ReplyDeletekavita apne andar bahut kuch samete hui hai !
dhanyawaad !
-gyanchand marmagya
सुन्दर एवं सार्थक रचना ।
ReplyDeleteएक अच्छे दिल की सच उजागर करती रचना।
ReplyDeleteजब समर्पण होता है देश पर तब गर्व से कहते है, हां मैं मुसलमान हूँ।
न कोई नीच न कोई महान सारा जग है एक समान !
ReplyDeleteअच्छी लगी आपकी यह कविता. यह बात सही है कि चंद लोगो की वजह से बाकियों को शक की निगाह से देखना सरासर मूर्खता है और एक बिना वजह जख्म के निशाँ देने जैसा है. हम सब इंसान ही तो है ये कोई क्यूँ नहीं समझता.
ReplyDeleteआपकी इस कविता के लिए क्या कहूँ शेखर जी .
ReplyDeleteबहोत ही अच्छा लिखा है आपने
बहोत ही सार्थक प्रस्तुति
आभार
बहुत अच्छी रचना ,अच्छे भाव
ReplyDeleteइंसानियत लभी किसी का धर्म नहीं देखती .सुन्दर भाव.
ReplyDeleteआदरणीय शेखर जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता
Sawai Singh Rajpurohit ji...
ReplyDeleteकृपया मुझे आदरणीय कह कर मुझे शर्मिंदा न करें...
आपको अच्छी लगी...आपका बहुत बहुत शुक्रिया ....
इंसानियत कभी किसी का धर्म नहीं देखती | धन्यवाद|
ReplyDeleteTruelly said... its really ridiculus to judge sum1 by one's religion...
ReplyDeleteअपने घर में प्यार और सम्मान से रहें और हँसते हँसते रहें इससे अच्छा और कुछ नहीं हो सकता ! बहुत बढ़िया रचना ...
ReplyDeleteशुभकामनायें
कविता को पहले भी पढ़ा था ... बहुत अच्छी लगी थी ..
ReplyDelete...........बहुत सुन्दर कविता
कविता दिल को छू गयी। सही बात है चंद लोगों की गलती का खामियाज़ा पूरी कौम क्यों भुगते। ये सब कुर्सी की लडाई है, कुछ स्वार्थी लोगों के बीच। वर्ना आम हिन्दू मुस्लिम तो अब भी प्रेम भाव से ही आपस मे मिलते है एक दूसरे का सम्मान करते हैं। बधाई इस रचना के लिये।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है !! ये मात्र एक कविता नहीं है वरन एक विचार हैं जो देश के सैकड़ो मुस्लिमों समेत भारत के आम जनमानस में पिछले कुछ दशकों से चल रहा है!
ReplyDeleteलेकिन ये बातें निराधार नहीं है! कुछ कारण जरूर है जिससे ये चर्चाएं होती है -
१. मुस्लिमों को कट्टरपंथी मौलवियों के विचारों से ऊपर उठाना होगा
२. इस्लाम मात्र उनके आस्था और धर्म का विषय रहे! इसका पालन वो पूरी निष्ठां के साथ कर सकते हैं लेकिन राष्ट्रीय हितों वाले विषय पर उन्हें अपनी कट्टरता को त्यागना होगा! जो अब दिख भी रहा है!
३. आजतक राजनैतिक दलों द्वारा मुस्लिमों को मात्र वोट बेंक की निगाह से देखा जाता रहा है! उन्हें उनके कट्टरपंथी मोलवियों ने अपने प्रभाव में इस तरह से जकड रखा था कि उन्हें आधुनिक शिक्षा से दूर रखा जाता जाता था और यदि शिक्षा दी भी जाती थी तो शिक्षा के साथ कट्टरता भी सिखाई जाती थी !
४. हम सभी जानते हैं कि सरकारी काम असरकारी नहीं होता है, सरकारें मुस्लिमों को ध्यान में रखकर विभिन्न योजनाएं बनाती है लेकिन छोटी छोटी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण वो योजनाएं पूरी नहीं हो पाती है! निश्चित रूप से समाज से सभी वर्गों के साथ मुस्लिमों का विकास भी उसी प्रकार होना चाहिए जिस प्रकार समाज के अन्य वर्गों का हो रहा है! कट्टपंथियों की लोक लुभावनी बातों में ना फसकर हमें कार्य करना चाहिए जिससे मुस्लिमों की पहचान राष्ट्रभक्त कि बने ना कि सच्चा मुसलमान और सच्चा हिंदू !!!!
