कभी-कभी मैं
लेकर पंछियों से पंख
नीले गगन में विचरता हूँ
यूँ ही
शायद तलाश है किसी चीज की
हाथ में एक हाथ लेकर
आसमां की खाक छानता हूँ
उसे ढूँढता हूँ जो
ज़मीं पे मिलना कठिन हो चला है,
मगर खाली हाथ लौट आता हूँ
और वो हाथ भी छूट जाता है,
फिर कभी कभी
ज़मीं पे बसी दुनिया में
करता हूँ प्रयत्न
वो करने का
जो आसमान में होता है,
तभी एक नश्तर सा चुभता है
और थक कर गिर जाता हूँ
फिर उठता हूँ और
चल पड़ता हूँ आसमां की सैर पर
बस यूँ ही कभी कभी ||
शेखर, गिर कर फ़िर उठ जाया करो यार, यूँ ही कभी कभी। फ़िर वही आसमानों की सैर। चलना ही जिन्दगी है।
ReplyDeleteअच्छी लगी कविता।
थककर गिरना, गिरकर उठना,
ReplyDeleteजीवन की यह रीत पुरानी।
ye hee jeevan hai......palayan kaisa..?
ReplyDeleteसम्वेदनायें भी कागज पर उतर सकती हैं... वाकई.
ReplyDeleteवाह वाह वाह .............मन प्रसन्न हो गया बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभार
लगातार प्रयास करो जब तक सफलता ना मिल जाये,
ReplyDeleteगिर उठना, उठ कर गिरना इसी का नाम तो जिन्दगी हैं
बहुत बेहतरीन कविता लिखी, बधाई दिल से
@ मोसम कौन,
ReplyDeleteलीजिये उठ गया और वापस चल पड़ा आसमा की सैर पर...
bahut achhe, aise hi aasman chhute raho
ReplyDeleteशेखर अंकल ....
ReplyDeleteअरे आप तो नाराज़ हो रहे है ...अब आपको बिस्कुट कैसे दिए जाये ... ?
बहुत सुन्दर भाव है ....
ReplyDeleteकभी कभी
मै लेकर पंख
नील गगन में उडाता हू ....
.
ReplyDeleteगिरना और उठकर फिर सैर को निकल पड़ना , इसी में तो जीवन के सर्व-सुख छुपे हुए हैं।
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@ chinmayee
ReplyDeleteअरे नहीं बाबू, मैं नाराज़ थोड़े न हूँ..मैं तो उदास हो गया था थोड़ी देर के लिए ...
अब नहीं हूँ...
घर जो जा रहा हूँ दिवाली में...
प्रवीण भाई, संजय भाई, मनोज जी, दिव्या जी आपका ही प्यार और अपनापन है जो बार बार उठ कर खड़ा होता हूँ...
ReplyDeleteसबकी यही कहानी है भाई .....जीवन भर यही क्रम चलता है ....बहुत बढिया.....
ReplyDeleteशेखर जी बहुत ही गहरे भावों से भरी है आपकी ये कविता. ... बस जीवन चलते रहे. जीवन की यही कहानी है....
ReplyDeleteaapki kavita se kuch panktiyaan yaad aa gayi..
ReplyDeletedukh se mat ghabrana panchi,ye jag dukh ka mela hai..chahe bheed bahut amber par,udna tujhe akela hai!!aapki kalpnanon ki udaan ek din apna amber khoj hi legi...AAMIN!
पारुल जी..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी पंक्तियाँ हैं.., बहुत बहुत धन्यवाद...
आसमान में या जमीन पर
ReplyDeleteबस सिर्फ़ वहीं ढूँढो
जो वहाँ मिलता है
जमीन की चीज़ आसमान में
या आसमान की चीज़ जमीन पर
ढूँढना बेकार है।
अब इस उम्र में
अच्छी गर्लफ़्रेन्ड
जमीन पर ही मिलेंगी
आसमान में नहीं
यदि इतनी अच्छी
कविताए लिखोगे
तो लडकियाँ तुम्हें
खुद ढूँढती आएंगी
काहे को इतना
कष्ट उठा रहे हो?
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
बस, यूँ ही कभी कभी..यहाँ तो अक्सर..
ReplyDelete-बहुत बढ़िया!
ऐसे ही गिरते उठते कट जायेगा सफ़र , शाम आएगी तो जरुर आएगा सहर.
ReplyDeleteआशीष जी
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने, यह सफ़र यूँ ही कट जायेगा....
विश्वनाथ जी,
ReplyDeleteक्या आप भी मेरी चुटकी ले रहे हैं...ऐसा कुछ नहीं है.. :)
बहुत सुन्दर रचना है ... बस यूँ ही कभी कभी कुछ कोशिशें होनी चाहिए ...
ReplyDeleteJab tak udte rehne ki zidd h tab tak kaun hai jo aapko rok sake...
ReplyDeleteN 'll update ma blog soon..cnt say wen bt soon :)
ये यूँ ही कभी कभी तो जीवन है .
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
गिरते है सह सवार मैदाने जंग में वो भी क्या गिरे जो घुटनों के बल चले ...बहुत अच्छीं रचना मन के विचारो को उचाई व उडान देने की अच्छी कोशिश
ReplyDeleteचुटकी नहीं ले रहा हूँ।
ReplyDeleteबस, टाँग खीच रहा हूँ।
(अंग्रेजी में इसे harmless leg pulling कहते हैं)
यही उम्र है तुम्हारी जब हम जैसे लोगों को थोडा बहुत मजाक सूझता है।
हम मजे लेना चाहते हैं।
जब तक eligible bachelor रहोगे, ऐसा मजाक बर्दाश्त करना ही होगा।
एक बार शादी होने दो, बाद में कोई नहीं पूछेगा।
Enjoy your moment, while it lasts. And allow us also to enjoy your bachelorhood.
शुभकामनाएं
चल अविरल क्यूँ रुकता है तू?
ReplyDeleteक्यूँ थक कर थमता है?
जब रक्त प्रवाहित रग-रग में!
तो पाँव क्यूँ तेरा जमता है?
चल चला चल!
आशीष
विश्वनाथ जी,
ReplyDeleteशौक से कीजिये, अच्छा लगता है जब हम पर कोई इतना अधिकार दिखाता है... वैसे भी ज्यादा दिन नहीं बचे हैं इस bachelorhood. के.... :(
manav man ki aseem ichhaon v adamy sanghash ki shakti ka kavita me sundar samayojan kiya hai aapne.deepawali ki shubhkamnayen.
ReplyDeletebahut hi sundar bhav...........kabhi kabhi bas yun hi mann kuchh is tarah likh deta hai.
ReplyDeleteवाह...बहुत सुन्दर. केवल बहुत सुन्दर लिखने का मतलब ये नही है कि कविता पढी ही नहीं गई... सचमुच बहुत सुन्दर है :)
ReplyDeletebahut umda....bahut unchi sooch....very nicee write
ReplyDeleteवाह..!!
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ....
ReplyDeletebeautiful poem...keep going!!
ReplyDeleteमन की उहापोह का बखूबी निरूपण किया है आपने. बहुत सुन्दर!
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