Tuesday, September 23, 2025

"कैसे साबित करूँ प्रेम..."

मैंने आपको
हर उस क्षण में याद किया
जब याद करने का कोई कारण नहीं था।

आपके नाम से पहले
कभी इबादत की तरह
"आप" कहना सीखा—
जैसे कोई बच्चा
पहली बार
ईश्वर बोलना सीखता है।

मैंने आपकी मुस्कुराहट
अपने मन के खेत में बोई है,
और हर तन्हा शाम
उसे अपने अकेलेपन से सींचा है।

मैं हर कविता में
आपकी अनुपस्थिति को
इतने प्रेम से दर्ज करता हूँ
जैसे कोई
मंदिर में
किसी अनदेखे देवता के लिए
दीया जलाता हो।


अगर ये सब प्रेम नहीं है,
तो फिर प्रेम सिर्फ़ शब्द है—
और आप उस शब्द के पहले अर्थ।

1 comment:

  1. आपकी कविता पढ़कर लगता है की जब किसी से बहुत गहरा प्यार होता है, तो उसे बिना वजह भी याद किया जाता है। आपने दिखाया है कि सच्चा प्यार दूर होने पर भी दिल में ज़िंदा रहता है। जैसे कोई मंदिर में दीया जलाता है, वैसे ही आपने अपने शब्दों से उस प्यार को याद करता है।

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