बीते हफ्ते ना जाने कितनी रचनायें पढ़ीं , कोशिश थी कि अच्छी से अच्छी रचना आपके लिए लायी जाए... ऐसा लगा जैसे मैंने बहुत ही कठिन कार्य ले लिया हो, लेकिन सच में बहुत अच्छा लगा इतनी खुबसूरत रचनायें पढ़कर...
तो वादे के मुताबिक सुनहरी यादों के झरोखे से इस शनिवार मैं आपके लिए लाया हूँ आदरणीय रश्मि प्रभा जी की दो रचनायें... पहली रचना जो उन्होंने 16 जनवरी 2008 को प्रकाशित की थी... माँ बनने के बाद एक स्त्री की सोच और ज़िन्दगी कितनी बदलती है उसका बहुत ही प्यारा सा वर्णन है... कविता का शीर्षक है ....
" मायने बदल जाते हैं.."
जब मासूम ज़िन्दगी अपने हाथों में,अपनी शक्ल में मुस्कुराती है
तो जीवन के मायने बदल जाते हैं...
बचपन नए सिरे से दौड़ लगाता है!
कहाँ थे कंकड़, पत्थर?
कहाँ थी काई ?
वर्तमान में जीवंत हो जाते हैं॥
नज़रिये का पुनर्आंकलन
मासूम ज़िन्दगी से जुड़ जाते हैं...
जो हिदायतें अभिभावकों ने दी थी
वो अपनी जुबान पर मुखरित हो जाते हैं!
हमने नहीं मान कर क्या खोया
समझने लगते हैं
नज़र, टोने-टोटके पर विश्वास न होकर भी
विश्वास पनपने लगते हैं!
"उस वृक्ष पर डायन रहती है...."
पर ठहाके लगाते हम
अपनी मासूम ज़िन्दगी का हाथ पकड़ लेते हैं
"ज़रूरत क्या है वहाँ जाने की?"
माँ की सीख, पिता का झल्लाना
समय की नाजुकता समय की पाबंदी
सब सही नज़र आने लगते हैं!
पूरी ज़िन्दगी के मायने
पूरी तरह बदल जाते हैं |...
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दूसरी रचना कुछ नयी है, उम्मीद आप में से काफी लोगों ने पढ़ी होगी, यह उन्होंने १० जुलाई २००९ को प्रकाशित की थी..इस कविता में उन्होंने ज़िन्दगी में आने वाली परेशानियों का शुक्रिया अदा किया है.... यह कविता उन लोगों के लिए अमृत का काम करेगी जो ज़िन्दगी के दुखों से हताश हैं... कविता का शीर्षक है.....
" शुक्रगुज़ार "
दर्द ने मुझे तराशा है,
दर्द देनेवालों की
मैं शुक्रगुजार हूँ........
यदि दर्द ना मिलता
तो सुकून का अर्थ खो जाता,
खुशियों के मायने बदल जाते,
अपनों की पहचान नहीं होती,
गिरकर उठना नहीं आता,
आनेवाले क़दमों में
अनुभवों की डोर
नहीं बाँध पाती.........
मैं शुक्रगुजार हूँ,
उन क्रूर हृदयों का
जिन्होंने मुझे सहनशील होना सिखाया,
सिखाया शब्दों के अलग मायने
सिखाया अपने को पहचानना ........
तहेदिल से मैं शुक्रगुजार हूँ,
दर्द की सुनामियों की
जिसने मुझे डुबोया
और जीवन के सच्चे मोती दिए...........
दर्द देनेवालों की
मैं शुक्रगुजार हूँ........
यदि दर्द ना मिलता
तो सुकून का अर्थ खो जाता,
खुशियों के मायने बदल जाते,
अपनों की पहचान नहीं होती,
गिरकर उठना नहीं आता,
आनेवाले क़दमों में
अनुभवों की डोर
नहीं बाँध पाती.........
