Sunday, June 16, 2019

डेडलॉक...

ज़िन्दगी में कई सारे फेज होते हैं, बचपन में जब आप अपने पिता का सम्मान करते हैं, फिर एक वक़्त आता है जब दूरियां बढ़ जाती हैं, आपको आजादी चाहिए होती है और उनको अनुशासन, मन कड़वा होता है उन दिनों, नज़र बचाते फिरते हैं...  फिर एक वक़्त के बाद गर्व भाव आता है कि उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में इतना कुछ किया, सबके लिए... सबका ख्याल रखा... और फिर धीरे धीरे जब उनपर प्यार आना शुरू होता है वो बूढ़े हो चुके होते हैं... फिर झिझक इतनी ज्यादा होती है कि प्यार जतला नहीं पाते... 

आज कल मैं आश्चर्य भाव में हूँ, हर बात पर गुस्सा करने वाले, अपनी जिद पूरी करवाने वाले आज मुझे कुछ नहीं कहते... वो बस चाहते हैं कि मैं जो चाहता हूँ वो मुझे मिले, उन्हें पता है कि अगर ये खुशियाँ मुझे आज नहीं मिलीं तो मैं कितना टूट जाऊँगा... मैं उनकी ख़ुशी के लिए अपनी ख़ुशी से मुहँ भी नहीं फेर सकता क्यूंकि उन्हें पता है इस तरह मैं कभी खुश नहीं हो पाऊंगा, और मैं खुश नहीं हुआ तो वो भी नहीं.... 

चारो तरफ डेडलॉक है, और इसमें सब फंसे हुए हैं... बस इस बात का गर्व है कि उन्होंने मेरी खुशियों की अहमियत समझी और आज मेरे हर निर्णय में मेरे साथ खड़े हैं, वो सिर्फ कहने को मेरे पिता नहीं हैं उन्होंने मेरे लिए सच में खुद को बदल लिया... अफ़सोस बस यही है कि इन खुशियों का महत्व हर कोई नहीं समझता, उनके लिए अजीब तरह की Priorities हैं, और मैं ये भी नहीं कह सकता कि वो अपनी जगह पर सही हैं...

खैर, पापाजी मुझे कई बार ऐसा लगा कि आप शायद भावनाओं को नहीं समझते, आज भी बहुत बार लगता है लेकिन आपने मुझे समझा और मेरी बदकिस्मती भी देखिये बदले में कुछ ख़ास नहीं है देने को... बस एक डेडलॉक दे दिया है मैंने उस भरोसे के बदले में... जब मेरी ख़ुशी में दूसरों को ख़ुशी मिलने लगे तो मैं बलिदान भी कैसे दूं, उससे भला कौन खुश होगा... जब मैं ही खुश नहीं...

काश हर पिता अपने बच्चों के साथ खड़े होते, उनपर उतना ही भरोसा करते, उसी तरह जिस तरह आप मेरे साथ खड़े हैं, मुझपर भरोसा किया है... 

मैं लड़ रहा हूँ, आगे भी लड़ना चाहता हूँ, बस हिम्मत नहीं मिलती....मैं आपको वो ख़ुशी देना चाहता हूँ जो आपको मुझे खुश देखकर मिलती हो... और मेरी ख़ुशी ऐसे पिंजरे में कैद हो गयी है जिसकी चाभी मेरे हाथ में है ही नहीं... 

Tuesday, June 11, 2019

कोमा...

उम्मीदों का क्या है, कभी जगती हैं कभी ख़त्म हो जाती हैं....  हर सुबह एक नयी उम्मीद के साथ शुरू होती है और रात ढलते ढलते दिल बुझता जाता है, जाने क्या होगा... जाने क्या होने वाला है... ज़िन्दगी की ये सड़क जैसे अगले मोड़ पर थम सी जाने वाली है... हर रोज आँखों से बहते इस इंतज़ार में आगे के रास्ते बह चुके हैं....

कई साल पहले तुमने एक बंद कमरा खोला था, लगता है मैं आज भी उसकी चौखट पर खड़ा हूँ, पर इस बंद कमरे की एक-एक ईंट अब मेरी रग-रग में बहती है, मेरी दुनिया अब यहीं सिमट के रह गयी है.. मेरे साथ यही एक तो दिक्कत है, मुझे इश्क़ के आलावा कुछ समझ ही नहीं आया... तुम्हें हर रोज उतनी ही शिद्दत से गले लगाने की ख्वाइश थी, पर इन ख्वाहिशों का क्या है, कुछ पूरी होती हैं और कुछ इसलिए बनी होती हैं ताकि टूट सकें... 

