Thursday, September 18, 2025

बेमानी बातों में...

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दिन भर की बेमानी बातों में

मैं अक्सर खो जाता हूँ—
कभी किसी प्रोजेक्ट की समयसीमा,
कभी अनगिनत ईमेल की भीड़,
कभी उन मुस्कानों की औपचारिकता
जिनसे आत्मा का कोई रिश्ता नहीं।

लेकिन जैसे ही शाम ढलती है,
एक खिंचाव सा महसूस होता है—
सिर्फ घर की चार दीवारों तक नहीं,
बल्कि अपने भीतर के उस कोने तक
जहाँ मैं असल में “मैं” हूँ।

वो कोना जहाँ
शब्द अब भी साँस लेते हैं,
जहाँ थकान के बीच
कुछ अनलिखे पन्नों की गंध बाकी है।
वो जगह, जहाँ लौटना
मतलब अपनी पहचान से मिलना है।

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