पिछले दिनों मुझे काफी सर्दी-जुकाम था, इसलिए समय से मेरी पोस्ट भी नहीं आ पाई | खैर मैं शाम को यूँ ही छत पर ताज़ी हवा ले रहा था अचानक मुझे जोर की छींक आयी, अब जुकाम है तो यह कोई बड़ी बात तो है नहीं | लेकिन मेरी छींक सुनकर नीचे सड़क पर गुजर रहे एक सज्जन ठिठके उनहोंने मुझे अजीब सी नज़रों से देखा और बुदबुदाते हुए बढ़ गए | मुझे उस समय कुछ समझ नहीं आया फिर एहसास हुआ कि लगता है इस छींक को उन्होंने अपशकुन मान लिया | अब बताईये इसमें मेरा क्या दोष भला, मैं तो खुद परेशान था |
NOTE:- कृपया मेरे द्वारा दी गयी टिप्पणियों को भी जरूर पढ़ें, आपके काफी सारे सवालों के जवाब वहां मिल जायेंगे..
PS:- अगर आपने यह पोस्ट नहीं पढ़ी है तो कृपया टिप्पणी देने का भी कष्ट ना करें....
क्या आप भी इन बातों को मानते हैं ?? चलिए आपसे कुछ सवाल ही पूछ लेता हूँ....
- क्या बिल्ली के रास्ता काटने पर आप रुक जाते हैं ?
- कहीं जाते समय अगर कोई पीछे से टोक दे तो क्या आप चिढ़ जाते हैं ?
- क्या किसी की छींक को अपने कार्य के लिए अशुभ मानते हैं ?
- क्या किसी दिन विशेष को बाल कटवाने या दाढ़ी बनवाने से परहेज करते हैं ?
- क्या दिन के अनुसार ही मांसाहार करते हैं ?
- क्या आप भगवान् के नाम पर तुरंत चंदा देने के लिए तैयार हो जाते हैं ?
- क्या अपनी उँगलियों में आप तरह तरह की अंगूठियाँ इसलिए पहनते हैं क्यूंकि आपको लगता है कि ये आपकी ज़िन्दगी पर कोई प्रभाव डाल सकती है ?
- क्या आपको लगता है कि तीर्थ घूमने या हज यात्रा करने से आपके सारे पाप धुल जायेंगे ?
- क्या आपको लगता है की घर या अपने अनुष्ठान के बाहर नींबू-मिर्च लगाने से बुरी नज़र से बचाव होगा ?
- क्या सुबह सुबह आप अखबार में अपना राशिफल देखने से नहीं चूकते ?
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यह मामला केवल जन-आस्था से जुड़ा है .परिवर्तन लाइए ,
ReplyDelete" हम बदलेंगे युग बदलेगा . "
राशिफल तो हम लगे हाथ देख लेते है, सब कुल मिला एक बराबर ही लिखा रहता है. अंगूठी तो अब कभी नहीं पहनी, पर थोड़ा-बहुत विश्वास ही कि इन रंग-बिरंगे पत्थरों कि कहानी विज्ञान के पास मिल सकती है. ऐसे ही कुछ और तथ्यों का पुष्टि विज्ञान के द्वारा मिल सकती है. उदाहारणस्वरुप बचपन में दादी माँ रात को नाख़ून काटने पर या झाड़ू देने पर अपशकुन होने का अंदेशा करती थी, तब मेरी माँ उसी जिज्ञासा को इस तरह से समझाया करती थी कि पुराने समय में बिजली नहीं हुआ करती थी, इसीलिए रात को बिना देखे नाख़ून काटने से हम ज्यादा गहरा काट न ले और झाड़ू न करने के पीछे भी अच्छी बात थी कि कोई बहुमूल्य वस्तु हम अनजाने में कचरा समझ के फेंक न दे. अक्सर इन तथाकथित अपशकुनो के पीछे कुछ कहानी या कुछ और मतलब निकलता है, जिसे हमे आज के मुताबिक देखने व समझने की कोशिश करनी चाहिये. और जो नाहक बिना बात के है, उनको ध्यान देने की भी जरूरत नहीं है.
