Saturday, September 13, 2025

दूर हो तुम, पर पास भी हो...

दूर हो तुम पर पास भी हो,
साँसों की जैसी साँस भी हो।

महफ़िल में सब हैं, फिर भी जानाँ,
तुम ही मेरी तलाश भी हो।

पलकों पे तेरी ख़्वाब सजे हैं,
दिल में मेरे अरदास भी हो।

महक उठी है रूह की बगिया,
जैसे बदन की घास भी हो।

लब पे दुआ बनकर ठहरना,
आँखों की कोई प्यास भी हो।

2 comments:

  1. दिल में मेरे अरदास भी हो
    बेहतरीन रचना

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  2. आपकी कविता इतनी नरम और गहरी लगी कि दिल खुद-ब-खुद उसमें घुल गया। आपने जिस तरह दूरी और करीबियों को एक साथ बाँधा है, वो बहुत सच्चा लगता है। मैं हर लाइन में एक ऐसी भावना महसूस करता हूँ, जो प्यार को किसी भारी शब्दों में नहीं, बल्कि हल्के एहसासों में पकड़ती है।

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