मैं शुक्रगुजार हूँ,
उन क्रूर हृदयों का
जिन्होंने मुझे सहनशील होना सिखाया,
सिखाया शब्दों के अलग मायने
सिखाया अपने को पहचानना ........
तहेदिल से मैं शुक्रगुजार हूँ,
दर्द की सुनामियों की
जिसने मुझे डुबोया
और जीवन के सच्चे मोती दिए...........
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उम्मीद है आपको यह दोनों रचनायें पसंद आयी होंगी... अपने विचार और सुझावों से मुझे जरूर अवगत कराएं....
Bahut hi badhiya...........
ReplyDeletesunahri yaadon ka pahla ank bada sunahra hai....
ReplyDeletethanks for working on a innovative vision!!!
@ वीरेंदर जी..
ReplyDelete@अनुपमा जी..
बहुत बहुत धन्यवाद....
उम्मीद है आने वाले अंक भी पसंद आएंगे...
्रश्मि जी की दोनो ही रचनायें बेहद उम्दा और गहन हैं……………पढवाने के लिए आभार्।
ReplyDeleteदोनो ही रचनायें बेहद उम्दा हैं……………पढवाने के लिए आभार्।
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ ही शानदार है ...
ReplyDeleteरश्मि जी को यहाँ देखना बहुत अच्छा लगा ...!
वंदना जी , संजय भाई, वाणी जी...
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद....
rashmi ji ki ye dono rachna punah yahan padhhi, bahut achha laga, bahut dhanyawaad shekher suman ji, rashmi ji ko badhai.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत हैं दोनों रचनाएँ ....और यहाँ पढवाने के लिए आपका आभार
ReplyDeleteboth are beautiful....keep sharing!!
ReplyDeleteदोनों ही रचनाएँ बहुत सुंदर हैं ... रश्मि जी बधाई स्वीकारें .... शेखर जी आपका प्रयास सराहनीय है ... आभार
ReplyDeleteShekahr ji,
ReplyDeleteaapne dono kavitaaen achchi aur maarmik chhanti hain uske liye aap ko dhnyvaad.saath saath Rashmi Prabha ji ko bhi hamara dhanyvad pahuncha den.
श्रीमति रश्मीजी की कविताओं से उद्घाटन करने के लिए और प्रस्ताव का कार्यान्वयन के लिए बधाई।
ReplyDeleteअब एक और ब्लॉग्गर से आपने हमारा परिचय कराया।
रचनाएं अच्छी लगीं। चुन चुनकर ऐसी ही बेहतरीन और पठनीय लेख हर शनिवार को प्रकाशित करते रहिए।
नवरात्री के अवसर पर आपको, आपके परिवार को और आपके सभी पाठकों को हमारी शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
बेहतरीन रचनाएं --आप ही न एक दिन बहुरूपिये अर्थ देसाई क नेट पर खोज रहे थे ?
ReplyDeleteजी हाँ मिश्रा जी...क्यूँ कोई बात हुई क्या ???
ReplyDeletetwo of tham are damm gud..keep that up n keep sharing..)
ReplyDeleteशेखर सुमनजी, आपका प्रयास तारीफे-काबिल है.
ReplyDeletereally both the poems really good and have deepm meanings.How the life of a woman changes when she becomes mother and how her life starts revolving around her offspring,has been depicted quite beautifully.
ReplyDeleteThe second poem about how facing hardships in life make us more determined and eventually improves our handling of situation even more better.
Kudos to the poetess and also appreciation for u for bringing us such good creations to us.
thanx buddy and keep rocking:-)
@ atul sir...
ReplyDeletethanku very much 4 ur kind comments....
and @ PJ...
thankz 2 u too....
@ रविन्द्र रवि जी बहुत बहुत धन्यवाद,,,,
ReplyDelete@ shabnam ji, xitija ji, sangeeta ji, saumya
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद,,,,यूँ ही उत्साह बढ़ाते रहे..