ReplyDeleteबजाज जी ने सही कहा। आस्था के आगे कोई सवाल नहीं होता।
ReplyDeleteअशोक बजाज जी और निर्मला कपिला जी...
ReplyDeleteबात आस्था की नहीं, बात है कि यह आपको तर्कसंगत लगता है क्या ?? तनिक दिमाग से सोच कर बताएं...
शेखर सुमन जी , आप हमारे देश के एक शिक्षित युवा है, इसलिए सर्वप्रथम आप ही को टोकूंगा ! आपके उपरोक्त प्रश्नों में तो दो बाते स्पष्ट है एक - अंधविश्वास और दूसरी बेवकूफी या फिर अज्ञानता , मगर इन बातों का धर्म से क्या लेना देना ? हम लोग शिक्षित होते हुए भी धर्म को बहुत ही संकुचित अर्थों में ले आते है ! आस्था और आचरण में फर्क है ! धर्म हमें सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है न कि इन टोटके - अंधबिश्वाशों को अधिग्रहण करने की प्रेरणा ! ये टोटके इंसानों ने समय समय पर अपने सुविधानुसार , स्वार्थपूर्ति के लिए बनाए , जबकि धर्म एक पूरे समाज को दिशानिर्देशित करता है !
ReplyDeleteशेखर जी बहुत सी बाते अंधविश्वास की श्रेणी में होते हुए कही न कही पुरातन कल से चली आ रही परम्पराओ से भी जुडी हुयी है ! जिसे आज भी उस समय के लोग मानते है कई बार ऐसा होता है की हम बिल्ली के रास्ता काटने से थोडा विचलित होते है फिर आगे बाद जाते है परन्तु ऐसे में यदि हमारा काम बिगड़ जाता है तो मन में ये ख्याल जरुर आता है की यदि उस समय थोडा रुक जाते तो शायद काम नहीं बिगड़ता,पीछे से टोकने या छिकने पर रुकने नहीं रुकने में ये बात लागु होती है! जहा तक मासाहार की बात है खाना घर में सयुक्त रूप से सभी के लिए बनता है और ऐसे में घर के कुछ सदस्यों के मानने को सभी को मानना पड़ता है ! और ये बात व्यवहार में आ जाती है !भगवान के नाम पर चंदा देना या तीर्थ यात्रा करना धार्मिक आस्था की बात है इस पर कमेंट्स करना उचित नहीं ! हा नीबू मिर्च बंधना या राशिफल देखना मेरे हिसाब से सामान्य प्रक्रिया है जो की एक दुसरे से सुन कर देख कर हम भी उसका पालन करने लग जाते है और इससे यदि फायदा नहीं तो नुकसान भी नहीं है ! वैसे में एक प्रश्न आपसे पूछना चाहूँगा की आपने कभी परीक्षा के दौरान या किसी गंभीर परिस्तिथि में इस्वर को याद किया है क्या आप शादी ब्याह के समय सात फेरो को उचित मानते है मृत्यु के पश्चात आत्मा की शांति के लिए किये जाने वाले पाठ की क्या महत्ता है ऐसे बहुत से प्रश्न है !
ReplyDeleteगोदियाल जी,
ReplyDeleteमाफ़ कीजियेगा मेरा तो मानना है की धर्म भी इंसान ने ही बनाये हैं अपनी जरूरत के हिसाब से | इस धरती पर जो कुछ भी घटित है होता है वो सब मानव का ही किया हुआ है | चाहे वो अच्छे परिपेक्ष में हो या बुरे में |
अमरजीत जी,
ReplyDeleteबात यहाँ फायदे या नुक्सान की नहीं है, बात ये है कि हम इतने शिक्षित हैं , इतनी तरक्की कर चुके हैं फिर इन सब बे सिर पैर की बातों को आज भी क्यूँ मानते हैं ??
आप अगर समाचार देखते होंगे तो ऐसी कई भ्रांतियां देखने को मिलेंगी जो ना सिर्फ नुकसानदायक बल्कि अजीबोगरीब भी है |
खैर अब धर्म पर आते हैं:-
पहले मैं यह बता दूँ मैं इसकी बात कर ही नहीं रहा कि धर्म हमें क्या सिखाता है | हम धर्म के नाम पर क्या कर रहे हैं मैं उसकी बात कर रहा हूँ...