अरे मियां...
ReplyDeleteबड़े देखे हमारा पक्ष लेने वाले..
तुम कवि लोग कुछ भी लिख दो, लोग तुम्हें अपना मसीहा समझने लगते हैं... मुसलमानो से इतना ही प्यार है तो अनवर जमाल को क्यूँ गरियाते फिरते हो...
एक कविता क्या लिख दी जैसे मुसलमान के रहनुमा ही बन गए....
हम मुसलमानों को न तुम जैसे हिन्दुओं की कभी ज़रुरत थी और न कभी होगी...
और देखो न,
ReplyDeleteअभी तक किसी मुसलमान ने टिपण्णी नहीं की है...सब तुम जैसे हिन्दुओं की असलियत जानते हैं..बड़े आये वाह वाही बटोरने वाले....
shekhar ji
ReplyDeleteaapki yah post manepahle bhi shayad padhi thi ,bahut hi achhi lagi thiaur aaj bhi padhkarman ko bahut hi bhaya aapne bilkul sach kaha hai--
गर्व से कहता हूँ, हाँ मुसलमान हूँ मैं,
क्या हुआ जो चंद अपने बेगाने हो गए,
गलत रास्ता चुनकर, खून की प्यास के दीवाने हो गए,
यह खूबसूरत वादियाँ हमारी भी जान हैं,
यह देश का तिरंगा हमारी भी शान है,
हरी-भरी धरती से सोना उगाता किसान हूँ मैं,
गर्व से कहता हूँ, हाँ मुसलमान हूँ मैं...
aisa hi bahut kuchh main bhi sochti hun,meri to sabhi se dosti ho jaati hai kyon ki main bhi usi najariye se sochti jisase aap sochte hain.
shayad isi liye kaha gaya hai ki
gehun ke saath ghun bhi pista hai.
bahut bahut badhai
poonam
शेखर जी ... बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना ... सच है की आम आदमी पीस कर रह जाता है फिर चाहे जो भी हो ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रही आपकी रचना!
ReplyDeleteआज के चर्चा मंच पर इस पोस्ट को चर्चा मं सम्मिलित किया गया है!
http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/376.html
शास्त्री जी...
ReplyDeleteआज आपके एक भी ब्लॉग का पेज ओपन नहीं हो रहा है...पता नहीं क्या परेशानी हो रही है...
bahot sunder.
ReplyDeleteक्या हुआ जो चंद अपने बेगाने हो गए,
ReplyDeleteगलत रास्ता चुनकर, खून की प्यास के दीवाने हो गए,
यह खूबसूरत वादियाँ हमारी भी जान हैं,
यह देश का तिरंगा हमारी भी शान है,
हरी-भरी धरती से सोना उगाता किसान हूँ मैं,
गर्व से कहता हूँ, हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
bahut sundar kavita...
shekhar ji mera koi aur blog nahi hai...mai jyada likhti hi nahi jo post kar saku, waise vijay ji ki rachnaye dil ki kalam per prakashit hoti rahti hai...
dhanywaad avam shubhkamnaye.
देवी प्रसाद मिश्र की कवीता थी ..मुसलमान ..डॉ नामवर सिंह की पत्रिका में प्रकाशित हुई थी /// आपकी कविता भी सुदर है /
ReplyDeleteन कोई नीच न कोई महान सारा जग है एक समान !
ReplyDeleteहक बयान किया है आपने
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! बेहतरीन रचना!
ReplyDeletebhavpoorna
ReplyDeleteखान भाई..
ReplyDeleteआप जो भी कोई हों... अगर अपने वास्तविक स्वरुप में आयें तो बड़ी मेहरबानी होगी...तब शायद आपके सवाल का जवाब दे पाऊंगा....
कन्हैया जी आपसे भी कुछ सवाल हैं..???
ReplyDelete१. क्या हिन्दू कट्टरपंथिता से बचे हुए हैं...
२. क्या गुजरात में जो हुआ वहां आपको कहीं भी इंसानियत दिखी थी, हालाँकि वहां दोनों पक्षों की गलती थी, लेकिन खामियाजा केवल मुसलमान पक्ष को भुगतना पड़ा...
3 अब मुसलमान कोई वोट बैंक नहीं रहा, बिहार के चुनाव में ये साबित हो गया है..