कभी सोचती हूँ की कैसा होता अगर बंद कमरा बंद ही रहता ....या फिर बिना कुछ कहे मै तुमसे दूर चली जाती ,पता नहीं मै किस चीज से भाग रही थी शायद अपने आप से और अपनी जिंदगी से ,मै सब कुछ खोने वाली थी और शायद जिंदगी में तुम्हे खोकर कुछ नहीं बचता मेरे पास .....अब तुम मेरे साथ हो तो लगता है कि मै कहीं भी अकेली नहीं हूँ तुम साथ न होकर भी साथ होते हो हमेशा ....... :-)

ये जो ज़िन्दगी के ख्व़ाब हैं न, वो टूटते हैं तो बहुत तकलीफ होती है और मुझे तो बहुत ही ज्यादा... बहुत वक़्त बीत गया है इस ख्व़ाब को सीने से लगाये हुए, ये अब मेरे खुद के वजूद का हिस्सा हैं.. इसके इतर ज़िन्दगी हो शायद मुमकिन लेकिन वैसी तो नहीं ही होगी जिसकी चाह थी हमेशा से... लगता है, दुनिया में सब छोड़ जाएँ बस तुम न जाओ कहीं... तुम्हारे लिए क्या मुमकिन है क्या नहीं ये तो शायद तुम्हीं जानों, तुम्हारी बातों के इर्द गिर्द कई सारी जिंदगियां हैं, कई सारे रिश्ते हैं.... मेरे से कहीं पुराने... मेरा तो जो होना है हो ही जाएगा....

पता नहीं, अगले जन्म में भी तुमसे मिलने की ख्वाइश रखूँ या न रखूँ... अगर कहीं अगले जन्म में भी यूँ भी बिछड़ना लिखा हो तो... नहीं मिलने का तो कोई दुःख नहीं होगा, पर यूँ बार-बार बिछड़ना न हो पायेगा... 

सुनो न, मत मिलना अब कभी... अलविदा.... 

Tuesday, May 21, 2019

अगर ज़िन्दगी एक सफ़र है, तो तुम्हारे साथ ही चलना है....

इतनी सारी जगहें, इतने देश घूमने के दरम्यान इतना तो मुझे समझ आया कि तुमसे अच्छा ट्रेवल पार्टनर कोई नहीं है.. पता नहीं शायद तुम्हारे लिए कोई और भी हो, पर ऐसा कोई नहीं जिसके साथ मैं इतना आज़ाद होता हूँ, इन सारी ट्रिप में वायनाड ही है जिसमे सबसे ज्यादा मज़ा आया... 

मुझे याद है तुमने लद्दाख ट्रिप के वक़्त कहा था कि अगर मैं होता तो तुम्हें मज़े करने नहीं देता, हो सकता है किसी हद तक ये बात सच हो लेकिन यकीन मानो अगर मैं होता तो वो ट्रिप हम दोनों का ही सबसे यादगार ट्रिप होता... लेकिन इस अगर-मगर ने बहुत कुछ अधूरा छोड़ दिया मेरे अन्दर... 

अभी तो मेरे हिस्से बस एक काश ! ही रह गया है... न जाने कितने काश हैं जो कचोटते हैं, मन उदास होता है फिर लगता है कि क्या पता फिर मौका मिले... 

मैं सबसे बेसिक बात ही भूल गया था इन सालों में कि क्या पता कल हो न हो...

पूरी दुनिया घूमनी है बस तुम्हारे साथ, तुम्हें सच में बहुत मिस करता हूँ... जब किसी नई जगह जाओ तो तुम जिस तरह कहती हो न "Wow...!" बस वही हर वक़्त सुनाई देता है मुझे... अरसा हो गया ऐसा कुछ सुने हुए, इन सब बातों को मैं बस यादों में तब्दील नहीं कर सकता, ये तो मेरा हकीकत थी, हमारी ख़ुशी का जरिया... 


Saturday, February 23, 2019

अब इसका क्या शीर्षक हो भला...

वक़्त बहुत गुज़र गया है इन सालों में, उतना ही जितना कायदे से गुज़र जाना चाहिए था.. ज़िन्दगी भी वैसे ही चल रही है जैसे मामूली तौर पर चला करती है... कोई चुटकुला सुना दे तो हंस देता हूँ और कोई इमोशनल मूवी दिखा दे तो आंसू निकल आते हैं... कुछ भी ऐसा बदला नहीं है, जिसका जिक्र करना ज़रूरी मालूम पड़े... हाँ इन बीते सालों में सीखा बहुत कुछ, सीखा कैसे दुनिया दोतरफा बातें कर सकती है... कैसे मोहब्बत नफरत के सामने कमज़ोर नज़र आती है कभी-कभी, कैसे आप कुछ चाहें तो उसको हासिल करने का ज़ज्बा कितना कुछ करवा जाता है...