गणेश चतुर्थी में लाखों रुपये का चढ़ावा चढ़ाया जाता है भला उन्हें इसकी क्या जरूरत है | ये सोने का मुकुट, हीरे यह सब देकर हम साबित क्या करना चाहते हैं ? अपनी बेवकूफी और क्या !
धर्म के नाम पर किये गए ये चढ़ावे अगर हम किसी अनाथालय या अस्पताल में दे दें तो क्या यह सच्चा धर्म नहीं है ?
दुनिया में सबसे ज्यादा नफरत आज धर्म के कारण ही उत्पन्न हुई है |
shekhar ji
ReplyDeleteaapki baat me dam hai par hamme se andh-vishwas ki jad abhi puri tarah se khatm nahi hui hai.maan lijiye ki aap kisi entarvu ya koi parixha dene ja rahe hainto kaya aisi baato se ham us kaam ko nahi karenge yapareexha hi chhod denge,ye to asambhav baat hai na.aapne bahut hi achha vishhy uthya hai.iske liye dhayvaad.
poonam
शेखर जी,
ReplyDeleteगोदियाल जी की स्पष्ट प्रतिक्रिया से पूर्णत सहमत।
जनाब इन टोटको में 'धर्म' कहाँ आया, आप अनावश्यक रूप से धर्म को जोड रहे है, धर्म की शिक्षाएं कहाँ कहती है ऐसा करो्। हो सकता धर्म हम इन्सानो ने ही बनाया, पर बनाया था मानवता के हित के लिये ही न !!
इसीलिये उसके 'शुद्ध स्वरूप' को ही स्वीकार करो, और मानवीय कमजोरियों से उत्पन्न कुरितियों को न तो धर्म कहो,न धर्म से जोडो।
4.5/10
ReplyDeleteविचारपूर्ण पोस्ट
बेहतर होता कि पहले आप अपने विचार सामने रखते.
किसी भी धारणा या अंध-विश्वास का सम्बन्ध हमारे
आस-पास के वातावरण और संस्कार से जुड़ा होता है.
कुछ लोग शिक्षा-ज्ञान और इच्छा-शक्ति के कारण इससे
छुटकारा पा लेते हैं.
@ सुज्ञ ji
ReplyDeleteएक बार फिर मैं आपको बता दूँ...
मैं इसकी बात कर ही नहीं रहा कि धर्म हमें क्या सिखाता है | हम धर्म के नाम पर क्या कर रहे हैं मैं उसकी बात कर रहा हूँ...
मेरे तो सारे जवाब न में हैं। वैसे आपकी यह वैचारिक प्रस्तुति अच्छी लगी। बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete..............
यौन शोषण : सिर्फ पुरूष दोषी?
क्या मल्लिका शेरावत की 'हिस्स' पर रोक लगनी चाहिए?
our environment effects our perception!
ReplyDeletepersonally, i believe everything happens for good as our scriptures say so believing in superstitions is out of question....
iswar satya hai aur uski hi maya sabhi ko sammohit kiye hue hai... kya dharma kya andhvisvas!!!
vicharniya post hetu sadhuwad!!!
hope u r fine now and recovered from cough and cold!!!
tk care!
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ReplyDeleteहहाहाहा , चेतावनी अच्छी है
उपरोक्त ९ को मैं अहमियत नहीं देती, राशि देखने में मज़ा आता है पर यकीं नहीं कुछ ख़ास
रश्मि जी
ReplyDeleteअब क्या करूं , बेकार और फ़ालतू टिप्पणियाँ देख कर मन ऊब गया था और खीज भी बहुत होती थी, इसलिए ये चेतावनी लगानी पड़ रही है...और यकीन मानिए बहुत फायदा हुआ है,, हा हा हा..
बायीं या दायीं आँख का फड़कना शुभ या अशुभ. यह भी जोड़ लें. वैसे हाथ की अंगूठी इस मैं नहीं आती. इसे निकाल दें.