४. अगर हम हिन्दू या मुसलमान का विकास न करके इंसानों के विकास पर धयान देंगे तो ज्यादा बेहतर होगा, मेरे ख्याल से....
पूनम जी
ReplyDeleteआपने निश्चित रूप से पुराणी पोस्ट पढ़ी थी वहां भी आपकी टिपण्णी शोभा बढ़ा रही है...
बहुत बहुत धन्यवाद...
@ मोनाली
ReplyDeleteहाँ यार पता नहीं ये बात हम कब समझेंगे...
(वैसे तो हम दुनिया के सबसे समझदार प्राणी है...)
आप सभी को यह कविता पसंद आ रही है, बहुत बहुत धन्यवाद....
ReplyDeleteबेनामियों से अनुरोध है की कृपया गालियों का प्रयोग न करें वरना मुझे मजबूर होकर मोडरेशन लगाना पड़ेगा...इस कविता को एक स्वस्थ नज़रिए से देखें...
शेखर जी ! आज तो आपका सुमन सत्य और प्रेम का शिखर छूता हुआ लग रहा है ।
ReplyDeleteधर्म और अध्यात्म
'अध्यात्म' शब्द 'अधि' और 'आत्म' दो शब्दों से मिलकर बना है । अधि का अर्थ है ऊपर और आत्म का अर्थ है ख़ुद । इस प्रकार अध्यात्म का अर्थ है ख़ुद को ऊपर उठाना । ख़ुद को ऊपर उठाना ही मनुष्य का कर्तव्य है। ख़ुद को ऊपर उठाने के लिए प्रत्येक मनुष्य को कुछ गुण धारण करना अनिवार्य है जैसे कि सत्य, विद्या, अक्रोध, धैर्य, क्षमा और इंद्रिय निग्रह आदि । जो धारणीय है वही धर्म है । कर्तव्य को भी धर्म कहा जाता है। जब कोई राजा शुभ गुणों से युक्त होकर अपने कर्तव्य का पालन करता तभी वह ऊपर उठ पाता है । इसे राजधर्म कह दिया जाता है । पिता के कर्तव्य पालन को पितृधर्म की संज्ञा दे दी जाती है और पुत्र द्वारा कर्तव्य पालन को पुत्रधर्म कहा जाता है। पत्नी का धर्म, पति का धर्म, भाई का धर्म, बहिन का धर्म, चिकित्सक का धर्म आदि सैकड़ों नाम बन जाते हैं । ये सभी नाम नर नारियों की स्थिति और ज़िम्मेदारियों को विस्तार से व्यक्त करने के उद्देश्य से दिए गए हैं। सैकड़ों नामों का मतलब यह नहीं है कि धर्म भी सैकड़ों हैं । सबका धर्म एक ही है 'शुभ गुणों से युक्त होकर अपने स्वाभाविक कर्तव्य का पालन करना ।'
http://ahsaskiparten.blogspot.com
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ReplyDeleteइस सबके लिए मुसलमान ही जिम्मेदार हैं. वो खुलकर सामने क्यों नहीं आते. अरब देशों में कुछ होता है, भारत के मुसलमान विरोध शुरु कर देते हैं. भारत में इस्लामी आतंकवाद की बात आती है तो सबको सांप सूंघ जाता है. मुसलमानों में महिलाओं की क्या दुर्गति है. आपने हरम में चार-चार पत्नियाँ रखते हैं. जब चाहे तीन बार तलक बोलकर घर से निकाल देते हैं. ससुर द्वारा बलात्कार होने पर पीड़ित मिला को ही दंड भोगना पड़ता है. मुला कहते हैं- ससुर अब तुम्हारा पति हो गया और पति को अपना पुत्र मानो. क्या इस सबके खिलाफ मुसलमानों ने आवाज उठायी. ब्लॉग जगत में ही देख लो. सलीम खां जैसे लोग इस्लामी कुरीतियों का महामंडन करने पर तुले रहते हैं. सलीम ४-४ शादियों को ठीक ठहराता है. ये लोग कैसे भी करके लोगों का ब्रेन वाश कर उन्हें मुसलमान बनाने पर तुले रहते हैं. इन लोगों के ब्लोग देखो. वन्दे मातरम् का विरोध करते हैं. जिस देश का अन्न खाते हैं, उसी के साथ गद्दारी करते है.
ReplyDeleteमुसलमान इंसानियत कि नहीं इस्लाम कि बात करता है.
