क्या आपको याद है थियेटर या सिनेमा हॉल में जब आपने पहली फिल्म देखी थी तब
आपकी उम्र क्या थी... खैर छोडिये अगर याद नहीं है तो... अक्सर मैं देखता
हूँ, कई लोग गोद में छोटे बच्चों को लेकर फिल्में देखने चले आते हैं.. क्या
आपने भी कभी ऐसा किया है... अब आप पूछेंगे भला इसका इस पोस्ट से क्या
लेना देना है... जी आपने सही कहा इसका इस पोस्ट से कोई लेना देना नहीं है
लेकिन इस बात का बच्चों की सेहत से ज़रूर लेना देना है... इस तरह की
लापरवाही भरी हरकत का बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में गहरा प्रभाव
पड़ सकता है...
पहले शारीरिक पहलू सोचिये, बच्चों के कान के पर्दे कितने
नाज़ुक होते हैं, बिलकुल फूल की पंखुड़ियों की तरह... कई फिल्मों में बीच बीच
में कानफाडू शोर या संगीत होता है... इस शोर के प्रभाव से बच्चों के कान
के पर्दे फट सकते हैं, अगर भगवान् की दया से न भी फटें तो ये कमज़ोर हो सकते
हैं, जिससे उनके सुनने की शक्ति कमज़ोर हो सकती है... लगातार अँधेरे में
इतने बड़े रौशनी से भरे स्क्रीन को देखने से उनकी आँखों पर भी प्रभाव पड़
सकता है...
फिर उनके मानसिक प्रभावों पर भी ध्यान दीजिये, बच्चे आखिर
क्या सीखते हैं... वही जो वो अपने आस पास देखते हैं... आस पास के माहौल को
अपना पथप्रदर्शक मानते हुए ये नादान सी जानें आज कल की फिल्मों से क्या सीख
रही हैं कभी आपने इस बारे में विचार किया है... आज कल की फिल्में कितनी भी
पारिवारिक हों ये इन छोटे छोटे बच्चों के बालमन को ध्यान रख कर नहीं
बनायीं जातीं.... फिल्मों में होने वाली मार-धाड़, अश्लील दृश्य आपके बच्चे
को एक गलत दिशा में सोचने के लिए प्रेरित कर सकते हैं...
आपने फिल्मों के सर्टिफिकेट्स के बारे में तो ज़रूर सुना होगा... केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा फिल्मों को सामान्यतः तीन तरह के सर्टिफिकेट दिए जाते हैं... "U" "U/A" और "A"...
"U" सर्टिफिकेट उन फिल्मों को दिया जाता है जो आप 4 साल से ज्यादा की उम्र के बच्चों के साथ देख सकते हैं, बहुत कम ही फिल्मों में आपने ये सर्टिफिकेट देखा होगा.. अभी की फिल्मों में फरारी की सवारी ऐसी ही फिल्मों में से एक है... लेकिन इस तरह की भी फिल्में 4 साल से छोटे बच्चों के साथ देखने से बचना ही चाहिए...
उसके बाद नंबर आता है "U/A" सर्टिफिकेट वाली फिल्मों का.. इस श्रेणी की फिल्मों के कुछ दृश्यों मे हिंसा, अश्लील भाषा या यौन संबंधित सामग्री हो सकती है, इस श्रेणी की फिल्में केवल 12 साल से बड़े बच्चे किसी अभिभावक की उपस्थिति मे ही देख सकते हैं... मतलब ये फिल्में भी आपको 12 साल से छोटे बच्चों को नहीं दिखानी चाहिए.. आज कल बनने वाली अधिकांशतः फिल्में इसी श्रेणी की होती हैं...
तीसरी श्रेणी है "A" .. यह वह श्रेणी है जिसके लिए सिर्फ वयस्क यानि 18 साल या उससे अधिक उम्र वाले व्यक्ति ही पात्र हैं...
चूंकि
वो नन्हे बच्चे कुछ बोल नहीं सकते तो उनकी तरफ से मैं आपसे बस इतनी सी
गुज़ारिश करना चाहूँगा, अपनी खुशियों का थोडा बलिदान और करें... और
बच्चों के साथ फिल्में देखने न जाएँ और न ही घर पर ही उन्हें इस तरह की फिल्में देखने दें... अपनी आने वाली पीढ़ियों का ख़याल करें...
सार्थक पोस्ट ... आभार जानकारी के लिए !
ReplyDeleteलो जी इस चक्कर में तो हम पूरे ६ साल तक थियेटर में फिल्म ही देखने नहीं गये थे !
ReplyDeleteअंशुमाला जी, जानकर अच्छा लगा... लेकिन अधिकांशतः माता-पिता इतने समझदार नहीं होते... क्यूंकि ऐसा शायद ही कभी ऐसा हुआ होगा जब मैं कोई फिल्म देखने गया होऊं और मैंने ऐसे लोगों का न देखा हो... काश लोग थोडा दिमाग से काम लेते होते....
Deleteप्रभाव तो हर अच्छी बुरी चीज का पड़ता है हर उम्र के आदमीं पर..
ReplyDeleteचाहें बच्चा हो या बुढा..
हाँ बच्चों पर कोई भी चीज ज्यादे इफ्फेक्ट डालती है क्योंकि उसके लिए हर चीज नई होती है...