ReplyDeleteशेखर जी
ReplyDelete@हम धर्म के नाम पर क्या कर रहे हैं मैं उसकी बात कर रहा हूँ...
महोदय, जरा तटस्थता से देखीये, उपरोक्त 10 बातें धर्म के नाम पर नहिं होती।
ज्योतिष एक विद्या है, उसे उसी रूप में लेना चाहिए।
शु्कुन,अपशुकुन आदि भी रहस्य-विद्याएं है,यदि वहां अंधविश्वास है तो वह सामाजिक व व्यक्तिगत कुरिति है,धर्म से कोई सम्बंध नहिं।
भगवान के नाम चंदा देना भी तो, भगवान को अनावश्यक जोडना है।
पंडाली,भले भगवान का नाम लें, देने वाले तो इन पंडालियों से माथाफ़ोड बचाने के लिये ही चंदा देते है।
जहां दूर दूर तक धर्म का सम्बंध नहिं है, तो धर्म का नाम कैसे……
हां यह कह सकते हो कि धार्मिक आस्था का दिखावा करने वाले लोग अकसर इन कुरितियों में फ़सते है, आंशिक सत्य हो सकता है। पर धर्म तो इन दिखावाचारियों को अपना नहिं मानता, जो लोग कुरितियों के पालक होते है, धर्म उन्हे मिथ्यात्वी कह्कर बाहर का रास्ता दिखा देता है।
ReplyDeleteमाफ़ कीजिये सुज्ञ जी लेकिन मेरी नज़र में आज धर्म भी कटघरे में है | मेरे इस नज़रिए का कारण आप मेरा नास्तिक होना भी मान सकते हैं | प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ही सही, मूल कारण तो धर्म ही है |
ReplyDeleteइन सब का धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है । ये सभी हमारी मान्यताएं हैं । अक्सर मान्यताएं -अंध विश्वास की शिकार होती हैं । यहाँ भी यही हाल है। मैं इनमे से एक को भी नहीं मानता ।
ReplyDelete.
ReplyDeleteये टोटके इंसानों ने समय समय पर अपने सुविधानुसार , स्वार्थपूर्ति के लिए बनाए ....
I fully agree with Godiyaal ji.
.
हमने अपना मंतव्य स्पष्ट रूप से रख दिया, आपकी पोस्ट के शिर्षक एवं सार-कथन में धर्म शब्द का अवांछित प्रयोग दिखाई दे रहा है, जबकि लेख में ऐसा कहीं भी नहिं, मै जानता हूं आपका वामपंथीयो की तरह येन-केन धर्म को बदनाम करने का उद्देश्य नहिं है। पर नाहक बदनाम तो हो ही रहा है।
ReplyDeleteashok jee ne sahi kaha..........baat astha se judi hai..:)
ReplyDeleteham aapne jo bhi kaha, sab karte hain,
main ye samajhta hoo, aisee kuchh baaten, jo hame manane se koi jyada farak nahi parta, usko manana bhi chahiye
waise bhi bhgawan ya koi supar power hai to jarur hi...:)
६)नहीं, सोच समझकर चंदा देता हूँ।
ReplyDelete७)अंगूठी तो पहनता ही नहीं। शादी के दिन पहनी थी। कभी कभी बीवी को खुश करने के लिए, त्योहार के दिन पहनता हूँ। मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पढता। अवश्य बीवी पर पढती है। मेरी उंग्लियों पर अंगूठी देखते ही अति प्रसन्न हो जाती है।
८)नहीं, सारे पाप नहीं धुलते। पर महीनों का थकान मिट जाता है। हमें यात्रा करना बहुत अच्छा लगता है। तीर्थ यात्रा भी और पर्यटक स्थलों का भी और जब दोनों एक ही स्थान पर हैं तो मजा और संतोष तो दुगुना हो जाता है। पाप धोने के लिए मेरा विचार है कि कोई पुण्य काम करो।
९)नहीं। मेरे शत्रु उल्लू नहीं हैं जिनको नींबु और मिर्च से डराकर अपना बचाव कर सकूं। पर यदि कोई और अपने आस्था के कारण ऐसा करना चाहता है तो मैं उसके बारे में कोई टिप्पणी नहीं करता।
१०)कभी अखबार में राशिफ़ल नहीं देखता। अपनी बीवी का चेहरा देखता हूँ। एक ही क्षण में पता चल जाता है आज का दिन कैसे बीतेगा।
शुभकामनाएं
जी विश्वनथ
मेरे उत्तर:
ReplyDelete१) बिल्ली कोई भी रंग का हो, अवश्य रुक जाता हूँ। बिल्ली को अपने पास बुलाता हूँ। उसे प्यार करने के लिए। पर कम्बख्त बिल्ली मुझ पर विश्वास ही नहीं करती। भाग जाती है।
२)शादी हुए ३५ साल हुए। हर बार पत्नि पीछे से टोक देती है। अजी, कहाँ जा रहें है? आते समय जरा उस दुकान से फ़लाँ चीज लेते आना। अब इतना आदी हो गया हूँ के हम इससे चिढना भूल गए हैं
३)नहीं, अशुभ नहीं मानता। उसकी अस्वस्थता पर चिंता व्यत्त करते हुए पूछता हूँ। "कुछ लेते क्यों नहीं?"