ReplyDeleteपहली बार ही पढ़ रहा हूँ. यह करोड़ों मुसलामानों के दिल की आवाज़ लगती है. आमीन.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना ...पढ़वाने के लिये आभार ।
ReplyDeleteWow mast mast mastttttttttt
ReplyDelete2 good . Aapne to saury dekh kar likhi maine wo dekha nai but my name is khan yaad aa gaya mujhe(so sad maine wo bhi nai dekhi sirf story janti hun)
इस कविता को एक स्वस्थ नज़रिए से देखें...
ReplyDeleteइन लोगों के ब्लोग देखो. वन्दे मातरम् का विरोध करते हैं. जिस देश का अन्न खाते हैं, उसी के साथ गद्दारी करते है.
ReplyDeleteअपने घर में प्यार और सम्मान से रहें और हँसते हँसते रहें इससे अच्छा और कुछ नहीं हो सकता ! बहुत बढ़िया रचना ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है !! ये मात्र एक कविता नहीं है वरन एक विचार हैं जो देश के सैकड़ो मुस्लिमों समेत भारत के आम जनमानस में पिछले कुछ दशकों से चल रहा है!
ReplyDeleteAmin.
ReplyDeleteaman ka paighaam, har deshwasi ko pahunche.
Dili Duaae.
एक बेनामी भाई मुसलमानों से तो सामने आने के लिए कह रहे हैं और खुद में सामने आकर बात कहने की हिम्मत नहीं है ।
ReplyDeleteऐसे लोग मुसलमानों पर भी आरोप लगाते हैं शेखर सुमन जी जैसे लोगों को भी लुक़मा देकर डायवर्ट कर देना चाहते हैं ।
मेरी तरह जब कोई मुसलमान देश की अखंडता के लिए ख़ुद तक को दांव पर लगा देता है तो उसकी तारीफ़ और समर्थन में दो शब्द इनकी ज़ुबान से नहीं निकलते ।
हां , कोई मुसलमानों की बुराई करता मिले तो ये टिप्पणियों की बरसात कर देंगे ।
मैंने अपने ब्लाग पर आज भी प्रिय प्रवीण शाह जी को संबोधित करते हुए कहा है कि -
कश्मीर समस्या के बारे में आपने जो विश्लेषण किया है , वह बिल्कुल ठीक है । मैंने अपने अध्ययन में भी यही पाया है । इन्हीं कश्मीरी लड़कों को लड़ाकों में तब्दील करने के लिए सरहद पार करा दी जाती है और पार कौन कराता है ?
आप जानते हैं , मैं जानता हूं और पब्लिक न ही जाने तो बेहतर है ।
कश्मीरी नेता अवाम को गुमराह भी कर रहे हैं और उसके विश्वास का सौदा भी कर रहे हैं कभी सरहद पार वालों से और कभी केंद्र वालों से ।
श्रीनगर के अभिजात्य मुस्लिम तबक़े के कुछ लोग इमदाद के नाम पर विदेशों से दीनार व डॉलर हवाला के ज़रिए ले आते हैं और मदद में देने के बजाय अपनी कोठियां और होटल बनाकर ऐश करते हैँ । इन लोगों ने श्रीनगर में ज़मीन के दाम आसमान पर पहुंचा दिए हैं । वहां के आम आदमी की हालत झारखंड और छत्तीसगढ़ के गरीबों से भी ज़्यादा बुरी है ।
लेकिन मेरे पास प्लान है , जो इनके दिमाग़ से अलगाववाद के विचार को उसके मूल सहित नष्ट कर देगा। उस प्लान को फ़क़त मैं जानता हूं और मैं अपने सीमित साधनों के साथ बरसों से करता आ रहा हूं बिना किसी दिखावे के , बिना किसी तारीफ़ की ख़्वाहिश के ।
मिशन जारी ही रहेगा , इंशा अल्लाह ।
इतना सब देखकर भी कितने हिंदू आये मेरे विचार का समर्थन करने ?
जबकि यही लोग बेसिर पैर की कविता पर वाह वाह करते हुए मिल जाएंगे ।
क्या इन तथाकथित हिंदू ब्लागर्स की हरकतों से देशप्रेमी मुसलमानों का हौसला नहीं टूटेगा ?
