भले ही मैं इस तरह के ख़ास दिनों में कोई यकीन नहीं रखता, मेरे लिए पापा की बातें करने के लिए कोई एक दिन काफी नहीं हो सकता... लेकिन जब आस पास सब एक दूसरे को फादर्स डे की मुबारकबाद देते नज़र आते हैं तो कुछ-न-कुछ सोचने पर मजबूर हो ही जाता हूँ... जैसे फादर्स डे कोई त्यौहार हो गया हो दीवाली की तरह, हैप्पी दिवाली कहा पटाखे फोड़े, मिठाई खायी... और अगली सुबह उन फोड़े हुए पटाखों के कचरे को झाड़ू मार कर साफ़ कर दिया... मेरे ख़याल से फादर्स डे का मतलब तो तभी सफल होगा जब हर एक संतान ज़िन्दगी भर अपने पिता के पास रहे उनके बुढापे के उन लड़खड़ाते हुए क़दमों में उनका हाथ मजबूती से थामे रहे, क्यूंकि उन्हीं हाथों को पकड़ कर हमने भी कभी अपने पहले लड़खड़ाते कदम बढ़ाये थे...
कई कई बातें जो मैं और किसी से नहीं कह पाता, आईने के सामने जाकर बयान कर देता हूँ... अक्सर ये एकालाप मुझे खूब रुलाता है... पता नहीं क्यूँ बचपन में मैं आपके उतना करीब नहीं आ पाया, शायद आपका यूँ सख्त और अनुशासनप्रिय होना मुझे हमेशा आपसे डरा कर रखता था... फिर जैसे जैसे इस दुनिया की भागदौड़ में खुद को खड़ा करने की जद्दोजहद करने लगा, इस कठिन डगर पर चलने की तैयारी करने लगा तब एहसास हुआ कि आपकी वो सख्ती, वो डांट सिर्फ और सिर्फ मेरे भले के लिए थी... आपकी सिखाई हुयी हर वो बातें जब आज ज़िन्दगी के कठिन मोड़ पर मेरा हाथ थामे रहती हैं तब मालूम पड़ता है आप कितने ख़ास हैं मेरे लिए... पापाजी... ये वो शब्द हैं जिससे मुझे हमेशा इस बात का एहसास रहता है कि इस दुनिया के संघर्ष में, इसकी पथरीली और जलन भरी सड़कों पर लड़ने के लिए मैं अकेला नहीं हूँ कोई और भी उस भगवान् के प्रतिरूप में मेरा हाथ मजबूती से थामे एक सारथी की तरह मुझे हर उस मंजिल तक पहुंचाने की कोशिश में है, जिस मंजिल के हज़ार सपने मेरी आखों ने बुने हैं... आप मेरे लिए मेरे लहू में दौड़ते हुए जीवन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं...
जानता हूँ आपने मेरे लिए कई सपने देखे हैं... इन सपनों में आपका कोई भी स्वार्थ नहीं था, हर उस स्वार्थ से दूर आपने पूर्ण समर्पण किया अपनी इस कीमती पौध को हरा भरा करने की... ये पौधा आज अपनी उस ज़मीन से अलग होकर बिलकुल भी खुश नहीं है... ये पैसे कमाने की भागदौड़ में आपसे दूर हो गया... ये आत्मग्लानि बढती ही जा रही है, शायद कभी ख़त्म नहीं होगी... कभी कभी सोचता हूँ मुझे पढ़ा लिखा कर आपको क्या मिला, घर में कभी न ख़त्म होने वाला सन्नाटा... अकसर मुझे आप अपने सपनों में दिखाई देते हैं, उस सन्नाटे भरे आँगन में कुर्सी पर बैठे हुए, आपकी इन बूढी आखों में जैसे एक कभी न ख़त्म होने वाला इंतज़ार है... मन करता है सब कुछ छोड़-छाड़ कर आपके पास चला आऊं, लेकिन वो भी नहीं कर पाता... पापा, ये सपने मुझे बहुत परेशान करते रहते हैं... या तो मैं बाकी लोगों की तरह कभी प्रैक्टिकल नहीं बन पाया या फिर अन्दर से बहुत कमजोर हो गया हूँ... हालांकि आपके पास लौट आने की कोशिश जारी है लेकिन बस यही चाहता हूँ कि मैं आने वाले हर एक युग में, हर एक जन्मों में आपका ही बेटा बनूँ ताकि जो अगर कुछ आपके लिए इस जन्म में कर पाने में अक्षम हूँ आपके लिए वो हर कुछ कर सकूं...