४)हमारे यहाँ मंगलवार और शनिवार को मनाही है। इस विषय पर अंग्रेज़ी में मैने एक ब्ब्लॉग पर कुछ लिखा था दो साल पहले। यदि किसी को इसे पढने में रुचि है तो हम कडी बता देंगे।
५)हम तो पक्के शाकाहारी हैं जी, सातों दिन
---continued ----
@ विश्वनाथ जी आपके जवाब के आगे और कुछ कहने सुनने की गुन्जाईश ही नहीं बचती. :-)
ReplyDeleteशकुन अपशकुन एक लम्बे समय से अलग अलग समुदायों के विश्वास हैं जिनका वैज्ञानिक परीक्षण जरुरी है -कहते हैं की सभी लोक श्रुतियां निर्मूल नहीं होती !
ReplyDeleteभाई शेखर, आपके किसी भी सवाल का जवाब मैं हाँ में नहीं देता पर कई बार मुझे घर-परिवार में शान्ति बनाए रखने के लिए कई बातें माननी पड़ती हैं. अकेले रहता हूँ तो सारी बातें ठेंगे पर रखता हूँ.
ReplyDeleteबहरहाल, सवालों में कुछ भी तर्कसंगत नहीं है.
और अन्धविश्वास धार्मिक परम्पराओं से ही निकले हैं. उन्हें पौपुलर धर्म से अलग नहीं किया जा सकता. जैसे कोई मानता है कि फलाने दिन चन्द्र दर्शन से चोरी करने का आरोप लगता है तो उसके पीछे किन्हीं देवताओं के पौराणिक प्रसंग होते हैं जिन्हें झुठलाने की हिम्मत कम ही लोग करते हैं.
ज्योतिष की वैद्यता पर कुछ कहना मुसीबत मोल लेना है इसलिए मैं चुप ही रहूँगा.
यह भी बताता चलूँ कि नास्तिक नहीं हूँ लेकिन जमकर बहस करता हूँ कि दुनिया और हमें चलानेवाली शक्ति का नाम ईश्वर नहीं है.
धर्म और परंपरा दोनों अलग -अलग हैं ना कि एक.
ReplyDeleteजिन्हें आप अन्धविश्वाश कह रहे हैं वो ही पुराने ज़माने में एक अच्छी परंपरा रही हैं. में बहुत सारे उदहारण तो नहीं दूंगा मगर थोडा तो दूंगा ही.
१- पुराने ज़माने में या ये कह ले कि अभी भी शादी के दौरान लड़के और लड़की कि जन्म कुंडली मिलवाई जाती हैं. कुछ हद तक अगर सही मिल रही हैं तो ठीक नहीं तो शादी नहीं होती थी, कोई और लड़का या लड़की देखि जाती हैं. ---- आज से बीस साल पहले तलाक बहुत कम होते थे. (हिन्दू समाज में)
आने वाले कुछ सालो में आप देखेंगे कि लड़के और लड़की कि खून कि जाँच करवाई जाएगी फिर शादी होगी. ( कोई बीमारी तो नहीं हैं)
२.घर के बाहर नीबू मिर्च टांग कर के देखिएगा आपको फर्क नज़र आ जायेगा.