क्या मुसलमानों में यह धारणा नहीं बनेगी कि मुसलमान चाहे इस देश के लिए अपनी जान ही क्यों न दे दे, चाहे वह अपनी बीवी को बेवा और बच्चों को यतीम ही क्यों न बना दे तब भी उसके प्रति वह आत्मीयता और विश्वास हरगिज़ जागने वाला नहीं है जो कि इस देश के सूदख़ोर और रिश्वतख़ोर हिंदुओं को सहज ही हासिल है ।
मुसलमानों के यकीन का खून करने में बेनामी जैसे हिंदुओं का कितना हाथ है , इस पर भी विचार किया जाना चाहिए ।
...और हाँ , संभालकर रखना अपनी टिप्पणियाँ । कहीं ये किसी मुसलमान के काम न आ जाएं ।
...लेकिन जान लो कि यह रास्ता घातक है ।
इस 'क्यूं' का उत्तर खुद आपके भी पास है और हम सबके पास है....इस 'क्यों' के पीछे 1991 से लेकर अब तक कि कई तबाहियां छुपी हैं...इस 'क्यों' के पीछे 26-11 है इस क्यों के पीछे 13 मई 2008जयपुर, 13 सितम्बर 2008 दिल्ली के ब्लास्ट हैं इस क्यों के पीछे 11 जुलाई 2006 भी है मुंबई की लोकल ट्रेन की रफ्तार जो थमी थी इस दिन ....२६/११ भी नहीं ही भूले होंगे आप...
ReplyDeletejara sochiye ki agar ek pariwar me kul 10 sadasya hain, or unme se ek, do ya tin sadasya baagi or samaaj drohi ban gaye, to kya aap us pure pariwaar ko us shak or ghrina ki dristi se dekhiyega? jawab hai "haan" ab is "haan" ko jara khud par laagu kar sochiye, khud bakhud ye "kyun?" aapke muh se bhi nikal jayega...
ReplyDeleteor shekhar ji, duniya me muslim community aabadi me dushre sthan par aati hai, hamare hindustaan me to bantwaare ne ye hindu-muslim naam ki bij ropi, lekin duniya ke dushre jo bhi desh is mushlim aatankwaad ka shikaar ban rahe hain, wo kahin na kahin iske liye khud jimmedaar hain, unhone khud he aatankwaadiyon ko apne swaarth ke liye banaya tha, aapse taaliban ka sach koi chupa nahi hoga. ek baat or kehna chahunga shekhar ji, duniya me kewal or kewal muslim he aatankwaadi nahi hain, christan, hindu or sikkh aatankwaadi bhi hain, hamare desh me aaj jo naksalwaadi hinshe chal rahe hain, bhale he desh ki sarkaar or janta use naksalwaad ka naam de, lekin sab jaante hain ki wo bhi ek aatankwaad he hai.
main yahan kisiki wakalat ya kisike dosh nahi dikha raha, bas itna kehna chahunga, ki 10000 doshiyon ke karan 100000000 nirdoshon ko shak or ghrina ki drishti se dekhna kaanun he nahi, balki manavta ke khilaf hai, plz mere post ko koi personaly na le, agar kisiko mere is comment se koi pareshani hai to mai iske liye pehle hi unse kshama maang lena chahunga. dhanyawaad....
amit~~
मेरा यकीन कीजिये, आप अगर मुसलमान bloggers के ब्लॉग देखेंगे तो अधिकतम आप की तरह खुले विचार वाले नहीं है|
ReplyDeleteफिरदौसी दीदी और एजाज भाई जैसे कुछ लोग इनमे अपवाद हैं|
रचना काबिले तारीफ़ है, शुभकामनाएं|
हे भगवान्,
ReplyDeleteये क्या हो रहा है यहाँ,
ऐसा लग रहा है जैसे बेनामियों का गृह युद्ध चल रहा हो...क्या आप लोग अपने यही विचार अपने मूल रूप में आकर व्यक्त नहीं कर सकते...
अरे इतनी हिम्मत तो कम से कम होनी ही चाहिए....
आप सब को एक बात याद दिलाना चाहूँगा ये कविता उन मुसलमानों के लिए बिलकुल भी नहीं जो किसी भी तरह के गलत रास्ते पर चल रहे हैं, ये उन निर्दोष मुसलमानों के लिए है जो इसका परिणाम भुगतते हैं...
आपको ये भी पता होना चाहिए देशभक्ति या गद्दारी धर्म से नहीं सोच से आती है...
अगर आप लोगों में किसी को यह लगता है की देश में होने वाले हर एक अपराध में केवल मुसलमानों का हाथ है, तो पहले अपने घर के किसी नजदीकी पागलखाने में अपना इलाज़ कराएं....
