Tuesday, September 23, 2025

"कैसे साबित करूँ प्रेम..."

मैंने आपको
हर उस क्षण में याद किया
जब याद करने का कोई कारण नहीं था।

आपके नाम से पहले
कभी इबादत की तरह
"आप" कहना सीखा—
जैसे कोई बच्चा
पहली बार
ईश्वर बोलना सीखता है।

मैंने आपकी मुस्कुराहट
अपने मन के खेत में बोई है,
और हर तन्हा शाम
उसे अपने अकेलेपन से सींचा है।

मैं हर कविता में
आपकी अनुपस्थिति को
इतने प्रेम से दर्ज करता हूँ
जैसे कोई
मंदिर में
किसी अनदेखे देवता के लिए
दीया जलाता हो।


अगर ये सब प्रेम नहीं है,
तो फिर प्रेम सिर्फ़ शब्द है—
और आप उस शब्द के पहले अर्थ।

Sunday, September 21, 2025

बैंगलोर की धरती पर छठ का उजाला...

बैंगलोर — आईटी सिटी, चमकती रोशनी, तेज़ रफ्तार ज़िंदगी। पर इसी आधुनिक जीवन के बीच जब छठ का पर्व आता है, तो ऐसा लगता है मानो गाँव-घर की आत्मा यहाँ उतर आई हो। बिहार और यूपी की गली-कूचों में गूँजने वाले छठ गीत अब बैंगलोर के आसमान में भी गूंजते हैं।

गाँव की मिट्टी की महक, गंगा किनारे की ठंडी हवा, और घाट पर सूरज को अर्घ्य देने का नज़ारा — ये सब बैंगलोर में तो नहीं, पर दिल की गहराइयों में अब भी उतना ही जिंदा है। इसी याद और आस्था ने हमें यहाँ भी छठ की परंपरा को जीवित रखने की प्रेरणा दी है।

यहाँ अपार्टमेंट के मैदान नदी-तालाब का रूप ले लेते हैं। लोग मिलकर सजावट करते हैं, रंगोली बिछती है, दीप जलते हैं और पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठता है। महिलाएँ सिंदूर की लंबी रेखा सजाकर सूप में गन्ना, ठेकुआ, फल और दीया रखकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करती हैं। वह पल मानो गाँव के घाट पर खड़े होने जैसा ही पवित्र हो जाता है। यह केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि हमारी जड़ों से जुड़ने का पुल है, जो इस परंपरा को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाता है।

बैंगलोर में छठ पूजा केवल पूजा नहीं है, यह एकता और भाईचारे का उत्सव है। यह हमें याद दिलाता है कि चाहे हम कहीं भी रहें, अपनी मिट्टी, अपनी संस्कृति और अपने त्योहारों से रिश्ता कभी टूटता नहीं। 

ये पॉडकास्ट ज़रूर देखें और इंस्टाग्राम पर जुड़ें..  https://www.instagram.com/seg_arghya/ . हर लाइक, हर सहयोग हमें मदद करेगा इस परंपरा को जीवित रखने के लिए...  अगर आर्थिक सहयोग करना चाहें तो संपर्क करें... ..



 

Thursday, September 18, 2025

बेमानी बातों में...

https://unsplash.com/@steve_j
Image credit
दिन भर की बेमानी बातों में

मैं अक्सर खो जाता हूँ—
कभी किसी प्रोजेक्ट की समयसीमा,
कभी अनगिनत ईमेल की भीड़,
कभी उन मुस्कानों की औपचारिकता
जिनसे आत्मा का कोई रिश्ता नहीं।

लेकिन जैसे ही शाम ढलती है,
एक खिंचाव सा महसूस होता है—
सिर्फ घर की चार दीवारों तक नहीं,
बल्कि अपने भीतर के उस कोने तक
जहाँ मैं असल में “मैं” हूँ।

वो कोना जहाँ
शब्द अब भी साँस लेते हैं,
जहाँ थकान के बीच
कुछ अनलिखे पन्नों की गंध बाकी है।
वो जगह, जहाँ लौटना
मतलब अपनी पहचान से मिलना है।

Monday, September 15, 2025

सच या झूठ…

कभी-कभी सच,
गले में अटका काँटा होता है।
निकालो तो लहू बहता है,
दबा दो तो साँसें छिलती हैं।

मैंने सीखा है,
कुछ सच्चाइयों को तहख़ाने में उतार देना चाहिए,
जहाँ उनकी आवाज़ें
सिर्फ़ रात के अंधेरे में गूंजें,
और दिन के उजाले में
कोई दरार से झाँक न पाए।

तुम जानती हो,
ख़ुशी हमेशा सच की साथी नहीं होती,
कभी झूठ की झिलमिल परत
ज़िन्दगी को बचा लेती है।
जैसे बुझते दीपक के आगे
हथेली फैलाकर
मैं दिखाता हूँ कि रोशनी है—
हालाँकि हथेली जल रही होती है।

मैं मुस्कुराता हूँ,
कि तुम यह न समझ सको
मेरे भीतर की हरियाली
दरअसल राख पर उगी हुई घास है।

------------------

सच या झूठ…
दोनों ही अपने अपने वक़्त पर ज़रूरी लगते हैं।

सच कभी खंजर बनकर दिल चीर देता है,
तो झूठ कभी मरहम बनकर
उस ज़ख़्म को ढक देता है।

लोग कहते हैं—
सच से रिश्ते मज़बूत होते हैं,
मगर मैंने देखा है,
कई बार सच ही रिश्तों को चुपचाप तोड़ देता है।

झूठ बुरा है, ये सब मानते हैं,
पर वही झूठ कभी
किसी की आँखों की चमक बचा लेता है,
किसी की हँसी लौटा देता है।

तो आखिर सही कौन है?
सच?
या झूठ?

शायद असली जवाब यही है कि
ज़िंदगी इन दोनों की मिली-जुली कहानी है…
जहाँ सच और झूठ
दोनों ही अपने अपने किरदार निभाते रहते हैं।

Saturday, September 13, 2025

दूर हो तुम, पर पास भी हो...

दूर हो तुम पर पास भी हो,
साँसों की जैसी साँस भी हो।

महफ़िल में सब हैं, फिर भी जानाँ,
तुम ही मेरी तलाश भी हो।

पलकों पे तेरी ख़्वाब सजे हैं,
दिल में मेरे अरदास भी हो।

महक उठी है रूह की बगिया,
जैसे बदन की घास भी हो।

लब पे दुआ बनकर ठहरना,
आँखों की कोई प्यास भी हो।

Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...