ज़िन्दगी आम तौर पर किसी लड़ाई से कम तो है नहीं, कभी अपनों से, कभी दुनिया से और कभी अपने आप से ही... इस लड़ाई के बीचो बीच मैं खड़ा होकर आसमां निहारा करता हूँ, मुझे सुकून पसंद है... इस लड़ाई में अकेले जाने का दिल नहीं करता, लगता है मुँह फेर लूं... 

ज़िन्दगी कई सारे झूठों के इर्द-गिर्द सिमट न जाए इसलिए दुनिया में मोहब्बत बनी होगी, ऐसा सच जो जीना मुकम्मल करता है... इस लड़ाई में जब आस-पास इश्क़ घुल जाए तो अच्छा लगता है, लगता है जैसे कोई एक इंसान तो है जो मेरे साथ खड़ा है... लगता है ज़िन्दगी इतनी लम्बी होने की ज़रुरत ही क्या थी, चार दिन की ही होती लेकिन मोहब्बत से भरी होती तो क्या बुरा था, क्यूँ इतना दर्द देखना भला... 

अजीब बात ये हैं कि कम से कम भारत में हर फिल्म, हर गाना मोहब्बत के इर्द गिर्द ही लिखने का दौर रहा है और इस देश को सबसे मुश्किल मोहब्बत समझने में ही लग गयी, साथ रहने-साथ होने के लिए मोहब्बत से ज्यादा ज़रूरी भी भला क्या हो सकता है... 

मेरे अन्दर लेखक कभी बसता था भी या नहीं, ये तो नहीं पता लेकिन अब जब कभी लिखने बैठता हूँ तो लगता है कि जैसे मेरी कलम पर एक बोझ सा आन पड़ा है, अपनी मोहब्बत को हमेशा साथ रखने का बोझ... उसके बिना तो जैसे कुछ कर ही नहीं पाऊंगा कभी... 

ऐसे अकेला बैठा बैठा कुछ भी बकवास लिखता रहूँ और तुम ये पढ़ते रहो तो मुझे ही बुरा लगेगा न... 

एक मुसाफिर, जो तारों को देखता था, चाँद को सहलाता था, आसमान को बांधता था, सुबह की सूरज की किरणों में सुकून महसूस करता था... जिसने तितलियों की आखें पढने की कोशिश की थी, जो जागती आखों से सपने देखता था, उसे तुम्हारा इंतज़ार रहता है इन दिनों... 

Sunday, December 16, 2018

आवारों सड़कों की मोहब्बत...

उन तंग गलियों में हाथों में हाथ डाले 
जनमती पनपती मोहब्बत देखी है कभी... 

उन आवारा सड़कों पर 
छोटी ऊँगली पकडे चलती ये मोहब्बत... 

उस समाज में जहां सपनों का कोई मोल नहीं, 
ऐसे में एक दूसरे की आखों में 
अपना ख्व़ाब सजाती ये मोहब्बत... 

नाज़ुक सी डोर से जुड़े ये दिल, 
लेकिन आस-पास के कंटीले बाड़ों से 
लड़ती उनकी ये मोहब्बत... 

उनके होठों पर एक कच्ची सी मुस्कान लाने के लिए 
दुनिया भर से नफरत मोल लेती ये मोहब्बत... 

जब लोगों ने अपने दिल में जगह न दी तो, 
सड़कों किनारे बैठे 
आसमां का ख्व़ाब देखती ये मोहब्बत... 

थक जाएँ टहलते हुए तो, 
पार्क के बेचों पर 
बैठने को जगह तलाशती ये मोहब्बत... 

मिलन की उम्मीद जब हताशा में बदल जाए तो 
किसी तन्हा शाम में 
तकिये नम करती ये मोहब्बत... 

इन बंदिशों, रंजिशों से पंगे लेते हुए 
दिल में मासूम एहसास 
संजो कर रखती ये मोहब्बत... 

जब मंजिल लगे धुंधली सी तब भी 
वहाँ तक पहुँचने के 
रास्ते से ही मोहब्बत करती ये मोहब्बत....

जब साथ जवान न होने दिया जाए
तो साथ बूढ़े होने को बेताब ये मोहब्बत...

साल-दर-साल की जुदाई में,
हर ख़त्म होते साल के साथ
अगले साल का इंतज़ार करती ये मोहब्बत...

न किसी महल की ख्वाईश, 
न ही किसी जन्नत की  
हमें मुबारक अपने आवारा सड़कों की ये मोहब्बत...


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