आपकी सख्ती के कारण आप मुझे क्रूर नज़र आते थे... इसी मुगालते के कारण आपसे कभी प्यार से अपने दिल की कोई बात नहीं कह पाया, ये भी नहीं की मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ और आप मेरे लिए दुनिया के सबसे बड़े आदर्श हैं...पिछली बार की ही तरह इस बार भी, पापाजी... हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजियेगा...
पापा, मेरे भतीजे के साथ... " आप कभी मेरे साथ भी ऐसे ही खेलते होंगे न... :-)" |
जानता हूँ आपने मेरे लिए कई सपने देखे हैं... इन सपनों में आपका कोई भी स्वार्थ नहीं था, हर उस स्वार्थ से दूर आपने पूर्ण समर्पण किया अपनी इस कीमती पौध को हरा भरा करने की... ये पौधा आज अपनी उस ज़मीन से अलग होकर बिलकुल भी खुश नहीं है... ये पैसे कमाने की भागदौड़ में आपसे दूर हो गया... ये आत्मग्लानि बढती ही जा रही है, शायद कभी ख़त्म नहीं होगी... कभी कभी सोचता हूँ मुझे पढ़ा लिखा कर आपको क्या मिला, घर में कभी न ख़त्म होने वाला सन्नाटा... अकसर मुझे आप अपने सपनों में दिखाई देते हैं, उस सन्नाटे भरे आँगन में कुर्सी पर बैठे हुए, आपकी इन बूढी आखों में जैसे एक कभी न ख़त्म होने वाला इंतज़ार है... मन करता है सब कुछ छोड़-छाड़ कर आपके पास चला आऊं, लेकिन वो भी नहीं कर पाता... पापा, ये सपने मुझे बहुत परेशान करते रहते हैं... या तो मैं बाकी लोगों की तरह कभी प्रैक्टिकल नहीं बन पाया या फिर अन्दर से बहुत कमजोर हो गया हूँ... हालांकि आपके पास लौट आने की कोशिश जारी है लेकिन बस यही चाहता हूँ कि मैं आने वाले हर एक युग में, हर एक जन्मों में आपका ही बेटा बनूँ ताकि जो अगर कुछ आपके लिए इस जन्म में कर पाने में अक्षम हूँ आपके लिए वो हर कुछ कर सकूं...
आपकी सख्ती के कारण आप मुझे क्रूर नज़र आते थे... इसी मुगालते के कारण आपसे कभी प्यार से अपने दिल की कोई बात नहीं कह पाया, ये भी नहीं की मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ और आप मेरे लिए दुनिया के सबसे बड़े आदर्श हैं...पिछली बार की ही तरह इस बार भी, पापाजी... हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजियेगा...
ये तो जैसे मेरे दिल के बाते है....
ReplyDeleteशेखर ,
ReplyDeleteतुम्हारी तरह ही शायद हर बेटा अपने पापा से यही कहना चाहता होगा और उनमें से बहुत सारे शायद कह नहीं पाएंगे क्योंकि सुनने के लिए पापा अब नहीं हैं । जो कहना सुनना देखना समझना था सब करके वो चले गए । जब मिलना उनसे तो तो हुमच के गले लग जाना एक बार , और एक बार मेरे लिए भी । ज्यादा नहीं लिखूंगा नहीं तो रुलाई छूट जाएगी :(
आपकी आज की और पिछली पोस्ट भी पढ़ी
ReplyDeleteबहुत ही भावभरी पोस्ट है...
जैसे आपने अपना दिल ही निकालकर रख दिया है...
शब्द शब्द हृदयस्पर्शी है...
:-)
समझ सकती हूँ।
ReplyDeleteबहुत शानदार लिखा है आपने!
ReplyDeleteपितृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
bhavuk kar diya bhai...sabki yahi kahani hai..pita yunhi akhrot ki tarah kade khol me rehte hain..andar kam hi pahunch paate hain
ReplyDeleteस्नेह भरे मन को मन से ही समझना होता है, व्यक्त करना कठिन होता है कभी कभी..
ReplyDeleteमन भीग गया..................