ज़माने के हिसाब से बदलाव जरुरी हैं.
@ tarkeshwar giri ji
ReplyDeleteआप भी अच्छा मजाक कर लेते हैं...क्या आप तलाक का कारण कुंडली नहीं मिलाना मानते हैं ??
उस ज़माने में तलाक इसलिए कम होते थे क्युंकि
1. सब जो मिला वो ठीक वाली धारणा पर चलते थे |
2. समाज की बनायीं गयी मर्यादाओं में रहते थे|
3. महिलाएं जागरूक नहीं थी और पुरुषों के अत्याचार खिलाफ आवाज़ नहीं उठाती थीं |
4. सयुंत परिवारों की संख्या ज्यादा थी, बड़े बुजुर्ग, कठिन समय में दंपत्ति के मसलों को सुलझा दिया करते थे |
मेरे ख्याल से इतने कारण आपको पर्याप्त लगेंगे | और आनेवाले कुछ समय में क्यूँ, मैं तो ऐसे कई लोगों को जानता हूँ जिन्होंने ब्लड ग्रुप चेक कराकर शादी की, क्या ऐसा करना आप गलत समझते हैं ?
शेखर जी क्या आपको नहीं लगता की जो लोग आस्था के नाम पर लाखो रुपये दान करते है वे कोई गरीब आदमी नहीं होते और ऐसे लोग तो छोटे मोटे आयोजन या शादी ब्याह जैसे आयोजनों में लाखो करोडो रूपये खर्च कर देते है तब आप जैसे पड़े लिखे लोग इसे क्या नाम देंगे की भाई आज के ज़माने में मार्डन युग में या 21 वी सदी में ये सब तो करना पड़ता है पता नहीं पदने लिखने को लोग धर्म के विपरीत ही बाते करने में क्यों जोड़ते है भगवान राम को काल्पनिक पात्र कहना या रामायण या महाभारत को अच्छी व काल्पनिक कहानी भी बहुत से पड़े लिखे लोगो ने कही है! हिन्दू धर्मो में इस तरह की बाते आजकल बहुत कही जा रही है परन्तु हम अपने ही देश में अन्य धर्मो जैसे मुस्लिम धर्म में बहुत सी ऐसी बाते देखते है जिस पर बोलने का साहस नहीं करते जैसे बुरका प्रथा, चार चार शादियों की प्रथा,मेहर देने की प्रथा,फ़ोन पर चिट्ठी पत्री, के जरिये तलाक देने या तीन बार तलाक तलाक कहकर तलाक कहने की प्रथा, त्यौहार के नाम पर पुरे देश में करोडो बकरों की बलि प्रथा और ऐसे बहुत सी अन्य बाते है जिसे देखकर भी हम अनदेखा कर देते है ................
ReplyDeleteअमरजीत जी,
ReplyDeleteअजीब आदमी हैं आप
मैं यहाँ वही कहने की कोशिश कर रहा हूँ, की कई ऐसी चीजें हैं जो धर्म को बेवकूफी से जोडती हैं | फिर क्या हिन्दू और क्या मुसलमान | इस तरह की नस्लवादी टिप्पणी की आशा नहीं थी आपसे, मैं यहाँ हिन्दू या मुसलमान की बात नहीं कर रहा हूँ.....
और जरूरी नहीं कि हर मुसलमान ऐसा करता हो जिनका आपने जिक्र किया है, आपको ऐसे लाखों मुसलमान मिल जायेंगे जिन्होंने पूरी ज़िन्दगी एक ही शादी की है और ऐसे हिन्दुओं की भी कमी नहीं जो एक से ज्यादा शादी करते हैं..इसलिए कृपा करके चर्चा के विषय से ना भटकें...
वैसे शायद आपको धर्म की परिभाषा जननी चाहिए....