Bahut hi pyari rachnayein....specially, pehli wali poem.. Thnk u Shekhar ji for let us have a luk over such wonderful poems...
ReplyDeleteबहुत से अहसास पिरोये है इनमे रश्मि जी ने...
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी रचनाये
शेखर जी आपका प्रयास अच्छा लगा
@ साखी जी और मोनाली जी..
ReplyDeleteअपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद |
शेखर जी आपका प्रयास सराहनीय है .
ReplyDeleteshukriya....
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएं
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
rashmi ko jitni bar parho utni bar naya lagta hai
ReplyDeleteदोनों ही बहुत सुन्दर...अभी एक बार फिर पढ़ रहा हूँ.
ReplyDeleteya u said true niv ji....
ReplyDeletethanku sameer ji..aapne to meri kayi rachnayein miss kar di hain....
ReplyDeleteशेखर जी
ReplyDeleteआगाज़ बहुत अच्छा लगा..................रश्मि जी की रचनाओं की बात ही कुछ और है........दुआ करती हूं कि ये शब्दों का सफर कभी खत्म ना हो...............बस बढ़ता जाये........
सुमन जी सबसे पहले तो आप जो इतनी मेहनत कर रहे हैं उसका शुक्रिया ...इतने ब्लोगों पर जाना ....खंगालना और बेहतरीन नज्मों को चुनना ....
ReplyDeleteरश्मि जी कि दोनों रचनायें अनपढ़ी थी ...और रश्मि जी तो हैं हीं बेहतरीन रचनाकार .....दिल की भी उतनी ही साफ ....
दोनों रचनायें बहुत अच्छी हैं ...खासकर ये पंक्तियाँ .....
अगर दर्द न मिला होता तो
सुकून कहीं खो जाता .....
वाह ......
रस्मी जी बधाई आपको पहली पोस्ट में चुनी जाने की ...
दोनों ही रचनाएं बहुत अच्छी हैं। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteया देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
अच्छा लगा यहाँ आकार/
ReplyDeletesundar rachnaen...
ReplyDeleteशेखर जी, रश्मि जी कि कवितायेँ तो अच्छी लगती ही है ... आपके ब्लॉग पर उनकी कविता पढकर अच्छा लगा ...
ReplyDeleteआपकी प्रयास सार्थक है ...
बेहतरीन रचनाएं !
ReplyDeleteBehad marmsparshi rachnaein.padkar achcha laga.
ReplyDeleteरश्मि प्रभा जी की हर कविता बेहतरीन होती है.आप ने जो चुनी हैं वे भी बेहद अच्छी हैं.
ReplyDeleteआभार.
बहत सुन्दर कविता..अच्छी लगी.
ReplyDeleteदोनो रचनाएँ लाजवाब हैं ... रश्मि जी का लिखा पढ़ना हमेशा ही अच्छा लगता है ...
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएँ
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचनाएं है शेखर जी ..आपके ब्लॉग का कलेवर तो मन को सुकून पहुंचा गया ..सच में ..। बहुत बहुत शुभकामनाएं शेखर भाई
ReplyDeleteदोनो रचनायें बहुत अच्छी लगी धन्यवाद इन्हें पढवाने के लिये। रश्मि जी हमेशा कहीं गहरे मे उतर कर श्गब्द खोज लाती हैं। बधाई उन्हें ।
ReplyDeleteरश्मि जी की कविताएँ पढ़ना एक सुखद अनुभव होता है. सराहनीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत अच्छी शुरुआत .......
ReplyDeleteदो सुन्दर रचनाये पढवाने के लिए धन्यवाद...
शुभकामाए
रश्मि जी वैसे भी लाजवाब लिखती हैं..बधाई.
ReplyDeleteदोनो रचनायें बहुत ही सुन्दर एवं गहरे भावों को साथ में समेटे में अनुपम एवं अनमोल हैं ।
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