ReplyDeleteपिता कभी नाराज़ नहीं होते.......
फिर माफ़ी कैसी....
अनु
भगवान का प्रतिरूप ही होते हैं पिता...
ReplyDeleteभावुक कर गयी आपकी लेखनी!
माँ बाप कभी बच्चों से नाराज नहीं होते ...पर आपकी माफ़ी आपके मन में उनके लिए सम्मान को दर्शाती है ...god bless u ...
ReplyDeleteशेखर ,तुम्हारे ब्लॉग पर जब भी आयीं हूँ तुम्हारी सोच को नमन कर के गईं हूँ ... शायद अभी तुम ये न समझ सको पर तुम्हारे पापा तुम्हारी भावनाओं को तुम्हारे न कहने पर भी समझ जाते होंगे ..... खुश रहो !
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद ...
Deleteतुम्हारा अपने पापाजी के लिए ये स्नेह और सम्मान देख कर मुझे हमेशा बहुत गर्व महसूस होता है ,शायद तुम्हारे ब्लॉग और तुम्हारी जिंदगी के प्रति मेरा झुकाव भी तुम्हारी पोस्ट "पापा हो सके तो मुझे माफ़ कर देना " से ही शुरू हुआ , सच में तुम्हारी हर सोच को मेरा सलाम .......और हो सके तो माँ और पापा जी को साथ रखना क्यों की मै नहीं चाहती की ये आत्मग्लानी तुम्हे परेशान करे .....और इतना अच्छा बेटा जिन्होंने दिया उन माँ -पापाजी को भी मेरा प्रणाम....
ReplyDelete:-)
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बेहतरीन संस्मरण, पितृ दिवस की शुभकामनाएं
केरा तबहिं न चेतिआ, जब ढिंग लागी बेर
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ संडे सन्नाट, खबरें झन्नाट♥
♥ शुभकामनाएं ♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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पुत्र का फर्ज हमेशा ही पिता को सुख देना होनी चाहिए !पर्व के रूप में नहीं ! मेरे लिए पिता हमेशा मेरे साथ है और उनका दुःख मेरा दुःख है ! बढ़िया लेख बधाई
ReplyDeleteBahut achcha likha hai, Shekharji. Haalanki ek baat kahna chaahungi ki main apne Papaji ke saath khoob waqt bitaati hu. Mere Papaji mere bahut achche dost hai. Waise mujhe bhi unke gusse se bahut darr lagta hai lekin main jaanti hu wo mujhe duniya me sabse pyar karte hai. Fathers' Day ke baare me aapka kahna sahi ho sakta hai lekin soch kar dekhiye ham har din khush rahe to bhi diwaali nahi mana sakte. Isliye ek din diwaali ka parv rakjha gaya taakin us din ko ham baaki saare kaamo ke upar khushiyaan manaane ko prathmikta de. Thik waise hi father's day etc. bhi hame ek dusre ke kareeb aane ka mauka deta hai. iska matlab ye nahi ki baaki din ham apne papa ko pyar nahi karte. iska matlab ye hota hai ki apni vyast zindagi me se kuch pal nikaal ke uspar pyaar ko jata bhi dena. Kal fathers' day par maine aur mere bhai ne apni family ke surprise picnic n trip plan kiya tha jo ham har din nahi kar sakte but fathers' day ne ye mauka de diya. aur main aapse bhi kahungi ki jhijhak chhoriye aur dil me jo baat hai khulkar apne papaji se kah dijiye. yakeen maaniye maa papaji ke gussse me bhi intehaan pyar hi hota hai
ReplyDeleteजी आपकी बातों से पूरी तरह से सहमत हूँ... लेकिन बात सिर्फ प्यार करने की या जतलाने की नहीं है बात है की आज कल हम इतने मजबूर हैं कि हम उनके साथ तब नहीं होते जब उन्हें हमारी सबसे ज्यादा ज़रुरत है... और झिझक या फिर अपनी भावनाओं का व्यक्त न पाने की मजबूरी ही समझ लीजिये... अब मैं लाख चाह कर भी उनसे ये सारी बातें नहीं कर सकता...
Deleteहर उस बेटे के दिल की आवाज़ को शब्द दिया है जो अपने घर से कमाने के लिए दूर होते हैं..सुन्दर लिखा है...
ReplyDeleteSundar lekh....
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