अमरजीत जी
ReplyDeleteएक बात और अगर कोई पति या पत्नी अपने जीवनसाथी के साथ जीवन नहीं गुजारना चाहे तो इससे अच्छा नियम और क्या हो सकता है, क्या इसके लिए अदालत के चक्कर लगाने जरूरी है..
आपकी जानकारी के लिए एक बात और बताना चाहूँगा कोल्कता में एक काली जी का मंदिर है वहां प्रतिदिन कम से कम २०० जानवरों की बलि दी जाती है |
और अभी तो दीवाली भी आने वाली है, यह देश पहले ही प्रदुषण की समस्या से जूझ रहा है क्या सिर्फ त्यौहार के नाम पर यह पटाखे, ये शोर उचित है ?
पोस्ट मज़ेदार है, उत्तर पुन: आकर देने का प्रयास करुंगा!
ReplyDeleteकोई धर्म अंधविश्वास को लेकर नहीं चलता ...... बस मन के हरे हार है, मन के जीते जीत . अच्छा, बुरा, सुख दुःख , जीवन मरण एक क्रम है,
ReplyDeleteहमहीं कहते हैं 'सब तय है' तो फिर छींकने से, बिल्ली से .... कहे को नाराज़गी
ये सभी हमारी मान्यताएं हैं ।
ReplyDeleteइंसानों ने समय समय पर अपने सुविधानुसार बनाए हैं
शेखर जी मेरी बातो का मतलब किसी धर्म या मजहब से जोड़कर नहीं है और ना ही मै विषय से आपको भटकना चाहता हु मैंने तो कुछ उदाहरन ही प्रस्तुत किये है और आप जैसा पड़ा लिखा शिक्षित आदमी बुरा मान गया भाई साहब आपने कहा की जब दो लोग एक साथ नहीं रहना चाहते है तो इस तरह का तलाक आपकी नजर में बुरा नहीं है परन्तु जनाब जब एक ही पक्ष को ये अधिकार प्राप्त हो तो और दूसरा तो सिर्फ और सिर्फ उपभोग की ही चीज बनकर रह जाये तो क्या ये उचित है और आपने बकरे की बली के विषय में कलकत्ता का उदहारण दिया तो शेखर जी ऐसी बातो चंद स्थानों पर ही सिमित है परन्तु देश भर में करोडो बकरों की बलि एक त्यौहार मनाने के नाम पर दे दी जाये तो ये आपकी नजर में आस्था है या अन्धविश्वास या फिर कलकत्ता में भी ऐसा होता है कहकर हम पल्ला झाड ले .....अच्छा हुवा आपने दीवाली जैसे पवित्र पर्व का उल्लेख कर दिया हम आज दीवाली पर ध्वनी प्रदूषण की बात करते है होली में पानी के दुरपयोग की बात करते है और तो और हद तब हो गयी जब अभी नवरात्री में एक news चैनल ने मंदिरों में जलते दीपो को लेकर यह कहा की ऐसा कर हम तेल की बर्बादी करते है कहा तक उचित है इसलिए कुछ बातो को छोड़कर.. हम तो ये ही कहे की धर्म को धर्म ही रहने दे उसे अन्धविश्वास का नाम न दे .........और एक बात कहना चाहूँगा की अच्छा है की आपने मेरे कमेंट्स का जवाब दिया परन्तु आप धर्म को समझो या कैसे आदमी है आप जैसे शब्दों का उपयोग आपने किया क्या ये नहीं लगता की आप अपने लिखे लेख की सत्यता को सिद्ध करने की जिद कर रहे है जनाब बड़ा ह्रदय बनाये और कमेंट्स में लिखी कुछ बातो को गलत सिद्ध करे परन्तु कुछ अच्छी बातो की तारीफ भी करे .........वैसे यदि मेरी किसी भी बात से आपको बुरा लगा हो तो माफ़ी चाहूँगा !
