बैंगलोर — आईटी सिटी, चमकती रोशनी, तेज़ रफ्तार ज़िंदगी। पर इसी आधुनिक जीवन के बीच जब छठ का पर्व आता है, तो ऐसा लगता है मानो गाँव-घर की आत्मा यहाँ उतर आई हो। बिहार और यूपी की गली-कूचों में गूँजने वाले छठ गीत अब बैंगलोर के आसमान में भी गूंजते हैं।
गाँव की मिट्टी की महक, गंगा किनारे की ठंडी हवा, और घाट पर सूरज को अर्घ्य देने का नज़ारा — ये सब बैंगलोर में तो नहीं, पर दिल की गहराइयों में अब भी उतना ही जिंदा है। इसी याद और आस्था ने हमें यहाँ भी छठ की परंपरा को जीवित रखने की प्रेरणा दी है।
यहाँ अपार्टमेंट के मैदान नदी-तालाब का रूप ले लेते हैं। लोग मिलकर सजावट करते हैं, रंगोली बिछती है, दीप जलते हैं और पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठता है। महिलाएँ सिंदूर की लंबी रेखा सजाकर सूप में गन्ना, ठेकुआ, फल और दीया रखकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करती हैं। वह पल मानो गाँव के घाट पर खड़े होने जैसा ही पवित्र हो जाता है। यह केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि हमारी जड़ों से जुड़ने का पुल है, जो इस परंपरा को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाता है।
बैंगलोर में छठ पूजा केवल पूजा नहीं है, यह एकता और भाईचारे का उत्सव है। यह हमें याद दिलाता है कि चाहे हम कहीं भी रहें, अपनी मिट्टी, अपनी संस्कृति और अपने त्योहारों से रिश्ता कभी टूटता नहीं।
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