क्यूंकि अपराधियों और आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता....
GAHAN MARMKO SAMETE HUYE SARTHAK RACHNA!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteDHANYAWAAD SIR,JO AAPNE ISE PHIR SE POST KIYA HAI!!!!!!!!!!!
sunder rachna hai
ReplyDeletesarthak rachna....ek haal hi mai film dekhi thi "my name is khan" woh bhi kuch isi vishay par thi
ReplyDeleteहाँ मुसलमान हूँ .......
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है!
"समस हिंदी" ब्लॉग की तरफ से सभी मित्रो और पाठको को एक दिन पहले
ReplyDelete"मेर्री क्रिसमस" की बहुत बहुत शुभकामनाये !
()”"”() ,*
( ‘o’ ) ,***
=(,,)=(”‘)<-***
(”"),,,(”") “**
Roses 4 u…
MERRY CHRISTMAS to U
शेखर जी, मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है!
बहुत बढिया... वाकई आम आदमी ही पिसता है चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान ... ..हम जब तक आपस मे ही एक दुसरे को शक से देखते रहेगे तो कैसे समझ पायेगे इस पीड़ा को ..
ReplyDeletemeri nai post dekh lena jab samay ho.....
ReplyDeleteयह देश का तिरंगा हमारी भी शान है
ReplyDeleteपरस्पर सद्भाव और देशभक्ति का संदेश देती सुंदर कविता।
आज इसी सद्भावना की आवश्यकता है।
शेखर जी आपने बहुत सुंदर बात कही है ! इसकी जितनी तारीफ की जाये कम है ! यह सार्थक वक्तव्य है
ReplyDelete"मेर्री क्रिसमस" की बहुत बहुत शुभकामनाये
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteरक्त है कुछ थका थका सा,
ReplyDeleteफिर भी मृत्यु कि उमंग है,
गलबहियां करती उद्दीप्त सितारों से,
टूटकर चूर होने कि जंग है..
शहद बना है घाव दीमक का,
लहू चाट कर साम्राज्य सो रहा.
निवालें में ज़हर रखकर माँ ने रोटी दी है,
कहती नमक अभी भी गाँधी ढो रहा..
राज्य है या आग का चिंगारी,
थोड़ी सी प्याज के लिए,
गुर्ज़रों कि आवाज़ के लिए,
भींगती बेचारी भारत माँ थर थर,
ख़ाक लिया आज़ादी जब मर रही है नारी...
चुप हो जा, सुन्न कि संसद में शोरगुल है,
अभी मुंबई में था चार,
अब्ब गुजरात भी बीमार,
ये आतंक है या बिमारी...
कोढ़ खुजाने से मिटती नहीं,
बढ़ जाती है लाचारी,
मेरी माँ को दीमक चाट रहा है,
फिर तुक्रों में बाँट रहा है,
छि: मैं बेटा हूँ, जो अभी बी टीवी के खबरों आगे बस लेता हूँ...
दे धुन कि तरंग से तृप्त हो गगन,
फांसी दो अपने हाथों से जो जेल में बंद..
कंचन कि मंजन से पहले, राख मल दो मुखरे पे,
गाँधी बाबा को सोने दो अब के मामूली झगडे पे...
हाथ तलवार ना लेना ना ही हिन्दू या मुस्लिम कहना,
अगर पाप नज़र आये अपने में, सबसे पहले अपनी गर्दन उतार देना..
मर जाओ रे मर जाओ, मेरे दोस्तों अब तो अपनी छोटी दुनिया से निकल कर आओ..
मारेगी ना तेरी मुहब्बत, अगर मर जाए देश तो क्या उल्फत...
देवेश झा
hi//// Shekhar its really a heart throbbing topic and you did well actually its my one of the most dweller topic... i loved it and keeps again...
"मेर्री क्रिसमस" की बहुत बहुत शुभकामनाये
ReplyDeletekabile tareef shekhar bhai.
ReplyDeletederi aay ahoon yaar
आपको क्रिसमस की शुभकामनाये
ReplyDeletewah!!! bahot zabardast!
ReplyDeletedekha yaha bhi hindu muslim ladai karne ko utar aye ...bas yahi durbhagya hai hamare desh ka.....etni sudar kavita se kuch prerna lena to door raha dharm k nam par ek doosre par teeka tippadi karne pe utar aye.......
ReplyDeleteबहुत खूब , पढकर अच्छा लगा ।
ReplyDelete