ReplyDeleteशेखर जी मेरी बातो का मतलब किसी धर्म या मजहब से जोड़कर नहीं है और ना ही मै विषय से आपको भटकना चाहता हु मैंने तो कुछ उदाहरन ही प्रस्तुत किये है और आप जैसा पड़ा लिखा शिक्षित आदमी बुरा मान गया भाई साहब आपने कहा की जब दो लोग एक साथ नहीं रहना चाहते है तो इस तरह का तलाक आपकी नजर में बुरा नहीं है परन्तु जनाब जब एक ही पक्ष को ये अधिकार प्राप्त हो तो और दूसरा तो सिर्फ और सिर्फ उपभोग की ही चीज बनकर रह जाये तो क्या ये उचित है और आपने बकरे की बली के विषय में कलकत्ता का उदहारण दिया तो शेखर जी ऐसी बातो चंद स्थानों पर ही सिमित है परन्तु देश भर में करोडो बकरों की बलि एक त्यौहार मनाने के नाम पर दे दी जाये तो ये आपकी नजर में आस्था है या अन्धविश्वास या फिर कलकत्ता में भी ऐसा होता है कहकर हम पल्ला झाड ले .....
ReplyDeleteशेखरजी,
ReplyDeleteधर्मं और अंधविश्वास ये दो अलग बाते है हा बहुत हद तक आम आदमीने साथ जोड़ दी है !
मै नहीं मानती धर्मं हमें अन्धाविश्वाशी होने के लिए बोलता है! अन्धविश्वाश, शकुन-अपशकुन की जड़ तो डर है ....
और रहा आपके सवालो के जवाब का तो बहुत सी बातों के लिए मै विश्वनाथ जी से सहमत हू ... मांसाहार को छोड़ के ..शायद उनका कोई कारण होगा .....
अगर आपके पास वक्त है तो निचे दी हुई कड़ी से कुछ पढ़ सकते है
http://indranil-sail.blogspot.com/2010/07/blog-post_22.html
अमरजीत जी,
ReplyDeleteआपसे माफ़ी चाहूँगा अगर आपको मेरी एक-आध पंक्तियाँ बुरी लगी हों | मेरा ऐसा कोई विचार नहीं था |
और रही बात त्यौहार के नाम पर बलि देने की तो यह मुझे सरासर बेवकूफी ही लगती है चाहे वो हिन्दू धर्म में हो या मुसलमान धर्म में |
mera to ek hi manana hai jab aadmi ko dukh ho ya use koi chij mil nahi rahi ho jainse- naukri,pyaar, dhan. tabhi aadmi ka viswas ainsi baaton me badhta hai ya kam ho jaata hai.
ReplyDeletemene mahsus kiya hai,me bhi in sabhi baaton ko nahi manta tha.meri wife pregnet thi or wo andar opretion room me thi. .par us raat me bhagwan se bahut se wade karta raha bahar. jainse is baar ko non veg nahi khaunga or bahut kuch. kya kare shekar g. ye mera manana hai. me aap ki baat kaat nahi raha hu, par aap imaandari se ek baat kahiye, kya aapne apne puche swalo me se ek bhi kaaam kabhi apne jiwan me nahi kiya?
अनूप जी
ReplyDeleteआपने पूछ लिया तो बता ही देता हूँ, कि मैंने आज तक उपरोक्त ९ बातें नहीं की हैं..हाँ कभी कभी राशि देखता हूँ वो भी केवल कौतुहलवश | मैं इस दुनिया में सिर्फ ३ जगह नतमस्तक होता हूँ.....
1. जहाँ मेरे माता-पिता खड़े हों.
2. जहाँ हमारे देश का राष्ट्रगान हो रहा हो.
3. और जहाँ कहीं किसी की शवयात्रा जा रही हो .....
बाकी कोई अंधविश्वास या धर्म को मैं नहीं मानता....
गौदियाल जी की बात से सहमत हूँ ... ये धर्म नही है ... Dharm to in sab se door le jaata hai ...
ReplyDeleteDuniya me bhagva hea usko hamne banaya why uske nam per le sake or uske name par de sake phir bhe hamra man eak ajib say dar me olgha howa rehata. me iswar me bharosa karta ho. likin in sab ko nahe manta or akhbar me kabhi bhi rashi nahi nekhta or iswar ki mherbane say jindgi aj tak thik chal rahi hea. bas apko bharosa karna hi hea to apne hato ki mehant per kijiye agar kuch dena hi he to bimar ko dijiye kishi garib ko padhaiye.
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