4 साल से कम उम्र का वैसे बच्चा कुछ देखने समझने लायक होता भी नहीं ..लेकिन शहरों में उसके मम्मी-पापा करें भी तो क्या..?
वो तो अकेले रह रहे हैं अपने बच्चे को तीन घंटे के लिए किसके पास छोड़े उनके लिए ये छोटी बड़ी नहीं बहुत बड़ी परेशानी का विषय है...
तो क्या इतना बलिदान भी नहीं कर सकते हैं वो शहरी(?) लोग अपने बच्चों के लिए.... अंशुमाला जी का कमेन्ट तुम पढ़ ही चुके हो... वैसे भी आज कल फिल्मो में ऐसा क्या है देखने लायक की उसे बिना देखे नहीं रहा जा सकता... और आज कल नयी फिल्मों की ओरिजिनल DVD भी तो जल्दी आ जाती है.... और शहरों में परिवार के साथ फिल्में देखने का मतलब है कम से कम ५०० रुपये की चपत... तो थोडा इंतज़ार करें इतने रुपये की ओरिजिनल DVD खरीदें और अपनी फुरसत और सुविधा के हिसाब से फिल्मे देख लें... वो भी जितनी मर्ज़ी हो उतनी बार देखें...
Deleteऔर एक बात, ४ साल से छोटे बच्चे के ऊपर भी इसका मानसिक असर हो सकता है.... चलो थोड़ी देर के लिए मान लिया कि कम असर हो लेकिन इसके आखों और कानों पर पड़ने वाले असर को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता...
Deleteआज कल की फिल्मों में भी यार बहुत कुछ है देखने लायक... जो की पहले की फिलोम में भी होता था.. और शायद बहुत कुछ पहले की फिलोम मिएँ था नहीं नहीं वो नई चीज भी देखने को मिलती है. ढेर सारी चीजें बच्चों पे इफेक्ट डालती हैं... उसमें से एक फिल्म भी हैं. इसका प्रभाव अच्छा भी होता है और बुरा भी... आँखों और कानों तक ही बात को ना समेटो भाई... और मुझे नहीं लगता की ये इफेक्ट इतना भी बुरा नहीं होता.
Deleteतो क्या इतना बलिदान भी नहीं कर सकते हैं वो शहरी(?)
पता नहीं यार मुझे लगता है इसकी जिम्मेदारी उन बच्चों के माता पिता और उनकी सुविधा पर ही छोड़ देना चाहिए... हम दूसरे को कह सकते हैं ये करना चाहिए .. ये नहीं करना चाहिए...
अपनी समस्याए तो अब वो बंदा जानता है सारी दिक्कतों के बीच वो अपने बच्चे के लिए हर चीज कैसे अरेंज करता है.. और अपने बच्चे की जरुरत भी वही निर्धारित करता है...
अंशुमाला जी का कमेन्ट तुम पढ़ ही चुके हो..?
जरुर पढ़ चूका हूँ.... वो पूरे 6 साल थियेटर नहीं गए इस वजह से तो ये उनका अपने बच्चे के लिए फैसला था.. इसमें मैं नहीं समझता की मैं कोई होता हूँ टांग अड़ाने वाला..?
उनकी जगह मैं होता तो पता नहीं क्या फैसला करता कह नहीं सकता..?
DVD से लेकर इंटरनेट तक ढेर सारी सुविधाएँ हैं फिल्म देखने की .. लोग इन सुविधाओं का आनंद भी उठा रहे हैं. लेकिन ये साब वो अपनी सहूलियत के हिसाब से कर रहे हैं...
गर कोई माता पिता इन सुविधाओं को नज़रंदाज़ करते हुए थियेटर जाते हैं अपने बच्चे के साथ तो मेरी समझ से इसका मतलब ये नहीं होता कि वे अपने बच्चों से प्यार नहीं करते..
ये जानते हुए भी कि इस तरह फिल्में देखने का उनके बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है या पड़ सकता है.. वो फिल्में देखने जाते हैं इसका मतलब यही है कि वो उन्हें प्यार नहीं करते... . लेकिन अगर मैं अपनी कोई बात रख रहा हूँ तो इसका मतलब यह नहीं मैं उनपर अपना कोई निर्णय थोप रहा हूँ, जो बात सच है बस उनके सामने रख रहा हूँ....बाकी फैसला तो उन्हीं का है आखिर बच्चे भी तो उन्हीं के हैं..
Deleteबिलकुल सही लिखा है ....हम लोग तो बच्चों के काफी बड़े हो जाने बाद ही और उनकी पूरी हो चुकी नींद को देखते हुए ही जाते थे और वो भी बहुत कम ..... पर हाँ अब बच्चों के हास्टल से वापस आने का इंतज़ार करते हैं फिल्म देखने के लिए ...-:)
ReplyDeleteसही दिशा निर्देश देती पोस्ट
ReplyDeleteशाबाश ...
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट !
बिलकुल सही लिखा है. हमने भी बहुत सालों तक इस बात का ध्यान रखा था...अच्छी जानकारी
ReplyDeleteहम यह ध्यान अवश्य रखते हैं, बच्चों के लिये सब यह ध्यान रखें..
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति...
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