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Friday, August 23, 2013

छोटी-छोटी चिप्पियाँ...

उस लम्हें में,
रात का स्याह रंग बदल रहा था 
तुम्हें याद तो होगा न 
चांदनी मेरा हाथ थामे
सो रही थी गहरी नींद में,
और रौशन कर रही थी 
मेरे दिल का हर एक कोना...

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वो दिन भी याद है मुझे,
जब कभी चुपके से 
तुम मुझे टुकुर-टुकुर 
ताक लिया करती थी,
जैसे मेरे वजूद की चादर हटाकर 
ढूंढ रही हो 
कोई जाना-पहचाना सा चेहरा,
तुम लाख मना करो 
पर तुम्हें था तो इंतज़ार जरूर किसी का
क्यूंकि वो दिन याद है मुझे
जब चुपके से तुम मुझे
टुकुर-टुकुर ताक लिया करती थी... 

**********

कभी-कभी 
खो जाता हूँ ,
मैं अपने स्वयं से बाहर निकलकर 
और देखता रहता हूँ
तुम्हें,
चुपचाप...

Tuesday, October 5, 2010

संघर्ष .....

                  पिछले कुछ दिनों से लिखने से ज्यादा पढने में व्यस्त था | इसलिए कुछ लिखना संभव ना हो सका, इसलिए आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ १९९९ में लिखी मेरी एक कविता | यह कविता यहाँ पहले भी प्रकाशित हो चुकी है, लेकिन उस समय मेरा ब्लॉग शायद ही कोई पढता था | अगर आपको इसमें कोई त्रुटि लगे तो उसे ज़रूर सुधारेंगे क्यूंकि उस समय की मेरी उम्र के हिसाब से यह रचना शायद थोड़ी भारी भरकम है........
अंतहीन समंदर,
आती जाती तेज़ लहरें,
एक आशंका लिए कि,
मझधार यह कहाँ ले जाएगी,
ज़िन्दगी से लड़ते- लड़ते मौत दे जाएगी,
एक किनारे की तलाश में,
निगाहें समेटना चाहती हैं समंदर,
मायूसी की घटा है चेहरे पर,
बयां करती एक दास्तान,
दरम्यान यह ज़िन्दगी मौत का
एक पल के झरोखे में मिटा जाएगी
डूबना होगा अगर मुकद्दर मेरा,
लाख कोशिश न रंग लाएगी,
एक साहिल की तलाश में
यह ज़िन्दगी बीत
जाएगी...
क्या करूँ ? ? 
मान लूं हार या करूँ संघर्ष
आखिरी क्षण तक, 
क्या होगा अंजाम 
यह तो तकदीर ही बताएगी......

Thursday, September 30, 2010

माँ...

आज के दिन हमारे बिहार में एक पर्व मनाया जाता है, " जीवित्पुत्रिका व्रत "..... आम भाषा में कहें तो "जिउतिया" | इस पर्व में माँ अपनी संतानों की मंगलकामना और लम्बी उम्र हेतु उपवास रखती है.... समय के अभाव में कुछ नया लिख नहीं पाया इसलिए दुनिया की हरेक माँ के चरणों में अपनी एक पुरानी कविता समर्पित कर रहा हूँ..... 
मेरी सारी दौलत , खोखले आदर्श,
नकली मुस्कराहट
सब छीनकर,
दो पल के लिए ही सही
मेरा बचपन लौटा देती है माँ...
कभी डाँटकर, कभी डपटकर
कभी माथे को सहलाकर,
अपने होने का एहसास दिलाती है माँ...
जब डरा सहमा सा,
रोता हूँ मैं
मेरे आंसू पोंछकर,
अपने आँचल में छुपा लेती है माँ...
जब रात्रिपहर में निद्रा से दूर
करवट बदलता रहता हूँ मैं,
अपनी गोद में सर रख कर
लोरी सुनाती  है माँ...
परेशान वो भी है अपनी ज़िन्दगी में बहुत,
पर हँसी के परदे के पीछे,
अपने सारे गम छुपा जाती है माँ .......
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